अनिवार्य स्थानांतरण नीति को जमीन पर उतरना शिक्षा विभाग के लिए बनी टेढ़ी खीर

एम हसीन

रुड़की। शिक्षा विभाग में अनिवार्य स्थानांतरण नीति को जमीन पर उतरना शिक्षा विभाग के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। स्थिति यह है कि वर्षों, कई लोग तो दशकों, से एक ही विद्यालय में जमे हुए हैं और अब भी स्थानांतरित किए गए विद्यालय में योगदान के इच्छुक नहीं हैं। अधिकारी प्रधानाध्यकों को पत्र पर पत्र लिख रहे हैं कि स्थानांतरित किए गए शिक्षकों को पदमुक्त किया जाए, लेकिन बात बन नहीं रही है। यह स्थिति तब है जब शिक्षकों का यह स्थानांतरण जिले के जिले में ही किया गया है। कहीं पहाड़ चढ़ने की अनिवार्यता किसी के साथ नहीं है। एक ओर शिक्षा विभाग यूं स्थांतरित किए गए शिक्षकों को नए तैनाती स्थलों पर नहीं भेज पा रहा है दूसरी ओर उन शिक्षकों में असंतोष व्याप्त हो रहा है जिन्हें इस स्थानांतरण नीति से कुछ लाभ मिलने की उम्मीद है।

गौरतलब से है कि वर्षों से सुगम क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे शिक्षकों को दुर्गम की ओर भेजने के लिए राज्य सरकार ने 2017 में अनिवार्य स्थानांतरण नीति बनाई थी और इसके तहत उन शिक्षकों की सूची तैयार की गई थी जिन्हें एक ही स्थान पर काम करते हुए लंबा समय हो गया था। फिर उनके स्थानांतरण किए गए थे।शिक्षकों ने बजाय नए स्थान पर योगदान देने के अपना स्थानांतरण आदेश निरस्त करने के लिए आवेदन किया था। इस मामले में शिक्षकों ने अपने अपने कारण बताए थे। विभाग ने सभी आवेदनों के लिए समीक्षा बैठक की थी। जिसके आधार पर नई स्थानांतरण सूची तैयार हुई थी। जानकार सूत्रों के अनुसार पिछले 11 सितंबर को जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जिले के सभी छः खंड शिक्षधिकारियों को लिखे पत्र में कुल 42 व 2 शिक्षकों की सूची संलग्न करते हुएं बताया था कि शिक्षकों के आवेदनों के अनुरूप समीक्षा बैठक में लिए गए निर्णय के तहत उपरोक्त सभी शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से पदमुक्त किया जाए ताकि वे नए विद्यालय में योगदान दे सकें। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। अब इस मामले में उप खंड शिक्षा अधिकारी द्वारा नए सिरे से संबंधित विद्यालयों के प्रधान अध्यापकों को पत्र लिख कर स्थानांतरित किए गए शिक्षकों को पदमुक्त करने के लिए कहा है।

समस्या यह है कि जो अध्यापक लबे समय से दुर्गम में सेवा दे रहे हैं और जिन्हें इस नीति के तहत सुगम में आना है वे आदेश को तत्काल प्रभाव से लागू होते हुए देखना चाहते हैं। करीब डेढ़ दशक से दुर्गम में सेवाएं दे रहे एक शिक्षक ने इस संबंध में “परम नागरिक” से कहा कि आदेश का लागू न हो पाना विडंबनापूर्ण है। जाहिर है कि अपनी ही नीति को जमीन पर उतरना सरकार के लिए चुनौती बन गया है।