फिलहाल तो पार्टी में पिछड़े वर्ग का अग्रणी चेहरा है यह
एम हसीन
रुड़की। मेयर पद अगर पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित होता है तो भाजपा में टिकट के सबसे प्राचीन, सनातन दावेदार भले ही अरविंद कश्यप हों लेकिन दावेदारों की पार्टी में कमी नहीं है। हकीकत यह है कि पार्टी में जितने बड़े चेहरे हैं, उतने ही उनके समर्थक हैं और उन समर्थकों में कोई न कोई पिछड़े वर्ग का सक्रिय चेहरा भी है। जैसे पार्टी जिला अध्यक्ष शोभाराम प्रजापति। शोभाराम प्रजापति को भाजपा में मेयर टिकट का दावेदार माना जा रहा है और वे अपनी दावेदारी को कन्फर्म भी कर रहे हैं। उन्होंने मीडिया को दिए अपने साक्षात्कार में इस चर्चा पर अपनी सहमति की मुहर लगाई है।
जैसा कि सब जानते हैं कि शोभाराम प्रजापति पार्टी जिलाध्यक्ष पद पर तब आए थे जब हरिद्वार सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक हुआ करते थे। निशंक की पहल पर ही प्रजापति अध्यक्ष बने थे। यही कारण है कि उन्हें आज भी डॉ निशंक के कैंप का ही आदमी माना जाता है। हालांकि जैसा कि भाजपा की परंपरा है, उन्हें अपने क्षेत्र में अगवानी सब बड़े नेताओं की करनी पड़ती है। वे उन कार्यक्रमों की भी अध्यक्षता करते हैं जिनके मुख्य अतिथि मौजूदा सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत होते हैं और उन कार्यक्रमों की भी जिनके मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी होते हैं। यही पार्टी की परंपरा है। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि इसके चलते पार्टी की गुटबाजी की हकीकत बदल जाती है। न यह हकीकत बदल जाती कि टिकट के मामले ऊपरी स्तर पर गुटों के बीच आपसी सामंजस्य बन जाने के बाद तय होते हैं। हालात का इशारा यह है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच किसी भी प्रकार तालमेल बन ही नहीं पा रहा है। इसके विपरीत पूर्व सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री के साथ बेहतर समझदारी कायम रखे हुए दिखाई दे रहे हैं। आगे इसमें यह सच्चाई जुड़ती है कि मुख्यमंत्री के अपने गुट का कोई बहुत प्रभावशाली पिछड़ा चेहरा रुड़की में दिखाई नहीं देता। ऐसे में लाभ शोभाराम प्रजापति के खाते में दर्ज होने की संभावना बढ़ जाती है।
जहां तक शोभाराम प्रजापति का सवाल है, वे पार्टी के सर्वग्राह्य चेहरा पहले से ही रहे हैं। यह बेवजह नहीं है कि वे दो दशकों से पार्टी के मैचों की पहली पंक्ति में बैठाए जाते रहे हैं। जब मयंक गुप्ता पार्टी के जिलाध्यक्ष थे तब शोभाराम प्रजापति पार्टी की राजनीति में इंट्रोड्यूस कराए गए थे। तभी से उन्हें पार्टी में सम्मान मिलता आया है। समय आने पर सरकार ने भी उन्हें समान दिया था। यह इसी से जाहिर है कि वे पिछली सरकार में दर्जाधारी बनाए गए थे। एक हकीकत यह भी है कि शोभाराम प्रजापति ने अपने अंदर पिछले दो दशकों में खासी लचक पैदा की है। उन्होंने बनियों के नगर में खुद को बनिया जैसा बनाने के लिए खासी मेहनत की है। यही कारण है कि रुड़की में उनकी दावेदारी को चुनौती केवल दावेदारों से ही मिल रही है। भाजपा का सामान्य कार्यकर्ता अगर उनके पक्ष में खुलकर नहीं आ रहा है तो उनका विरोध भी नहीं कर रहा है।