मुकाबला त्रिकोणीय हो तो वे निर्दलीय भी पड़ सकते हैं भारी

एम हसीन

रुड़की। संगठन सृजन अभियान पर निकली कांग्रेस की बैठक में पार्टी से निष्कासित चले आ रहे यशपाल राणा के जाने का उद्देश्य क्या था? क्या यह कि वे 2027 के टिकट के मद्दे नजर कांग्रेस के टिकट पर अपना दावा नहीं छोड़ना चाहते? या फिर यह कि विधानसभा चुनाव में वे सचिन गुप्ता के मुकाबले टिकट की लड़ाई भी जीतना चाहते हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सचिन गुप्ता के मुकाबले राजनीतिक संघर्ष तो वे पिछले निकाय चुनाव में ही जीत चुके हैं। और पिछले दो निकाय और एक विधानसभा चुनाव परिणाम का विश्लेषण बताता है कि अगर क्षेत्र में मुकाबला त्रिकोणीय हो तो यशपाल राणा के लिए निर्दलीय लड़ते हुए चुनाव जीतना ज्यादा आसान है। फिर उनका कांग्रेस के टिकट के लिए लालायित होना युक्तिसंगत नहीं लगता; खासतौर पर इसलिए कि 1989 के बाद रुड़की में कांग्रेस के जीतने का महज एक बार का रिकॉर्ड है जबकि नगर विधानसभा क्षेत्र में पिछले सवा दशक में निर्दलीय के रूप में खुद यशपाल राणा के ही दो बार जीतने का रिकॉर्ड है।

रिकॉर्ड बताता है कि हाल के निकाय चुनाव में रुड़की मेयर पद के लिए हुए मतदान का जो परिणाम रहा था उसके मुताबिक भाजपा की श्रीमती अनीता ललित अग्रवाल पत्नी ललित मोहन अग्रवाल करीब 33 हजार वोट लेकर पहले स्थान पर रही थी जबकि करीब 30 हजार वोट लेकर श्रीमती श्रेष्ठा राणा पत्नी यशपाल राणा दूसरे स्थान पर रही थी। इसके अलावा कांग्रेस की श्रीमती पूजा गुप्ता पत्नी सचिन गुप्ता करीब 20 हजार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रही थी। इसमें एक दिलचस्प बात यह रही थी कि रुड़की विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाले 20 वार्डों में श्रीमती राणा की हैसियत नंबर एक की रही थी जबकि खानपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले वार्डों में श्रीमती अग्रवाल को बड़ी बढ़त मिली थी। यहां श्रीमती राणा पिछड़ी थीं। झबरेडा और कलियर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले वार्डों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस की श्रीमती गुप्ता और निर्दलीय श्रीमती राणा के बीच हुआ था। संक्षेप यह है कि रुड़की विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष के बीच, श्रीमती राणा निर्दलीय होने के बावजूद नंबर वन रही थीं। इसके विपरीत 2022 का विधानसभा चुनाव खुद यशपाल राणा को सीधे मुकाबले के तौर पर फाइट करना पड़ा था। तब विजेता प्रदीप बत्रा को 36 हजार से अधिक वोट मिले थे जबकि यशपाल राणा को 34 हजार के करीब वोट मिले थे। यानी 2022 में 20 हजार के करीब वोट लेने वाला कोई प्रत्याशी नहीं था। इससे पूर्व 2019 का मेयर चुनाव भी तीन कोण पर हुआ था। तब भाजपा के मयंक गुप्ता ने करीब बीस हजार वोट लिए थे जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी के प्रत्याशी के रूप में यशपाल राणा के भाई रेशु राणा ने करीब 27 हजार और निर्दलीय गौरव गोयल ने करीब 30 हजार वोट लिए थे। इससे भी पूर्व 2013 के निकाय चुनाव में खुद यशपाल राणा निर्दलीय के रूप में मेयर चुने गए थे। यह अलग बात है कि तब मुकाबला बहुकोणीय हुआ था।

फिलहाल तक की नगर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में कांग्रेस में टिकट के एकमात्र प्रभावी दावेदार सचिन गुप्ता माने जा रहे हैं। चूंकि पार्टी ने 2019 का मेयर और 2022 का विधानसभा टिकट यशपाल राणा को दिया था इसलिए माना यह जा रहा है कि जब 2025 का मेयर टिकट सचिन गुप्ता को मिला है तो 2017 का विधानसभा टिकट भी उन्हें ही मिलेगा। इसी स्थिति को यशपाल राणा बदलना चाहते हैं। उनका मानना है कि जब मेयर टिकट उन्हें नहीं मिला और उन्होंने निर्दलीय मेयर प्रत्याशी के तौर पर अपना प्रभाव दिखा दिया तो विधानसभा टिकट पर उनका दावा बनता है। दूसरे शब्दों में, मेयर टिकट के मामले में टिकट को लेकर सचिन गुप्ता से मात खाने के बाद यशपाल राणा अब विधानसभा टिकट के मामले में पहले सचिन गुप्ता को मात देना चाहते हैं और फिर प्रदीप बत्रा से मुक़ाबिल होना चाहते हैं। यह उनकी प्रतिस्पर्धा अपने स्थान पर हो सकती है लेकिन क्षेत्र का समीकरण बताता है कि उन्हें त्रिकोणीय संघर्ष रास आता है। उनके लिए बेहतर यह है कि वे सचिन गुप्ता को कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ने दें और खुद निर्दलीय मैदान में आएं।