बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।।
कलियर में परंपराओं के अनुरूप प्रारंभ हुआ साबरी उर्स

एम हसीन

पीरान कलियर। अल्लामा इकबाल के इस शेर के मद्दे नजर अगर तीर्थ स्थल पीरान कलियर की स्थिति का विश्लेषण किया जाए तो यहां किसी भी प्रकार के सुधार के लिए अभी कम से कम ढाई सौ साल और इंतजार करना पड़ेगा। कारण यह है कि अभी सुल्तान ए कलियर ओ साबरी सिलसिला हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर का महज 756वाँ उर्स चल रहा है। हजारों तो क्या हजार में ही अभी ढाई सौ साल की कमी है। यह तो साफ दिख रहा है कि खुद साबिर के अलावा पिछले 800 सालों में यहां कोई दीदावर यहां नहीं आया। अब साबिर ने इतना तो कर दिया कि दुनिया जहान से लाखों लोग यहां खिंचे चले आएं; लेकिन इन लोगों के लिए कोई सहूलियत हो ऐसा करने वाला यहां अभी कोई नहीं आया। एक अलग संस्कृति की सरकार और उसी संस्कृति में संस्कारित वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में बड़े सपने दिखाए थे, बड़े वादे किए थे, लेकिन वे भी अब लोगों को राष्ट्रभक्ति के सर्टिफिकेट बांटने तक सीमित हो गए हैं। बाकी सब के लिए कलियर कितना रूटीन है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां उर्स का इंतजाम जिन ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के हाथ में है उन्होने साबरी उर्स शुरू होने के बाद महज 4 दिन पहले रुड़की में पदभार ग्रहण किया है। बेशक वे खूब दौड़ धूप कर रहे हैं लेकिन चार दिन में वे कितना कर पाएंगे? और यह तय है कि अगला उर्स करने का उन्हें मुश्किल से ही मौका मिलेगा।

मुझे बहुत मैसेज भेजे जा रहे हैं कि मैं केंद्र सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन अधिनियम पर भेजा गया फॉर्म भर कर भेजूं। लेकिन मैं पहले चीजों को जान लेना चाहता हूं। समझ लेना चाहता हूं। मेरा सवाल है कि अगर वक्फ संशोधन निरस्त हो गया तो किसके हित में होगा? निश्चित रूप से उनके हित में होगा जो आज वक्फ पर काबिज हैं। कारण यह है कि मौजूदा दौर में वक्फ का कोई लाभ आम मुसलमान को तो हो नहीं रहा है। मौजूदा राज्य सरकार ने अपनी शुरुआत में वक्फ का मुख्य कार्याधिकारी आई पी एस मुख्तार मोहसिन को बनाया था। उन्होंने अवैध कब्जे में फंसी वक्फ की एक दो संपत्तियों के मामले में मुक़दमे कायम कराने के आदेश दिए थे। इसके बाद उन्होंने खुद ही इस पद पर न रहने की रुचि दिखानी शुरू कर दी थी। अनुमान लगाया जा सकता है कि उन पर इस मामले में कितना दबाव बना होगा और दबाव बनाने वाले लोग कौन होंगे?

लेकिन शायद ऐसा कोई दबाव शादाब शम्स के ऊपर नहीं होगा। कारण यह है कि उन्हें परिणाम देने लायक कुछ करना ही नहीं है। वे अगर मुझे मुलाकात का समय देंगे तो मैं उनसे इस बारे में पूछूंगा भी। वक्फ अधिनियम संशोधन को लेकर भी उनकी राय मालूम करूंगा। लेकिन मेरी भरपूर कोशिशों के बावजूद वे मुझे समय ही नहीं दे रहे हैं।

इस सबके बीच परंपरागत तरीके से साबरी उर्स प्रारंभ हो गया है और आज उसकी दसवीं तारीख है। अर्थात बुध को उर्स का समापन भी हो जाएगा। कुछ लोग आ चुके हैं, कुछ आ रहे हैं और कुछ अभी आयेंगे। उसके बाद वापिस लौट जायेंगे और एक और उर्स का समापन हो जायेगा। जाहिर है कि यहां से कोई अध्यात्म का, मानववाद का, प्रेम भाईचारे का संदेश इस बार भी प्रवाहित नहीं होगा। कैसे होगा! जो दरसगाहें थी, जिनमें बैठकर सूफी संत अपने अनुयायियों को संबोधित करते थे, कोई शिक्षा देते थे, वे तो दरगाहें बन गई हैं। अब तो महफिलों में सूफियों का संबोधन नहीं बल्कि केवल कव्वालियां होती हैं। यही सब इस साल भी होता दिखाई दे रहा है।