लोकल चुनाव में खासी अहमियत है ऐसे कार्यक्रमों की

एम हसीन

मंगलौर। मंगलौर मुस्लिम डॉमिनेटेड नगर है और वहां लाइव नाइट लाइफ भी अभी कायम है। रुड़की में जब रामलीला के लिए भी दर्शक कम ही मिलते हैं, मंगलौर में मुशायरों के लिए श्रोता इफरात में मिल जाते हैं। दरअसल, वहां नगर पालिका परिषद के चुनाव की गतिविधियां जारी हैं इसलिए कोई बड़ी बात नहीं कि वहां मुशायरों की बहार शुरू हो गई है। नगर पालिका की राजनीति का हिस्सा जुल्फिकार ठेकेदार की पहल पर एक मुशायरा आज यानि 23 सितंबर की रात्रि में यहां होना है तो एक मुशायरा, जिसे जाहिरा तौर पर नशिस्त कहा जा रहा है, कल यानी 24 सितंबर की रात्रि में भी होगा। उसकी अगुवाई सैय्यद अली हैदर जैदी कर रहे बताए गए हैं। उम्मीद यह है कि जैसे जैसे मौसम सर्द और चुनावी माहौल गर्म होगा मुशायरों की रंगत भी निखार की तरफ बढ़ेगी।

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि मंगलौर की लाइव नाइट लाइफ अभी कायम है। दरअसल, वहां के लोग बड़े पैमाने पर रोजगार के मामले में दूसरे नगरों पर निर्भर हैं। दिन भर काम के बाद वे शाम को अपने घर लौटते हैं। उनकी दिनभर की थकान इस तरीके से भी उतरती है कि वे देर रात तक बाहर चाय की दुकानों पर, बैठकों पर, दुनिया जहान के मुद्दों पर चर्चा करते हैं। यही कारण है मंगलौर में चुनाव प्रचार भी आमतौर पर रात के समय ही प्रभावी होता है। इस मामले में मंगलौर के राजनीतिक महत्वकांक्षियों के लिए मुशायरे बेहतरीन जरिया साबित होते हैं, खासतौर पर इसलिए कि वहां के माहौल में मुशायरों के प्रति आकर्षण भी अभी बाकी है और व्यक्तिवादी राजनीति भी, राजनीति में किसी एक के साथ खड़े होकर खेलने की परंपरा भी। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि वहां मुशायरे आयोजित करने का सिलसिला शुरू हो चुका है। आज होने वाले मुशायरे के पोस्टरों से जाहिर होता है कि इसके आयोजक कांग्रेस समर्थक हैं तो कांग्रेस समर्थक मतदाताओं से भी यह अपेक्षित है कि वे मुशायरे में अपनी शिरकत दर्ज कराएं।

दूसरा मुशायरा कल सैय्यद अली हैदर जैदी के आवास पर होगा। जैदी एक दौर में मंगलौर के समाज और कांग्रेस दोनों ही बीच एक बड़ा नाम रह चुके हैं। लेकिन पिछले विधानसभा उप चुनाव में उन्हें बसपा प्रत्याशी के साथ देखा गया था। हालांकि कांग्रेस के एक पदाधिकारी का यह भी कहना रहा है कि अंतिम समय पर कांग्रेस प्रत्याशी काजी निजामुद्दीन उन्हें मनाने में सफल रहे थे लेकिन इसकी पुष्टि न क़ाज़ी निजामुद्दीन की ओर से हुई है और न ही जैदी की ओर से। इसके उलट लगता है कि जैदी अपने बीते दौर को वापिस लाने के लिए अपनी ही राजनीति कर रहे हैं। यही कारण है कि वे अभी भी बसपा खेमे में ही दिखाई दे रहे हैं और वहां क़ाज़ी फैक्टर को इस रूप में बढ़ावा दे रहे हैं कि वे निकाय चुनाव की राजनीति में क़ाज़ी खालिद को बढ़ावा दे रहे हैं। बहरहाल, इन सारे मुद्दों पर जैदी खुद मिलें तो कोई बात हो, जो कि वे नहीं करते। फोन वे उठाते नहीं और दिन के किसी भी समय सीधे उनके घर जाया जाए तो वे सोते हुए बताए जाते हैं। इस सबके बीच मुशायरे का आयोजन वे भी कर रहे हैं जो कि कल होगा; हालांकि इसे मात्र नशिस्त, यानि चुनिंदा लोगों की छोटी अदबी महफिल, बताया जा रहा है। उनके लिए शायद यह जरूरी भी है क्योंकि जिस तरह की राजनीति वे करते हैं उसमें नगर के प्रभावशाली लोगों का समर्थन ही उनके लिए अवाम के भी समर्थन का रास्ता खोल सकता है। सीधे अवाम के बीच शायद अब उनका पहले सा रुतबा कायम नहीं है। बहरहाल, राजनीति के लिए अदब का मंच बन गया है। अब इसका मजा लिया जा सकता है।