2027 को लेकर प्रणव सिंह चैंपियन से लेकर करतार सिंह भड़ाना तक सक्रिय

एम हसीन

रुड़की। अगर भाजपा की बात करें तो पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में भी खानपुर और मंगलौर सीटों पर क्रमशः रानी देवयानी और दिनेश पावर के रूप में दो गुर्जरों को टिकट दिया था। फिर 2024 में मंगलौर उप-चुनाव में भले ही दिनेश पावर को रिपीट नहीं किया गया था लेकिन करतार सिंह भड़ाना के रूप में टिकट गुर्जर को ही दिया था। चूंकि दो टिकट हासिल करने वाली गुर्जर अकेली बिरादरी थी इसलिए इससे यह साबित होता है कि भाजपा की निगाह में गुर्जर बिरादरी का दर्जा कितना बुलंद है। ऐसे में अगर 2027 में भी पार्टी रानी देवयानी या उनके पति प्रणव सिंह चैंपियन और मंगलौर सीट पर करतार सिंह भड़ाना को टिकट देती है तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा होगा? 2022 और 2024 के इतिहास को ही अगर आधार माना जाए तो यह मुश्किल लगता है। दरअसल, समस्या विधानसभा चुनाव के परिणाम की नहीं है। समस्या उसके बाद के हालात की है। समस्या यह है कि पार्टी अगर इन दोनों को चुनाव लड़ाती है और दोनों चुनाव जीत जाते हैं और पार्टी सत्ता में आ जाती है तो इन दोनों में मंत्री कौन बनेगा? या दोनों बनेंगे? या कोई भी नहीं बनेगा?

यह इतिहास है कि 2022 में भाजपा के दो गुर्जरों सहित कांग्रेस और बसपा के कुल 4 गुर्जर चुनाव मैदान में आए थे लेकिन जीत कोई भी नहीं पाया था। यही स्थिति उप-चुनाव की रही थी। अब 2027 सामने है। किसी के लिए कोई भी सवाल हो लेकिन बिरादरी के सामने सवाल विधानसभा में प्रवेश का है। 2022 के बाद जिस प्रकार की राजनीति जिले में हुई उसमें यह और भी अधिक अहम हो गया है। इसलिए बिरादरी किसी भी गुर्जर चेहरे पर समझौता कर सकती है। यह वह इक्वेशन है जिससे भाजपा को भी परहेज नहीं होगा अर्थात पार्टी के लिए भी यह स्थिति आदर्श होगी कि यदि कोई नया गुर्जर चेहरे सामने आता है और वह जीत भी जाता है तो समस्या नहीं। लेकिन जाहिर है कि स्थिति स्थापित चेहरों को तो आसानी से हजम नहीं होगी न। मसलन, प्रणव सिंह चैंपियन तो यही चाहेंगे न कि टिकट उन्हें ही मिले। बड़ी बात नहीं कि यही चाहत करतार सिंह भड़ाना की भी होगी। अब सवाल यह है कि इन दोनों की चाहत से बाकी गुर्जर राजनीति और जिला व प्रदेश की भाजपा राजनीति की सहमति क्योंकर होगी?

यह एक स्थापित सत्य है कि जिले में भाजपा की राजनीति दो गुटों में विभाजित है और चैंपियन और भड़ाना दोनों ही इनमें से किसी गुट से नहीं जुड़े हैं। चैंपियन जहां अपने इतिहास और अपने व्यक्तिगत दम-ख़म के आधार पर टिकट की दौड़ में हैं जबकि भड़ाना भाजपा हाई कमान की शह पर राजनीति कर रहे हैं। जिले की शेष गुर्जर राजनीति इन दोनों गुटों में बंटी हुई है। जिले की भाजपा राजनीति का एक गुट किसी भी गुर्जर को जीतते हुए देखना नहीं चाहता जबकि दूसरे गुट की दिलचस्पी अपने व्यक्तिगत वफादार को टिकट देकर विधायक बनाने में दिखाई दे रही है। यूं एक नया ही चेहरा गुर्जर राजनीति के फलक पर उभर रहा है। लेकिन अभी चुनाव में बहुत समय बाकी है। इसलिए फिलहाल यह दावा करना आसान नहीं है कि जिले की गुर्जर राजनीति चैंपियन बनाम भड़ाना के प्रभाव से बाहर जा रही है। लेकिन इतना तय है कि नए चेहरे की सुगबुगाहट बरकरार है।