उमेश कुमार सोशल मीडिया पर खुलकर करते रहे ईरान का समर्थन, हर मिसाइल हमले पर खुलकर बांटते रहे मुसलमानों के साथ खुशियां
एम हसीन
रुड़की। खानपुर विधायक उमेश कुमार इस बात को जानते हैं कि स्थानीय देहाती समाज सोशल मीडिया पर बहुत समय देता है। वह अपने स्थानीय दुखों को राष्ट्रीय, कई बार अंतराष्ट्रीय मुद्दों, का समर्थन या आलोचना करके कम करता है। वह गली में होने वाले जल-भराव के लिए भी स्थानीय नेतृत्व को केवल फल देता है। उसका समर्थन या विरोध राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय नेतृत्व के फैसलों से ही तय होता है। इसी परम्परा के तहत उमेश कुमार समझते थे कि जब इजराइल और ईरान के बीच युद्ध के हालात बने तो स्थानीय मुस्लिम समुदाय के समर्थन का ढब क्या रहेगा। अपनी इसी समझ के तहत उमेश कुमार ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ईरान के समर्थन का स्टैंड लिया और जमकर मुस्लिम समर्थन बटोरा। रही-रही कसर इस बात ने पूरा की, कि मुस्लिम समुदाय की निगाह में इस बार इजराइल ही नहीं बल्कि उसका हेड ऑफ द डिपार्टमेंट अमेरिका भी बुरी तरह मात खाकर बैठा।
जैसा कि सब जानते हैं कि हर बार की तरह इस बार भी मुकाबला इजरायल से था, जोकि खाड़ी देशों में मुसलमानों का घोषित विरोधी है। जो फिलहाल भी ग़ज़ा में मुसलमानों पर जुल्म कर रहा है, उन्हें केवल बमों से ही नहीं मार रहा बल्कि भूख से, प्यास से और इलाज की कमी से भी मार रहा है। इसलिए जब उसने ईरान पर वार किया और ईरान ने कई गुना ताकत के साथ पलटवार किया, इजराइल से तौबा बुलवा दी तो यह बात महत्वपूर्ण नहीं रह गई कि ईरान एक शिया मुल्क है। महत्वपूर्ण बात यह हो गई कि इज़राइल का युद्ध ईरान से था और ईरान कमजोर नहीं लड़ रहा था। वह इजराइल को नाकों चने चबवा रहा था, वह इजराइल को गंदे घाट पर पानी पिला रहा था, वह अपनी मिज़ाइलों के हमलों से इजराइल को तबाह कर रहा था। वह मुसलमानों पर इजराइल द्वारा किए गए जुल्म का बदला ले रहा था।
इसलिए ईरान का शिया मुल्क होना गौण हो गया था। साथ ही ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खमेनेई मुस्लिम रहनुमा के रूप में उभरे थे। खमेनेई के प्रति स्थानीय मुस्लिम समुदाय की मुहब्बत को इस बात ने और बढ़ाया था कि स्थानीय राजनीति का दक्षिणपंथी वर्ग इजराइल का समर्थन कर रहा था। ऐसे में सवाल मुस्लिम समुदाय के साथ खुशियों को बांटने का था लेकिन इसके लिए कोई उपलब्ध नहीं था। कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व के सभी गुट इस पर उसी प्रकार खामोश थे जिस प्रकार भाजपा के स्थानीय गुट खामोश थे। बसपा भी खामोश थी और सपा भी। यहां तक कि ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन का स्थानीय नेतृत्व भी इस मामले में खामोशी धारण किए हुए था। मुस्लिम समुदाय को लग रहा था कि क्षेत्र में उसके दुख में साथ देने के लिए तो कोई है ही नहीं, उसके साथ खुशियां बांटने वालों में भी कोई नहीं था। ऐसे में खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार इस कमी को पूरा न करते तो कौन करता?हरिद्वार जिले के 11 में वे संभवत: अकेले विधायक रहे जिन्होंने शुरुआती दौर में ही इस युद्ध को लेकर ईरान के पक्ष में स्टैंड लिया और अंत तक वे अपने स्टैंड पर कायम रहे। इसका उन्हें भरपूर लाभ मिला। उनके समर्थकों ने उनकी पोस्टों को दूर-दूर तक शेयर किया और उनके लिए नया समर्थक वर्ग तैयार किया। यह समर्थक वर्ग 2027 में किस रूप में उमेश कुमार की राजनीति गढ़ेगा यह देखने वाली बात होगी। वर्तमान की स्थिति यह है कि उमेश कुमार के मुस्लिम समर्थन का पैमाना छलक-छलक जा रहा है।