यह तो लोक निर्माण विभाग की थी जिम्मेदारी
एम हसीन
रुड़की। रुड़की को हरिद्वार से जोड़ने वाला सोलानी नदी का रेगुलर पुल कमज़ोर होने के कारण बंद होने के बाद नगर वासियों को एक वैकल्पिक मार्ग दिए जाने की मांग आम जनता के स्तर पर किया जाना कोई ताज्जुब की बात नहीं है। जन प्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक के स्तर पर इस मांग को स्वीकार किया जाना और फिर उसके लिए अनुमोदन किया जाना भी स्वाभाविक है। वैकल्पिक व्यवस्था में रपटा भी एक व्यवस्था है। इसलिए अगर रपटा निर्माण की संस्तुति नगर विधायक ने की और लोक निर्माण विभाग ने उसका निर्माण किया तो इसे केवल इसी अर्थ में आपत्तिजनक माना जा सकता है कि रपटा स्थाई व्यवस्था नहीं हो सकती। जितना यातायात रुड़की हरिद्वार के बीच डाउन एंड अप में चलता है और जितना पानी सोलानी नदी में साल भर चलता है, उसके हिसाब से स्थाई व्यवस्था पुल का निर्माण ही है और लोक निर्माण विभाग इसी मामले में आना कानी कर रहा है।
जहां तक सवाल जन प्रतिनिधियों का है, तो रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा विधानसभा में दो बार और कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद एक बार सोलानी पुल के निर्माण की मांग सरकार से कर चुके हैं। लेकिन इस मामले में सरकार की कोई पहल अभी तक सामने नहीं आई है, सिवाय इसके कि लोक निर्माण विभाग पुल की डी पी आर, ऐसा केवल बताया जाता है सच क्या है पता नहीं, शासन को भेज चुका है। अगर यह सच है तो शासन में इस मामले की प्रगति क्या है यह मालूम नहीं। लेकिन एक चीज जो सामने आ चुकी है वह रपटा है। यह जांच का मुद्दा हो सकता है कि रपटे में भ्रष्टाचार हुआ या नहीं, हुआ तो विभाग ने किया या विधायक ने किया, किया तो कितना किया; लेकिन इस बात पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है कि रपटा बनाया गया। दूसरा सच यह है कि यह इस प्रकार का पहला रपटा नहीं है। दो साल पुल को कमज़ोर हुए हुए हैं और यह दूसरा रपटा है। इससे पहले एक रपटा पिछली बरसात से पहले लोक निर्माण विभाग ने रेगुलर पुल के पश्चिम में पठानपुरा की आबादी की ओर बनाया था जो पिछली बरसात में पहली ही बारिश में बह गया था। वह वास्तव में रपटा नहीं बल्कि पाइप्स के जरिए बनाया गया एक प्रकार का पुल ही था जिसमें नदी का पानी पाइप्स से पास हो कर जाना था। लेकिन जो पहली ही बारिश में बिखर गया था। लोक निर्माण विभाग के अभियंताओं के तकनीकी ज्ञान पर कोई सवाल यह संवाददाता लगाने की स्थिति में नहीं है, लेकिन सामान्य ज्ञान का मामला अलग है। सामान्य ज्ञान यह है कि सोलानी वर्ष भर बहने वाली नदी है और इसमें रुड़की नगर सहित पीछे जितनी आबादी है उसका गंदा पानी भी बहता है। दूसरी बात यह कि यह बरसात के महीनों में अक्सर उफान पर ही रहती है। इसलिए जो पाइप्स वाला रपटा पिछले साल बनाया गया था उसे सामान्य दिनों के लिहाज से तो पर्याप्त माना जा सकता था लेकिन बरसात के लिहाज से नहीं। इसका आगे अर्थ यह है कि विभाग ने सोलानी नदी की प्रवृत्ति, उसकी वास्तविक स्थिति का अध्ययन किए बगैर रपटे का निर्माण किया गया। जाहिर है कि विभाग ने निर्माण के नाम पर लीपा पोती की और जब उस मामले में अभियंताओं पर कोई सवाल नहीं उठे तो उनके बढ़े हैसलो ने दूसरे रपटे की बुनियाद रखी।
दूसरा रपटा, जो आदर्श नगर की ओर बनाया गया, को लेकर “परम नागरिक” विस्तृत अध्ययन कर रहा है, तमाम जानकारियां इकठ्ठी की जा रही हैं और तब इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट पाठकों के सामने प्रस्तुत की जायेगी। फिलहाल बात केवल इतनी है कि रपटे के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार को पहले महानगर कांग्रेस ने उठाया, फिर रपटे के औचित्य और उससे होने वाली परेशानी को लेकर ग्रीन वे स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमती माला चौहान ने सवाल उठाए और फाइनली पूर्व मेयर गौरव गोयल ने “सूचना का अधिकार अधिनियम” के अंतर्गत जानकारी प्राप्त करने के बाद आरोप सीधे नगर विधायक प्रदीप बत्रा पर लगाए तो सफाई देने के लिए कौन आगे आया? हैरत की बात है कि नगर विधायक आगे आए। दिलचस्प रूप से लोक निर्माण विभाग ने इस मामले में कोई पहल नहीं की। बेशक विधायक अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देते लेकिन वे तो लोक निर्माण विभाग के पैरोकार बन गए। बजाय इसके कि लोक निर्माण विभाग उनका पैरोकार बनता वे लोक निर्माण विभाग के पैरोकार बन गए।
दूसरी ओर विभाग के मुख्य अभियंता ने तो छोड़िए खंड के अधिशासी अभियंता ने ही अभी तक एक विज्ञप्ति जारी कर या एक वीडियो जारी कर स्थिति को स्पष्ट करने की कोई कोशिश नहीं की। कोई पत्रकार जानकारी हासिल करने लो नि वि कार्यालय जाए भी तो वहां कोई अधिकारी उपलब्ध नहीं मिलता। जबकि सवाल दर्जनों हैं। सवाल तो यह है कि विभाग नगर विधायक के माध्यम से कह रहा है कि ठेकेदार को अभी केवल 13 लाख रुपए से कुछ अधिक का भुगतान हुआ और बाकी भुगतान काम पूरा होने के बाद किया जायेगा। सवाल यह है कि काम क्यों पूरा नहीं हुआ? जब काम पिछले दिसंबर महीने से चल रहा है तो बरसाती मौसम के आने से पहले वह पूरा क्यों नहीं हुआ? एक रपटा निर्माण के लिए अगर विभाग को इतना समय पर्याप्त नहीं है तो उसे पुल निर्माण के लिए कितना समय दरकार होगा? माना कि रपटा अगर एक बार अस्तित्व में आ जायेगा तो सामान्य दिनों में भी लोगों को आवाजाही के लिए उसका लाभ मिलेगा। लेकिन इसका मतलब क्या यह हुआ कि बरसात में लोगों को रपटे का लाभ नहीं मिलना चाहिए?
यही दरअसल विभाग की नीयत पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है। जाहिर है कि अगर इस बार रपटे को लेकर सवाल नहीं उठते तो क्या इस बात पर चर्चा होती कि रपटा निर्माण हुआ था, उसका एस्टीमेट कितना था, कितना भुगतान ठेकेदार को हुआ और कितना जी एस टी सरकार को गया? चाहे कोई कुछ कहे लेकिन यह अपने आप में सवाल है कि इस मामले में लोक निर्माण विभाग की ओर से जवाब देने की जिम्मेदारी नगर विधायक ने क्यों सभाली? नगर विधायक की ओर से लोक निर्माण विभाग ने यह जिम्मेदारी क्यों नहीं ली?