जन-प्रतिनिधियों के विषय में तत्परता से सूचना देते हैं लोक सूचना अधिकारी, विभागों से संबंधित मामलों में रुला देने के रिकॉर्ड
एम हसीन
रुड़की। जब पूरे देश में संविधान को बचाने और संविधान को लागू करने की कवायद चल रही है तब सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की बड़ी कड़वी हकीकतें सामने आ रही हैं। हालांकि यह कोई अध्ययन नहीं है लेकिन मोटे तौर पर देखने में आया है कि अगर कोई आवेदक किसी विभाग, क्योंकि सूचना तो विभाग से ही मांगी जाएगी, से किसी जन-प्रतिनिधि से संबंधित सूचना का आवेदन प्रस्तुत करे तो सूचना आसानी से मिल जाती है। लेकिन विभाग के ही संबंध में या किसी अधिकारी के संबंध में सूचना प्राप्त करना रेत में से पानी निचोड़ने जैसा साबित होता है। अधिकारी के विषय में सूचना तभी प्राप्त हो पाती है जब लोक सूचना अधिकारी ही अपने अधिकारी के खिलाफ हो या फिर अपील अधिकारी के रूप में विभाग का बड़ा अधिकारी ही अपने लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ हो। ऐसे मामले में होता यह भी है कि अक्सर अपील अधिकारी को लोक सूचना अधिकारी के कहर का शिकार हो जाना पड़ता है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यही है।
मैं कोई लोक सूचना कार्यकर्ता नहीं हूं लेकिन एक पत्रकार के रूप में कितनी ही बार मैं इस अधिनियम के तहत विभागों में आवेदन प्रस्तुत करता रहता हूं। पिछले वर्षों में मैं ने नगर विधायक प्रदीप बत्रा के विषय में कई विभागों से सूचना मांगी, जो मुझे आमतौर पर सही समय पर मिली। केवल हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण ने 2016 में मुझे प्रदीप बत्रा के वी-मार्ट प्रोजेक्ट के विषय में बहुत देरी से सूचना प्रदान की थी। इसका कारण यह था कि इस सूचना में विभाग का भी हस्तक्षेप था। विभाग ने मेरा सूचना से संबंधित आवेदन प्राप्त हो जाने के बाद पहले अपनी कमियों को सुधारा था, तब सूचना प्रदान की थी। तब प्राधिकरण के लोक सूचना अधिकारी सहायक अभियंता डी से रावत थे जो आज 8 साल बाद भी प्राधिकरण में सहायक अभियंता ही हैं।
ऐसे ही मैं ने एक आवेदन लोक निर्माण विभाग रुड़की के निर्माण खंड में प्रस्तुत किया था। खंड के लोक सूचना अधिकारी सहायक अभियंता सोनू कुमार त्यागी, जिन्हें हाल ही में प्रोन्नति मिली है, थे। उन्होंने सूचना प्रदान नहीं की थी। मैं विभागीय अपील में गया था जो कि अधिशासी अभियंता संदीप यादव के समक्ष प्रस्तुत हुई थी। संदीप यादव ने सारी सूचना निर्धारित समय के भीतर उपलब्ध कराने के सख्त आदेश दिए थे लेकिन अपने आदेश की कंप्लायंस देखने का मौका संदीप यादव को नहीं मिला था। उनका स्थानांतरण हो गया था। उसके बाद आए मोहम्मद आरिफ खान ने सूचना दिलवाने की बजाय मुझे आयोग का रास्ता दिखा दिया था; हालांकि इसके तहत उन्हें एक बार खुद भी आयोग में हाजरी भरना पड़ी थी। इसके बाद आयोग में भी मोर्चा सोनू कुमार त्यागी ने संभाल लिया था और सूचना मुझे आज तक भी नहीं मिली। अलबत्ता मोहम्मद आरिफ खान और सोनू कुमार त्यागी ने मुझे सूचना का अधिकार के तहत सूचना मांगने का दंड यह दिया था कि मेरे अखबार को इस खंड से मिलने वाले निविदा विज्ञापन बंद कर दिए गए थे। यह सिलसिला अब भी जारी है। बताया जाता है कि कोई विभाग सूचना का आवेदन करने वाले किसी आवेदक के खिलाफ बदले की भावना से कार्यवाही नहीं कर सकता लेकिन मोहम्मद आरिफ खान की अध्यक्षता में सोनू कुमार त्यागी ने ” दैनिक परम नागरिक” के खिलाफ तो यह कार्यवाही खुलकर की। बहरहाल, अहम यह है कि सूचना मुझे आज तक भी नहीं मिली। ऐसे ही मेरे पास और भी अनुभव हैं जिन्हें मैं पाठकों की जानकारी में लाता रहूंगा।