सड़कों पर भारी पड़ रही “बिलो दी एस्टीमेट” व्यवस्था
उसपर कमीशन का कहर, छः माह नहीं ठहर पाती बिना सर्वे, बिना अध्ययन किए बनाई गए सड़कें

एम हसीन

रुड़की। नगर के लिए नगर विधायक प्रदीप बत्रा कोई बड़ी कल्पना नहीं दिखा पाए। अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में वे कोई बड़ा या उल्लेखनीय काम नहीं करा पाए, लेकिन सड़कों का पुनर्निर्माण तो होना ही है; सो हो रहा है। लेकिन इस काम में भी “बिलो दि एस्टीमेट” व्यवस्था समस्या पैदा कर रही है। खाज यह है कि क्षेत्र का सर्वे और अध्ययन किए बगैर सड़कें बनाने का विधायक पर जुनून है और अधिकारी उनके चापलूस। उस पर लगने वाला कमीशनखोरी का छौंक स्थिति को और अधिक लोमहर्षक बना रहा है। स्थिति यह है कि कोई सड़क छ: माह नहीं ठहर पाती। इससे जन-प्रतिनिधियों, अधिकारी-कर्मचारियों और ठेकेदारों की तो बल्ले-बल्ले हो रही है लेकिन जनता को ध्वस्त सड़कों और महंगाई की दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। सुनवाई कहीं है नहीं।

रुड़की नगर की एक विडंबना यह भी है कि यहां की अधिकांश मुख्य सड़कें नगर निगम के स्वामित्व में हैं। यही कारण है कि यहां पूरी सड़क पर एक साथ काम आमतौर पर नहीं हो पाता क्योंकि लंम्बी सड़कों को एकमुश्त बनाने लायक पैसा निगम के पास नहीं होता। ऐसी स्थिति में सड़क विधायक के प्रस्ताव पर राज्य वित्त योजना से बनती है और विधायक अपनी मर्जी से, अपनी जरूरत के हिसाब से, सड़क बनवाते हैं। मसलन, पिछली बार रामपुर चुंगी से सुल्तान चौक तक सड़क का निर्माण कराया गया था। यह सड़क चूंकि रामपुर चुंगी से सुल्तान चौक, चौक बाजार चौक, मेन बाजार चौक, निगम पुल से होते हुए मलकपुर चुंगी तक जाती है इसलिए पूरी सड़क के निर्माण के लिए पर्याप्त बजट न होने के कारण इसके एक तिहाई हिस्से को बना दिया गया था। यही कारण है कि लोक निर्माण विभाग इसके लिए न एकमुश्त प्लान बना पाया था और न ही क्षेत्र का अध्ययन कर यह तय कर पाया था कि सड़क निर्माण की पद्धति तारकोल निर्माण हो या सी सी निर्माण। चूंकि सुल्तान चौक मछली-मुर्गा कारोबार का गढ़ और यहां पानी का इस्तेमाल खूब होता है इसलिए चौक पर सड़क बनते ही ढह गई थी जो आज भी ढही हुई है। दरअसल इसका निर्माण तारकोल की बजाय सी सी पद्धति से वैसे ही होना चाहिए था जैसे आजकल राष्ट्रीय राजमार्ग बनाए जा रहे हैं। दूसरी बात, सड़क बिलो दि एस्टीमेट के तहत कंपटीशन कराकर नहीं बनाई जानी चाहिए थी, बल्कि गुणवत्ता के आधार पर बनाई जानी चाहिए थी। उसे टुकड़ों में नहीं बल्कि एकमुश्त बनाई जानी चाहिए थी। तब उम्मीद की जा सकती थी कि यह कुछ साल चल जाती। लेकिन अब।

विडंबना यह है कि इससे कोई सबक नहीं लिया गया और चंद्रपुरी में और पूर्वा दीन दयाल में टुकड़ों में ही, तारकोल पद्धति से ही सड़क बना दी गई, जबकि यहां सीवेज की समस्या पहले से बनी हुई थी और सड़क बैठ रही थी। नतीजा यह हुआ कि बनते ही दोनों सड़कें फिर बैठ गई और रास्ता पैबंदों के हवाले हो गया। जाहिर है कि अब एकदम तो कोई दोबारा इन सड़कों का निर्माण करा नहीं सकता। खुद को सर्व शक्तिमान और सुपर एजुकेटेड मानने वाले नगर विधायक भी नहीं। दरअसल, विधायक को चाहिए कि वे नगर की सभी बड़ी सड़कों का स्वामित्व लोक निर्माण विभाग को दिलवाना सुनिश्चित करें ताकि सभी सड़कों के लिए एकमुश्त प्लानिंग हो सके और उनके निर्माण की पद्धति भी तय हो सके। इसके साथ ही विभाग को चाहिए कि ठेकेदारों को ज्यादा कंपटीशन के लिए न उकसाएं ताकि सड़कों के निर्माण में गुणवत्ता आ सके और भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का साथ दें।