नगर पालिका की राजनीति में जारी है तूफान और विपक्ष का स्थापित चेहरा है खामोश

एम हसीन

मंगलौर। बताया गया है कि जुल्फिकार ठेकेदार ने हाल ही में एक आम की पार्टी के बहाने अपने शुभचिंतकों से मुलाकात की। उनकी यह सक्रियता लंबे समय के बाद रिकॉर्ड पर आई और वह भी महज सामाजिक रूप से। यह ताज्जुब की बात है। कारण यह है कि मंगलौर नगर पालिका की राजनीति में तूफान मचा हुआ है और जुल्फिकार ठेकेदार को नगर की जनता ने पिछले निकाय के चुनाव में विपक्ष के चेहरे के रूप में स्थापित किया था। उनकी चुनावी मुहिम का यह असर रहा था कि सूबे के सत्तारूढ़ दल को भी निकाय चुनाव में उनके पीछे आकर खड़ा होना पड़ा था। ऐसे में अपेक्षा यह की जा रही थी कि वे नगर पालिका की राजनीति के हर बिंदु पर, हर पक्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे, अपने रुतबे को अपने लिए राजनीति करने का सशक्त माध्यम बनाएंगे और उन लोगों का भरोसा कायम रखेंगे जिन्होंने उन्हें यह रुतबा दिया था। लेकिन ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। सरकार का पूरा संरक्षण होने के बावजूद मंगलौर नगर पालिका में विपक्ष का चेहरा अपनी कोई उपस्थिति नहीं दिखा पा रहा है।

जैसा कि सर्वविदित है कि मंगलौर नगर पालिका का पिछला निकाय चुनाव अजीब परिस्थितियों में हुआ था। तब कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी चौधरी इस्लाम को तकनीकी कारणों के चलते चुनाव से हटना पड़ा था और पार्टी को एक निर्दलीय मुहीउद्दीन अंसारी को अपना समर्थन देकर चुनाव लड़ाना पड़ा था। दूसरी ओर भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी नहीं दिया था और एक निर्दलीय जुल्फिकार ठेकेदार को अपना समर्थन दिया था। बसपा के प्रत्याशी रहे चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी सहित कुल आधा दर्जन प्रत्याशियों के बीच चुनाव मुहीउद्दीन अंसारी बनाम जुल्फिकार ठेकेदार के रूप में हुआ था। जीत मुहिददीन अंसारी की हुई थी और जुल्फिकार ठेकेदार पराजित हुए थे।

चूंकि मुहीउद्दीन अंसारी की जीत में चौधरी इस्लाम की निर्णायक भूमिका थी इसलिए स्वाभाविक रूप से संस्था पर चौधरी इस्लाम का दबदबा बना हुआ है। यह स्थिति खुद मुहीउद्दीन अंसारी को कितना पसंद है यह अलग विषय है लेकिन सभासदों पर यह भारी पड़ रही है। इसका प्रणाम यही है पिछले दिनों पालिका परिसर के भीतर ही चौधरी इस्लाम समर्थकों और सभासद पति मुहम्मद शफी एडवोकेट के बीच कथित रूप से मारपीट हुई जिसे लेकर, बताया जाता है कि, दोनों पक्षों की ओर से पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। पालिका के भीतर इतना कुछ हो रहा है कि व्यवस्था ठहर सी गई है। मसलन, पालिका ने सड़क का निर्माण शुरू कराया तो शिकायत के आधार पर जिलाधिकारी ने निर्माण रुकवा दिया। इसी प्रकार हाई कोर्ट में मामला पहुंच जाने के कारण निविदा प्रक्रिया ठहरी हुई है। अगर सूत्रों की बात पर यकीन करें तो इन दिनों नगर पालिका में सूचना का अधिकार आवेदनों के निस्तारण का काम मुख्य रूप से हो रहा है और आवेदन इतने हैं कि यह काम व्यवस्था पर भारी पड़ रहा है। आर्थिक अनियमितताओं के आरोप भी जब-तब सुनने में आते रहते हैं। पालिका अध्यक्ष मुहीउद्दीन अंसारी इन सारी चीजों से कैसे निपट रहे हैं यह एक अलग मसला है। अहम यह है कि व्यवस्था पूरे तौर पर ठहरी होने के बावजूद विपक्ष के चेहरे की खामोशी बनी हुई है। है न ताज्जुब की बात!