जबरन धर्मांतरण मामले में उम्र कैद सजा प्रावधान संबंधी विधेयक सरकार ने किया प्रवर समिति के हवाले
एम हसीन
देहरादून। विधानसभा का गैरसैंण सत्र शुरू होने से पहले कांग्रेस के मंगलौर विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया था कि भाजपा जब फंसती है तो मस्जिद, मदरसा और मजारों की राजनीति में पनाह लेती है। वे भाजपा और उसकी सरकारों पर जमकर बरसे थे। इससे यह अनुमान हुआ था कि अल्पसंख्यकों के मुद्दों को लेकर कांग्रेस सदन के भीतर आक्रामक लड़ाई लड़ने के मूड में है। ऐसा इसलिए खासतौर पर लगा था क्योंकि सरकार अपने एजेंडा पर कायम थी। ध्यान रहे कि सरकार ने धार्मिक शिक्षा प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव कैबिनेट में एक दिन पहले ही पास कराया था उसे कानून बनाने को वह प्रयासरत थी। इसी प्रकार जबरन धर्मांतरण मामले में सजा को उम्र कैद करने का भी सरकार इरादा लेकर चल रही थी। लेकिन जब सत्र शुरू हुआ तो ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया। महज डेढ़ दिन चले सत्र में कांग्रेस ने हंगामा तो खूब किया लेकिन, अल्पसंख्यक, खासतौर पर मुस्लिम, मुद्दों पर उसकी सक्रियता जीरो दिखाई दी। इसके विपरीत सदन में बसपा के एकमात्र विधायक हाजी शहजाद ने अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई। धर्मांतरण मामले में सजा बढ़ाए जाने को लेकर उनका अंदाज इतना आक्रामक था कि सरकार को आखिरकार कदम पीछे खींचना पड़े और विधेयक प्रवर समिति के हवाले करना पड़ा।
गौरतलब है कि उपरोक्त 19-22 अगस्त के बीच चलने वाला विधानसभा सत्र 20 अगस्त को ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। इस बीच सरकार ने मुख्य रूप से अनुदान मांगें पास कराई लेकिन उसने और भी कई प्रस्ताव पास करा लिए। इस बीच विपक्ष अपने मुद्दों को लेकर हंगामे में उलझा रहा। सरकार के एजेंडा पर उसका फोकस बना ही नहीं।
इसके विपरीत हाजी शहजाद का पूरा फोकस सरकार के कामकाज पर बना हुआ था या फिर जनसमस्याओं पर। मसलन, उन्होंने बिजली के बिलों पर लगने वाले अधिभार पर गंभीर सवाल उठाए और एकमुश्त समाधान योजना लागू करने की मांग की ताकि गरीब उपभोक्ता का अधिभार माफ कर दिया जाए और उससे बिल की मूल रकम वसूल कर लिया जाए।इशारों-इशारों में उन्होंने यह भी कह दिया कि जब उद्योगपतियों की फर्नेस आदि बड़े पैमाने पर बिजली चोरी कर रही हैं तो फिर गरीब आदमी को घरेलू बिजली मामले में कम से कम अधिभार से तो मुक्ति मिलनी चाहिए।
लेकिन हाजी शहजाद का मुख्य फोकस रहा धर्मांतरण विधेयक को लेकर जिस पर वे स्थगन प्रस्ताव लेकर आए और उनके प्रस्ताव के कारण ही यह विधेयक प्रवर समिति को सौंपे जाने पर सहमति बनी। सत्र के दौरान प्रवर समिति के सदस्यों के नामों पर चर्चा नहीं हुई। लेकिन जाहिर है कि बाद में जब समिति बनेगी तो हाजी शहजाद भी उसके सदस्य होंगे ही और तब वे इसमें जरूरी संशोधन प्रस्तुत करने की स्थिति में होंगे। यह वास्तव में उनकी एकल जीत है। अल्पसंख्यक, खासतौर पर मुस्लिम, मतों पर एकाधिकार रखने वाली कांग्रेस की इस मामले में शून्य भूमिका सिखाई दी।