तीर्थाटन के विकास को समर्पित मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कब जायेगा इस ओर ध्यान?
एम हसीन
कलियर शरीफ। जब धार्मिक स्थल सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ तीर्थाटन के रूप में आय का माध्यम भी हों तो उनके विकास पर कुछ अधिक ध्यान दिया जाना कोई ताज्जुब की बात नहीं है। ऐसे में अगर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी देवभूमि में मंदिरों को ढूंढ-ढूंढ कर उनके जीर्णोधार या नवनिर्माण के लिए बजट जारी कर रहे हैं तो इसे गलत नहीं माना जाना चाहिए। इस मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सोच जरा इसलिए भी कुछ अलग, कुछ व्यापक नजर आ रही है कि उन्होंने पुरानी परंपराओं से आगे बढ़कर देवभूमि में स्थित दूसरे धर्म की आस्था के केंद्रों को भी अहमियत देना शुरू किया है। मसलन, सिख आस्था के केंद्र हेमकुंड साहब की यात्रा को सरकारी तौर पर चारधाम यात्रा के समकक्ष ही महत्व दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार की ऐसी ही व्यापक भावना क्या कलियर शरीफ दरगाह क्षेत्र के लिए नहीं होनी चाहिए? कलियर शरीफ में भी तो लाखों तीर्थ यात्री आ रहे हैं, जो राज्य के तीर्थाटन में अपना आध्यात्मिक और आर्थिक रोल व्यापक रूप से अदा कर रहे हैं।
जहां तक सवाल कलियर शरीफ का है तो यहां की व्यवस्था उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अधीन आती है। नारायण दत्त तिवारी सरकार के दौरान उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन जब चौधरी रईस अहमद के नेतृत्व में हुआ था, तब आम यह प्रचार किया जाता था कि इसे राज्य का पांचवां धाम बनाया जाएगा। तिवारी सरकार को बहुत उदार हृदय सरकार माना जाता है। उसने अपने कार्यकाल में कलियर को भी अहमियत दी थी और यहां हज हाउस निर्माण कराया था। लेकिन बाद का इतिहास बताता है कि यहां का यही अंतिम निर्माण साबित हुआ है। बनने को यहां पुलिस थाना भी बना है और कलियर को नगर पंचायत का दर्जा भी दिया गया है, लेकिन इससे तीर्थाटन के विकास का कोई रास्ता नहीं निकला। फिर भी अगर कुछ हुआ तो यह कि यहां निजी गेस्ट हाउस बहुत बने। लेकिन इसे भी तिवारी सरकार की ही उपलब्धि माना जाना चाहिए, क्योंकि उसी सरकार ने चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन विकास योजना बनाई थी और भारी-भरकम सब्सिडी के साथ ऋण वितरित किए गए थे। इसका लोगों ने लाभ उठाया और अपने लिए रोजगार तलाश करने के साथ-साथ तीर्थ यात्रियों के लिए आवास सुविधा की भी व्यवस्था की।
फिर भी सरकारी तौर पर कलियर को वह महत्व नहीं मिलता जो मिलना चाहिए, यहां तीर्थ यात्रियों को वे सुविधा नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए। महत्व इस बात का है कि कलियर शरीफ को राज्य वक्फ बोर्ड के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। वक्फ बोर्ड की तो यूं है कि चौधरी रईस अहमद कलियर को पांचवां धाम बनाने का दावा करते रहे और अपने लिए सुविधाएं जुटाते रहे। मौजूदा वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स की स्थिति तो और भी अधिक अजीब है। वे चूंकि भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हैं और कलियर का संबंध मुस्लिम आस्था से है तो वे आज तक इस दहशत से निकल ही नहीं पाए कि अगर उन्होंने कोई प्रस्ताव राज्य सरकार के समक्ष रखा तो कहीं राज्य सरकार उन्हें हटा न दे। वे आज तक इस बात को नहीं समझ पाए कि भाजपा की उनसे अपेक्षा यह है कि वे मुस्लिम समाज के बीच पार्टी के प्रति विश्वसनीयता कायम करें। वे इसके उलट करते हैं। उल्टे-सीधे बयान देते हैं और अपनी भी फजीहत कराते हैं। वे भाजपा पदाधिकारी के रूप में अपने ही समाज के बीच अपने प्रति ही कितना विश्वास जगा पाए हैं इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों हुए निकाय चुनाव में वे अपने भाई को पार्षद का चुनाव नहीं जितवा पाए थे।
दरअसल, इस मामले में मुख्यमंत्री को अपने स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। जैसा कि लक्सर विधायक हाजी शहजाद ने पिछले विधानसभा सत्र के दौरान कहा था कि, “मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कर सकते हैं। वे कर रहे हैं, इसलिए हम भी उनसे मांग करते हैं कि वे अल्पसंख्यकों को अच्छी शिक्षा देने के लिए उनके क्षेत्रों में स्कूल दें।” उन्होंने कहा था कि, “मांगा उससे जाता है जिससे उम्मीद हो। हमें धामी जी से उम्मीद है, इसलिए उनसे मांग रहे हैं।” कोई बड़ी बात नहीं कि यही बात कलियर के एक तीर्थ स्थल के रूप में जरूरी विकास पर लागू होती है। मुस्लिम समुदाय मुख्यमंत्री से अपेक्षा करता है कि कलियर का मामला वे अपने हाथ में लें और यहां के विकास के लिए कुछ सार्थक योजनाओं की घोषणा करें।