भाजपा में मेयर टिकट के बंपर दावेदार, करीब तीन दर्जन ने की दावेदारी
एम हसीन
रुड़की। भाजपा की महानगर स्तरीय राजनीति में घमासान मचा हुआ है। नगर का प्रभावशाली वर्ग अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सक्रिय हो गया है। प्रभावशाली वर्ग मेयर चुनाव को लोकसभा के पैट्रन पर होते नहीं देखना चाहता जिसमें नेतृत्व के नाम पर वोट डाले गए। प्रभावशाली वर्ग पिछले विधानसभा चुनाव के पैट्रन पर वोट होते देखना चाहता है जिसमें प्रत्याशी बड़े नेताओं को खुश करके बात खत्म न कर दे बल्कि महानगर के भी हर उल्लेखनीय चेहरे को पूछे, उसके योगदान का महत्व समझे। इसका परिणाम यह है कि भाजपा में मेयर टिकट के दावेदारों की संख्या करीब तीन दर्जन पहुंच गई है। लेकिन बात यही खत्म नहीं हो रही। इसके कुछ परिणाम अलग भी आ सकते हैं जिनसे कांग्रेस की राजनीति प्रभावित हो सकती है। कांग्रेस की पुरानी परंपरा भाजपा से प्रत्याशी लाकर टिकट देने की रही है। उसे मद्देनजर रखते हुए भाजपा में कई ऐसे लोग भी हैं जिनका दावा तो भाजपा के टिकट पर है लेकिन उनकी नजर कांग्रेस के टिकट पर है। हालांकि कांग्रेस में पूर्व मेयर यशपाल राणा और प्रदेश महासचिव सचिन गुप्ता की प्रतिस्पर्धा में किसी तीसरे के लिए रास्ता बनना आसान नहीं है। लेकिन चर्चा यह है कि भाजपा का कोई बड़ा चेहरा ऐन समय पर कांग्रेस गमन का निर्णय ले सकता है।
कांग्रेस में सचिन गुप्ता पिछले दे साल से चुनावी भूमि गोड रहे हैं। उन्होंने हर स्तर पर अपने आपको दावेदार बनाया है। साथ ही वे पहले से यह कहते रहे हैं कि मेयर चुनाव उनकी पत्नी पूजा गुप्ता भी लड़ सकती हैं। उनके इसी दावे के दृष्टिगत भाजपा के टिकट के दावेदार के तौर उभरे चेरब जैन भी अपने साथ अपनी पत्नी मेघा जैन की दावेदारी को लेकर चले। जाहिर है कि महानगर में निकाय चुनाव की पिछली छह महीने में हुई अपनी राजनीति को वे भी एक निश्चित विचारधारा के तहत प्लान कर चल रहे थे। साफ दिखता है कि एक तय कार्यक्रम के तहत चेरब जैन ने खुद को और मेघा जैन को लॉन्च किया। दूसरी ओर गुटबाजी की राजनीति के चलते अक्षय प्रताप सिंह ने भी खुद को राजनीति में प्लानिंग के साथ लॉन्च किया गया; अलबत्ता उन्होंने अपनी माता जी को दावेदारी के रूप में तभी प्रस्तुत किया जब सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई। तीनों प्रत्याशियों की इस प्लानिंग को शुरू में किसी ने एक बहुत अधिक गंभीरता से नहीं लिया। कारण, तब माना जा रहा था कि मेयर पद पिछड़ा वर्ग की महिला के नाम आरक्षित होगा। लेकिन जब पद सामान्य महिला के नाम आरक्षित हो गया तो महानगर में बेचैनी बढ़ी। चाहे ऐसा हुआ न हो, लेकिन भाजपाइयों के मन में यह भावना जग गई कि दाल में कुछ काला है। इसके नतीजे के तौर कर भाजपाइयों में एक आम सहमति बनी दिखाई दे रही है कि चेरब जैन या अक्षय प्रताप सिंह को वॉक ओवर नहीं देना है। पार्टी में मेयर टिकट को लेकर हो रहे बंपर आवेदन इसी से प्रेरित लगते हैं। लेकिन यह स्थिति केवल भाजपा में ही नहीं है। हालात का इशारा यह है कि आगे यह राजनीतिक भावना कांग्रेस तक एक्सटेंड हो सकती है। अनुमान यह लगाया जा रहा है कि महानगर की राजनीति को पूरे तौर पर उलट देने के हिसाब से भाजपा का एक बड़ा चेहरा ऐन समय पर कांग्रेस गमन कर सकता है और टिकट का मैनेजमेंट करने की कोशिश कर सकता है। देखना दिलचस्प होगा कि हालात के ऊंट का अगला करवट क्या होता है!