क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने चौधरी इस्लाम को घोषित किया कांग्रेस का प्रत्याशी
एम हसीन
रुड़की। मंगलौर विधायक और कांग्रेस के दिल्ली राज्य प्रभारी क़ाज़ी निज़ामुद्दीन जिस समय अपने आवास पर जुटे समर्थकों के बीच चौधरी इस्लाम के कांग्रेस के नगर पालिका अध्यक्ष पद के प्रत्याशी होने की घोषणा कर रहे थे, ऐन उसी समय डॉ शमशाद मंगलौर नगर की गलियों में मतदाताओं के साथ संपर्क कर रहे थे। वे जनता के हुजूम के बीच मौजूद थे। अहमियत यह है कि चौधरी इस्लाम के कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होने के बाद मंगलौर नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव एकतरफा होने की बात कही जा रही है। कारण यह है कि यहां विपक्ष नहीं है या यूं कहें कि विपक्ष का कोई चेहरा नहीं है। जन्नतनशीन मेंबर ऑफ असेंबली हाजी सरवत करीम अंसारी के पुत्र, जो हाल के विधानसभा उप-चुनाव में बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे, के कैंप में कन्फ्यूजन है। वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे खुद बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ें या अपने अति महत्वकांक्षी भाई आमिर सरवत को चुनाव लड़ाएं या अपने किसी समर्थक, मसलन चौधरी जुल्फिकार अंसारी या जुल्फिकार ठेकेदार या मोईन अंसारी को चुनाव लड़ाएं। केवल इतना ही नहीं। वे यह भी तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ें या भाजपा के टिकट पर लड़ें या भाजपा समर्थित प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ें। इतना कन्फ्यूजन हो तो न तो कहीं विपक्ष का चेहरा दिखाई देता है और न ही चुनाव दिखाई देता है। लगता यही है कि चौधरी इस्लाम के लिए कहीं कोई चुनौती नहीं है।
लेकिन राजनीति, लोकतांत्रिक राजनीति एकतरफा चुनाव से नहीं चलती। लोकतांत्रिक राजनीति का संबंध चुनाव से होता है। चुनाव से ही यह तय होता है कि अंततः जीत का निर्धारण जनता करती है। जब यह लोकतंत्र की जरूरत है तो फिर यह भी याद रखना चाहिए कि विपक्ष अगर न हो तो विपक्ष पैदा करना पड़ता है, विपक्ष पैदा किया जाता है।
मंगलौर में भी विपक्ष न हो ऐसा नहीं है। जिन हालात में पिछला विधानसभा चुनाव हुआ था उन हालात में अगर विपक्ष ना होता तो बसपा प्रत्याशी उबैदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी को 20 हजार वोट ना मिले होते और उन में 10 हजार वोट मंगलौर कस्बे के ही ना होते। अगर यहां विपक्ष न होता तो डॉ शमशाद के क़ाज़ी कैंप ज्वाइन कर लेने के बाद बसपा को विधानसभा के लिए ही प्रत्याशी ढूंढे न मिला होता। सच यह है कि मंगलौर में विपक्ष अपनी पूरी ताकत के साथ मौजूद है। इसी कारण नगर पालिका अध्यक्ष पद के तमाम दावेदार बसपा को भी ढो रहे हैं और मोंटी की भी नींद हराम किए हुए हैं। बात केवल उस विपक्ष को चेहरा देने की है। मोंटी अगर अनुभवी होते तो कोई बड़ी बात नहीं कि वे खुद विपक्ष के रूप में मौजूद रहकर कोई दमदार चुनावी समीकरण बनाते और अचूक रणनीति के साथ नगर पालिका अध्यक्ष पद का कोई प्रत्याशी सामने लाते; जैसा कि उनके पिता किया करते थे। वे ऐसा नहीं कर पा रहे, इसलिए यह जिम्मेदारी अब किसी और को उठाना पड़ रही है। जिम्मेदारी यह है कि जब कोई और नहीं होगा तो डॉ शमशाद विपक्ष का चेहरा होंगे। यह बाद में पता लगेगा कि उन्हें चेहरा किसने बनाया, पहले यह तय होगा कि चुनाव परिणाम आने के बाद वे विपक्ष का ही चेहरा रहेंगे या सत्तापक्ष का चेहरा बन जाएंगे। आखिर कोई जरूरी तो नहीं कि इंकलाब आवाज के साथ ही आए। क्रांतियां खामोश भी तो होती हैं।