झोझा नेतृत्व के चमक खाते जाने का सन्देश दे रहा नगर पंचायत का चुनाव, बिरादरी में नए नेतृत्व के नामों पर बहस शुरू

एम हसीन

कलियर। कलियर नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव जहां तेली+अन्य की एकजुटता का बेहद स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है वहीं झोझा-अन्य के विभाजन का दिलचस्प नजारा भी प्रस्तुत कर रहा है। हालात का संकेत यह है कि क्षेत्र पर पिछले 13 साल से हावी झोझा राजनीति अपना असर, अपनी चमक खो रही है और अभी तक उपेक्षा का शिकार रही तेली राजनीति यहां उम्मीदों का नया केंद्र बिंदु बनकर उभर रही है। 2027 में इसका क्या रूप सामने आएगा, यह देखने वाली बात होगी।

जैसा कि सब जानते हैं कि हाल के निकाय चुनाव में कलियर में यूं तो 8 प्रत्याशियों ने शिरकत की, लेकिन इस बार मुख्य रूप से लड़े 3 प्रत्याशी। एक, निवर्तमान अध्यक्ष शफ़क़्क़त अली, दो, कांग्रेस के अकरम प्रधान। ये दोनों झोझा बिरादरी से आते हैं। तीसरे प्रत्याशी रहे बसपा के सलीम प्रधान, जो तेली बिरादरी से आते हैं। 2008 में अस्तित्व में आई कलियर विधानसभा सीट पर तत्काल प्रभाव से झोझा बनाम तेली राजनीति में विभाजित हो गई थी। झोझा बिरादरी के नायक कांग्रेस के हाजी फुरकान बने थे जो कि 2012 में विधायक निर्वाचित हुए थे। उनके सामने पराजित हुए बसपा के हाजी शहजाद पहले ही तेली नायक का खिताब हासिल कर चुके थे और 2012 तक दो बार विधायक रहने के अलावा एक बार लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके थे और 2012 में जिला पंचायत को भी कमांड कर रहे थे।

इसके बाद कलियर नगर पंचायत का गठन हुआ था और यहां 2018 में पहला चुनाव हुआ था और झोझा बनाम तेली ही हुआ था। तब हाजी फुरकान के प्रत्याशी के रूप में शफ़क़्क़त जीते थे और तब उनके सामने हाजी शहजाद के प्रत्याशी सलीम प्रधान हारे थे। उस चुनाव में झोझा एकजुटता शफ़क़्क़त के पक्ष में नजर आई थी लेकिन तेली विभाजन भी दिखाई दिया था। इसी कारण सलीम प्रधान 160 वोटों से हार गए थे। तब की दो बातें महत्वपूर्ण हैं। एक, तब हाजी शहजाद विधायक नहीं थे। दूसरे, वे बसपा में नहीं थे और बसपा तब कांग्रेस या भाजपा के खिलाफ लड़ने की बजाय उनके खिलाफ लड़ रही थी।

इसके विपरीत बदली परिस्थितियों में हुआ है। अब हाजी शहजाद बसपा के लक्सर विधायक हैं और सलीम प्रधान भी इस बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े। इसका बेशक सलीम प्रधान को लाभ मिला। लेकिन असली लाभ उन्हें झोझा विभाजन का मिला। जैसा कि सब जानते हैं कि हाजी फुरकान ने इस बार अकरम प्रधान को कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े। अपेक्षा यह की जा रही थी कि शफ़क़्क़त को इस बार हाजी फुरकान चुनाव न लड़ने के लिए मना लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे न केवल चुनाव लड़े बल्कि पूरी मजबूती से चुनाव लड़े और कमाल यह हुआ कि उन्होंने अकरम प्रधान को तीसरे नंबर पर धकेल दिया और खुद दूसरे नंबर पर आ गए। यूं कई बातें महत्वपूर्ण हुईं। एक, हाजी फुरकान का प्रभाव दरक रहा है। हाजी शहजाद के खिलाफ वे जिस तेलीवाद को हथियार बनाते थे वह हथियार असर खो रहा है। अब तेलीवाद के खिलाफ झोझा के साथ जो सर्व समाज का समीकरण नहीं बना। उल्टे इस बार झोझावाद मुद्दा था और उसके खिलाफ तेलीवाद के साथ सर्व समाज खड़ा था। चूंकि पूरे मामले को खुद हाजी शहजाद कमांड दे रहे थे और इस अभियान में उनके साथ खुद सलीम प्रधान के अलावा हाजी शहजाद के भाई अब्दुल सत्तार और हाजी शहजाद के पुत्र अफजल शहजाद जमीन पर उतार रहे थे इसलिए अंतिम तौर पर हाजी शहजाद की शख्सियत निखरकर सामने आ रही थी, उनके आभा मंडल को नई पहचान और नए प्रभाव मिल रहे थे। दूसरी बात, झो झा बिरादरी के बीच नए नेतृत्व के नाम पर चर्चा शुरू हो गई थी। जाहिर है कि यह सब 2027 के संदर्भ में खास महत्वपूर्ण साबित होने वाला है।