फिर भी क्या 2027 में खतरे की जद में हैं प्रदीप बत्रा?
एम हसीन
रुड़की। 2027 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर खुद को रुड़की विधानसभा क्षेत्र में लॉन्च करते हुए चौधरी महिपाल सिंह एडवोकेट ने नगर विधायक प्रदीप बत्रा पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने उस हकीकत को आधिकारिक जुबान दी जो नगर का बच्चा-बच्चा जानता है। उन्होंने कहा कि “प्रदीप बत्रा के कार्यकाल में नगर का विकास नहीं हुआ। इसके विपरीत केवल उनका अपना विकास हुआ।” बात सच है। दो दशक पहले के इस मामूली मिठाई कारोबारी की आर्थिक तरक्की अविस्मरणीय है, अतुलनीय है, हैरत अंग्रेज है। पौने दो दशक में ही वे अनगिनत करोड़ की ऐसी संपत्ति के मालिक बन गए हुए हैं जो छुपती भी नहीं; बिना चश्मे के ही सबको दिखती भी है।
इतनी बड़ी संपत्ति के मालिक वे क्यों और कैसे बन गए हैं, इसकी ओर एक इशारा हाल में महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेन्द्र चौधरी ने तब किया था जब प्रदीप बत्रा ने सोलानी पुल के निर्माण की शुरुआत की थी। तब राजेंद्र चौधरी ने प्रदीप बत्रा को सलाह दी थी कि वे पुल निर्माण मामले में “40 परसेंट” की बजाय निर्माण की गुणवत्ता पर ध्यान दें। यह बड़ा आरोप था जो इस ओर इशारा करता है कि प्रदीप बत्रा निर्माण कार्यों में 40 परसेंट तक हिस्सेदारी ले रहे हैं। अब चूंकि इस पुल का आगणन ही 38 करोड़ का है तो 40 परसेंट तो जाहिर है कि यह बहुत बैठता है। और विकास राशि के मामले में यह अकेला मद भी नहीं है। हालांकि “परम नागरिक” राजेंद्र चौधरी के इस आरोप की सत्यता से वाकिफ नहीं है, इसलिए इसकी वह इसकी पुष्टि भी नहीं कर सकता। अलबत्ता प्रदीप बत्रा की अनगिनत संपत्तियां जो सबको दिखाई देती हैं वे “परम नागरिक” को भी दिखाई देती हैं।इसी चीज को चौधरी महिपाल सिंह ने अधिकारिक जुबान दी है। लेकिन सवाल यह है कि इस हकीकत के बावजूद प्रदीप बत्रा के लिए क्या कोई राजनीतिक खतरा दरपेश है? यह एक विचारणीय प्रश्न है, जिसका उत्तर 2027 से पहले दिया जाना आसान नहीं है। कारण वह राजनीतिक मॉडल है जिसके तहत प्रदीप बत्रा अपना राजनीतिक कारोबार करते हैं।
दरअसल, प्रदीप बत्रा एक खास संस्कृति में बसते, रहते और राजनीतिक कारोबार करते हैं। इस संस्कृति में सामूहिक विकास के लिए कोई स्थान नहीं है, यह पिछले 18 वर्षों में साबित हो गया है, लेकिन इसमें व्यक्तिगत विकास के लिए भरपूर गुंजाइश है। यही कारण है कि प्रदीप बत्रा एक खास वर्ग के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। वे एक खास वर्ग के बीच इतना लोकप्रिय हैं कि 2022 के चुनाव में जब भाजपा का बच्चा-बच्चा उन्हें हराना चाह रहा था, तब भी वे आराम से चुनाव जीत गए थे। प्रदीप बत्रा द्वारा अपनाए जाने वाले राजनीतिक मॉडल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनका नियंत्रण भाजपा के स्थानीय नेतृत्व और भाजपा समर्थक मतदाता पर भले ही न हो, लेकिन 2022 में यह उनका नियंत्रण कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व पर भी पूरा दिखाई दिया था और कांग्रेस समर्थक मतदाताओं के एक वर्ग पर भी। फिर उन्होंने भाजपा समर्थक मतदाताओं में भी अपना एक व्यक्तिगत मतदाता वर्ग तैयार किया है। वैसे यह समर्थक वर्ग सीधे तौर पर कुछ सौ लोगों का ही है, लेकिन इन कुछ सौ के हाथ में हजारों लोगों और उनके परिवारों की रोजी-रोटी है। फिर प्रदीप बत्रा की परचेसिंग पावर बहुत जबरदस्त है। कड़वा सच है कि प्रदीप बत्रा के हाथ केवल वही नहीं बिक पाता जिसे खुद बत्रा ही न खरीदना चाहें। बेशक ऐसे कुछ भूखे-नंगे लोग नगर में हैं जिन्हें प्रदीप बत्रा ही खरीदना नहीं चाहते, बावजूद अपनी इस स्वीकारोक्ति के कि चुनाव में लेन-देन अब “ट्रेंड” बन गया है।
अब मसला यह है कि प्रदीप बत्रा को पराजित करने के इच्छुक लोग जब विरोधी मतदाता का आंकलन करते हैं तो एक खास वर्ग को थोक के भाव भाजपा या प्रदीप बत्रा के खिलाफ काउंट कर लेते हैं। और इसी बिंदु पर आकर उनका हिसाब बिगड़ जाता है। मतदान के समय ही यह स्पष्ट हो जाता है जिस वर्ग को बत्रा विरोधी माना गया था उसका बड़ा हिस्सा तो वोट करने ही नहीं गया। फिर मतगणना के समय पता लगता है कि जिस वर्ग को बत्रा का विरोधी माना गया था उसके एक प्रभावशाली हिस्से ने तो बत्रा ही वोट दिया है। नतीजा यह होता है कि जिन प्रदीप बत्रा को चुनाव के शुरू में 8 हजार वोटों से हारा हुआ माना जा रहा था वे प्रदीप बत्रा ढाई हजार वोटों से जीत गए। 2022 के विधानसभा चुनाव में यही हुआ था और 2027 में भी अगर ऐसा ही हो तो किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए। ऐसे में प्रदीप बत्रा पर लगने वाले आरोपों का सच तो चाहे कुछ भी हो, लेकिन इनसे उनका कुछ बिगड़ने की संभावना न के बराबर है।
