वैसे तो अब क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के कैंप की राजनीति करता है यह पार्टी का पूर्व दर्जाधारी
एम हसीन
रुड़की। 2009 में हरीश रावत ने जब हरिद्वार संसदीय सीट पर चुनाव लड़ा था तब उनकी मुख्य प्रतिस्पर्धा भाजपा के भगवाधारी यतींद्रानंद के साथ नहीं बल्कि क्षेत्र में पिछड़ा राजनीति के सुपर स्टार बसपा प्रत्याशी हाजी शहजाद के साथ हुई थी। उस समय हरीश रावत को हर मुस्लिम के सहयोग की जरूरत थी। खासतौर पर हाजी शहजाद के सजातीय तेलियों को उन्होंने सिर माथे पर रखा था। इसी कारण जब वे जीत गए थे और केंद्र से लेकर राज्य तक में कांग्रेस की सरकारें बनी थी, हरीश रावत केंद्रीय मंत्री और फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने थे तो ऐसे ही तेलियों की सबसे ज्यादा तूती बोली थी। ऐसी तेली कांग्रेसियों में एक उल्लेखनीय नाम परवेज़ अहमद का भी है जो मंगलौर विधानसभा क्षेत्र के मुंडियाकी गांव से आते हैं। आज कांग्रेस सत्ता में नहीं है और अभी उसके सत्ता में आने के कोई इमकान भी नहीं हैं तो स्वाभाविक रूप से सभी कांग्रेसियों की तरह परवेज अहमद के लिए भी संगठन की राजनीति ही एकमात्र सहारा बचता है। यही कारण है कि फिलहाल जारी पार्टी के संगठन सृजन अभियान के तहत उन्होंने पार्टी के ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद पर दावा किया है।
वैसे कांग्रेस की राजनीति में संगठन से लेकर सत्ता तक परवेज अहमद का हस्तक्षेप पहले से ही रहा है। मसलन, वे युवा कांग्रेस के लोकसभा क्षेत्र अध्यक्ष भी रह चुके हैं और प्रदेश महासचिव भी। वे हरीश रावत सरकार में राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। एक दौर में हरीश रावत के सबसे निकट के लोगों में एक रहे परवेज अहमद ने 2022 के विधानसभा चुनाव में पाला बदल किया था और वे अपने क्षेत्रीय पार्टी प्रत्याशी क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के साथ खड़े दिखाई दिए थे। उस समय तक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन एक बार कांग्रेस के विधायक रह चुके थे पार्टी की राजनीति में अपने प्रभाव को बढ़ाकर राष्ट्रीय सचिव स्तर तक ले जा चुके थे। ऐसे में परवेज अहमद के लिए क़ाज़ी गुट की राजनीति करना सेफ हो गया था। इसी कारण उन्होंने 2024 के लोकसभा और मंगलौर विधानसभा उप-चुनाव में भी राजनीतिक दिशा क़ाज़ी निज़ामुद्दीन से ही हासिल की। उन्होंने वही किया जो क़ाज़ी का इशारा था।
अब उन्हें इस वफादारी के इनाम की उम्मीद है। इसी कारण उन्होंने पार्टी के ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद पर अपना दावा ठोका है। उनके दावे को कई कारणों से हल्का नहीं माना जा रहा है। उनका अपना बायो-डाटा तो उल्लेखनीय है ही, अहम यह भी है कि संगठन में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और क़ाज़ी निज़ामुद्दीन को स्थानीय स्तर मंगलौर क्षेत्र में अब भी परवेज अहमद की जरूरत है। पिछले चुनाव में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की जीत महज ढाई सौ वोटो से हुई थी इसीलिए 2027 में भी उनके लिए एक-एक वोट की अहमियत होगी। बसपा में आज भी हाजी शहजाद की तूती बोल रही है इसलिए तेली चेहरे के रूप में परवेज अहमद की अहमियत कांग्रेस के लिए भी है। फिर यह सच तो अपने स्थान पर है ही कि ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद पर पिछली बार भी वीरेंद्र जाती को क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की पहल पर ही नियुक्ति मिली थी।