नीम हकीम न हों तो रुड़की में लोगों न मिले इतवार को चिकित्सा सुविधा
एम हसीन
रुड़की। यहां सवाल हाईटेक स्वास्थ्य सुविधाओं का नहीं है। गंभीर बीमारियों में तो रुड़की के मरीज को हर हाल में बाहर किसी हॉस्पिटल में ही जाना पड़ेगा। ताज्जुब की बात है कि चिकित्सकों की मंडी का रूप हासिल कर चुके रुड़की नगर में सामान्य परामर्श सुविधा भी निर्बाध रूप से, हफ्ते के 7 दिन, उपलब्ध नहीं है। इतवार के दिन अगर किसी व्यक्ति को बुखार भी हो जाए तो उसे स्पेशलिस्ट डॉक्टर तो मुश्किल से ही मिलेगा। बीमार चाहे या न चाहे, उसे या तो मेडिकल स्टोर से खुद ही कोई बुखार रोधी गोली कैप्सूल लेना होगा या फिर गली मोहल्ले के किसी ऐसे डॉक्टर के पास जाना होगा जिसे व्यवस्था नीम हकीम करार देती है। किसी गंभीर अलामत या एक्सीडेंट के मामले में तो नीम हकीम भी जाहिर है कि हाथ खड़े कर देता है।
रुड़की में हाई लेवल फैसिलिटीज के साथ मल्टी स्पेशियालिस्टी वाला कोई निजी हॉस्पिटल भी नहीं है। कोई एकाध अस्पताल अगर ऐसा होने का अगर दावा करता भी है तो वह पूरे तौर पर सच नहीं है। एकाध हॉस्पिटल में एक से ज्यादा स्पेशलिटी वाले चिकित्सक हैं जरूर, लेकिन उनकी संख्या बेहद सीमित है। अधिकांश हॉस्पिटल, जो कहलाते तो नर्सिंग होम हैं लेकिन वास्तव में सिंगल या एक एडिशनल लेडी डॉक्टर बेस्ड कंसल्टेंट्स क्लिनिक मात्र हैं। अंतर केवल इतना है कि यहां डॉक्टर लाल पीली गोलियां या घोल मरीज को खुद नहीं देता। इसके विपरीत वह प्रिस्क्रिप्शन लिखता है और फिर उसी के कैंपस में स्थित मेडिकल स्टोर पर कोई उसी का भाई बंधु या नौकर चाकर अलग से दवाइयां देता है। यूं डॉक्टर को सीधे तौर पर केवल कंसल्टेशन फी मिलती है। बहरहाल, इन नर्सिंग होम्स की संख्या नगर और नगर के चारों तरफ बेहिसाब, अनगिनत है। सच यह है कि रुड़की में ऐसे नर्सिंग होम्स की गिनती करना ही अपने आप में एक बड़ा प्रोजेक्ट है। इसके बावजूद यह सच है कि यहां रविवार के दिन सामान्य या हार्ट अटैक या एक्सीडेंट आदि आपातकालीन मामलों में विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं मिलते।
जैसा कि सब जानते हैं कि रविवार सरकारी छुट्टी का दिन है। इस दिन आपातकालीन सेवा को छोड़कर नगर की तमाम सरकारी स्वास्थ्य मशीनरी छुट्टी मनाती है। रुड़की में राज्य सरकार का उप जिला चिकित्सालय है जो एलोपैथी पद्धति से संचालित होता है। इसका प्रशासनिक मुखिया सी एम एस के रूप में वरिष्ठ चिकित्सक होता है। इसके अलावा यहां राज्य सरकार आयुर्वेदिक और यूनानी पद्धति से भी एक चिकित्सालय संचालित करती है। एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी नगर में सरकारी तौर पर संचालित किया जाता है लेकिन आम मरीज के लिए उसकी लोकेशन ढूंढना ही आसान नहीं। फिर भी, यह सब ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होता रहा है। बात केवल इन हॉस्पिटल्स की सीमित क्षमताओं की ही नहीं है बल्कि उनमें उपलब्ध न के बराबर सुविधाओं की भी है। रुड़की नगर की यह भी एक विडंबना है कि यहाँ किसी धार्मिक ट्रस्ट द्वारा कोई खैराती या इमदादी अस्पताल संचालित नहीं किया जाता। राम कृष्ण मिशन ट्रस्ट या चिन्मया ट्रस्ट या शांतिकुंज या गुलबर्गा दरगाह ट्रस्ट या अजीम प्रेमजी ट्रस्ट या बिरला ट्रस्ट या डालमिया ट्रस्ट आदि कोई ट्रस्ट यहां कोई हॉस्पिटल संचालित नहीं करता। समाजसेवा के मामले में वर्ल्ड वाइड क्लेम रखने वाले रोटरी और लायंस आदि नगर में क्लब तो बहुत हैं लेकिन ये संगठन भी कोई हॉस्पिटल या क्लिनिक नहीं चलाते; इनमें कोई एक संगठन मात्र यहां एक फिजियोथेरेपी सेंटर ही चलाता है। बाकी तो सच यह है कि इन क्लबों को ही नगर के डॉक्टर चलाते हैं।
ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि क्षेत्र की जनता पूरे तौर पर निजी चिकित्सकों पर ही निर्भर करती है। इसका एक कारण यह है कि रुड़की नगर छ: विधानसभा क्षेत्रों का केंद्र है और इसके चारों तरफ सैकड़ों की तादाद में गांव हैं। इन गांवों के लोगों की चिकित्सा सुविधाओं को लेकर निर्भरता पूरे तौर पर रुड़की के ऊपर है। कोढ़ में खाज यह है कि रुड़की का सराउंडिग मुस्लिम आबादी वाला है जिनका खानपान और रहन सहन बीमारियों को दावत देता है। यातायात को लेकर उनकी मजबूरियां और अज्ञानता एक्सिसेंट्स को दावत देती है। और इन्हीं कारणों से वे डॉक्टर्स के लिए ईजी टारगेट हैं। हैरत नहीं कि पिछले दशकों में दूर दूर से आकर चिकित्सकों ने यहां अपने नर्सिंग होम बनाए हैं। लेकिन वह अलग बहस का विषय है। अहम बात यह है कि इन नर्सिंग होम्स में अधिकांश में इतवार के दिन कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होती। हाल के वर्षों में कितने ही ऐसे लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जिनके हालात देहरादून या ऋषिकेश या दिल्ली जाने लायक थे नहीं और रुड़की में उन्हें सुविधा मिली नहीं। सवाल यह है कि क्या डॉक्टर्स को खुद ही यह तय नहीं करना चाहिए कि उनमें कुछ इतवार को भी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराएंगे?