जिम्मेदारी ए डी बी के सिर डालकर अपना पल्ला झाड़ रही व्यवस्था

एम हसीन

रुड़की। शहर के बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि प्रदेश भर के इंजीनियरों का प्रशिक्षण रुड़की में होता है। इसके लिए इरीगेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के बराबर में बाकायदा प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया है। अर्थात, रुड़की में इंजीनियरों के उस्ताद रहते हैं। अगर इरीगेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट को दरकिनार कर भी दिया जाए तो भी आई आई टी को तो दरकिनार किया नहीं जा सकता। यह संस्था वैसे अपना कोई सम्बन्ध रुड़की शहर से नहीं रखना चाहती लेकिन यह भी सच है कि ब्लॉक से लेकर लोक निर्माण विभाग द्वारा तक किए जाने वाले किसी भी निर्माण की गुणवत्ता यही संस्था, अर्थात आई आई टी, ही प्रमाणित करती है। इसके लिए निर्माण एजेंसी संस्था को भुगतान करती है।

अहम यह है कि इस संस्था के अगर हाल के इतिहास का अवलोकन किया जाए तो यह देश की 7 सर्वोच्च तकनीकी शिक्षा संस्थाओं में से एक है। यहां से प्रतिवर्ष हजारों इंजीनियर बनकर निकलते हैं जो दुनियाभर में अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं।दूसरी ओर, अगर इसके रुड़की विश्वविद्यालय वाले इतिहास पर गौर किया जाए तो वह एशिया का सबसे पुराना तकनीकी शिक्षा संस्थान ठहरता है। वह संस्थान जिसने कभी सोलानी नदी का वह जलसेतु मार्ग बनाया था जो आज दो सौ साल बाद भी पूरी शान के साथ खड़ा है। यह कोई मानने वाली बात नहीं है कि सीवर योजना के तहत नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन ने एशियन डिवेलपमेंट बोर्ड की फंडिंग से जो लाइन डाली थी उसकी गुणवत्ता को आई आई टी ने प्रमाणित न किया हो या महज तीन महीने पहले पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पी डब्लू डी) ने जो सड़कें बनाई थी उनकी गुणवत्ता आई आई टी के उस्ताद प्रोफेसरों ने प्रमाणित न की हों। अब यह अलग बात है जो सड़कें पी डब्लू डी ने बनाई थी वे दरक रही हैं, बैठ रही हैं। खासतौर पर चंद्रपुरी में पूर्वा दीन दयाल में ए डी बी ने जो सीवर लाइन डाली थी वह और पी डब्लू डी ने जो सड़कें बनाई थी वे लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हो रही हैं। सड़कों के नीचे से लगातार मिट्टी सरक रही है और वे बैठ रही हैं। पी डब्लू डी या जल संस्थान या नगर निगम एक स्थान पर पैबंद लगाकर हालात नियंत्रित करने का प्रयास करता है तो सड़क दूसरे स्थान पर बैठ जाती है। यही चंद्रपुरी में हो रहा है और यही पुरवा दीन दयाल में।

घपला या घोटाला या लापरवाही या बदइंतजामी, जो भी हुआ वह एन बी सी सी के स्तर पर हुआ या ए डी बी के स्तर पर हुआ या फिर जल संस्थान और पी डब्लू डी ही सड़कों का इतिहास मालूम करे बगैर अंधाधुंध निर्माण या मरम्मत कर रहा है, ये सब जांच के बिंदु हैं। कारण यह है कि 10 साल पहले किया गया एन बी सी सी का काम स्थानीय जनता के लिए लगातार समस्या का कारण बनता रहा है। तमाम सड़कों का धंसता रहना तो इसका प्रमाण है ही, लोगों के अनेक आवास भी इसके कारण धसक चुके हैं जिनका मुआवजा भी संस्था को अदा करना पड़ा है। इसी प्रकार महज डेढ़ दशक के अंतराल में पी डब्लू डी द्वारा बनाए गए दो पुल रुड़की में ही नहर में ग़र्क हो चुके हैं। ऐसे में भरोसे के काबिल तो किसी संस्था को भी नहीं पाया जा सकता।