रामपुर से पाडली तक और कलियर से इमली तक चौतरफा हार के बाद अपने लिए क्या सपना देखेंगे मुनेश सैनी?

एम हसीन

पीरान कलियर। कलियर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव खासी अहमियत वाले थे। 2022 में यहां का सबसे इंपॉर्टेंट फैक्टर हाजी शहजाद यहां थे नहीं और 2017 में हाजी शहजाद निर्दलीय थे। दोनों बार भाजपा को कांग्रेस से सीधा मुकाबला करने का मौका मिला था और दोनों ही बार भाजपा यहां खेत रही थी। और अब जिस तरह के परिणाम इस विधानसभा क्षेत्र के निकायों में हुए चुनाव के आए हैं वे भाजपा के लिए बहुत हौसला बढ़ाने वाले नहीं हैं। इस सच्चाई के बावजूद यहां भाजपा के लिए उम्मीद की कोई किरण बाकी नहीं है कि यहां कांग्रेस के हौसले भी पस्त हैं। यह भी सच्चाई है कि इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने कभी प्रत्याशी को रिपीट नहीं किया, फिर भी दोबारा टिकट की उम्मीद लगाए बैठे मुनेश सैनी इन हालात में अपने लिए क्या सपना सजा सकते हैं और पार्टी को क्या आश्वासन दे सकते हैं?

गौरतलब है कि जिले में कलियर सबसे ज्यादा निकाय रखने वाला विधानसभा क्षेत्र है। यहां इमलीखेड़ा नगर पंचायत है जिसमें भगवानपुर विधानसभा क्षेत्र की साझेदारी है। इसी प्रकार पाडली नगर पंचायत में झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र का पनियाला क्षेत्र भी शामिल है और रामपुर नगर पंचायत में झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र के इब्राहिमपुर और सालियर क्षेत्र भी शामिल हैं। कलियर नगर पंचायत में अलबत्ता किसी और विधानसभा क्षेत्र का कोई साझा नहीं है। इन चार नगर पंचायतों में से कलियर को छोड़कर भाजपा ने सभी पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और मुनेश सैनी की अगुवाई में ही उतारे थे, जो कि यहां 2022 में पार्टी के प्रत्याशी रहे थे। लेकिन पार्टी किसी एक निकाय में भी जीत दर्ज नहीं कर सकी। हालांकि इन चारों निकायों में तीन पर पहली बार चुनाव हुआ था, इसलिए वहां के विषय में यह नहीं कहा जा सकता कि पहले कौन सा निकाय किसके कब्जे में था या किसने किससे क्या छीना! इसी प्रकार कलियर पर इस बार दूसरी बार चुनाव हुआ था, लेकिन यहां भाजपा न पहली बार चुनाव लड़ने का हौसला कर सकी थी और न ही इस बार कर सकी। यहां पहला चुनाव दो निर्दलीयों के बीच हुआ था जिनमें एक को कांग्रेस के स्थानीय विधायक का और दूसरे को बसपा के एक तत्कालीन पूर्व (अब मौजूदा) विधायक का समर्थन प्राप्त था। पिछली बार कांग्रेस विधायक समर्थित प्रत्याशी जीता था जबकि इस बार यहां बसपा विधायक समर्थित बसपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है और उनके सामने निर्दलीय को हार मिली है। यहां भाजपा कहीं सीधे या घोषित रूप से मुकाबले में नहीं थी।

जब इस क्षेत्र में भाजपा के लिए इतने बुरे हालात रहे हैं तो सवाल यह है कि अगर भाजपा अपनी परंपरा के विपरीत जाते हुए 2027 में मुनेश सैनी को ही दूसरी बार प्रत्याशी बनाती है तो मुनेश सैनी किस उम्मीद में चुनाव लड़ेंगे? क्या वे इन परिस्थितियों को इतना अपने अनुकूल बनाने में कामयाब रहेंगे कि वे मुकाबले में रह सकें? देखना दिलचस्प होगा।