महानगर में जारी है छ: हजार बनाम डेढ़ लाख वोटों का संघर्ष
एम हसीन
रुड़की। लोकतंत्र में मत का विभाजन आवश्यक है। मत विभाजन न हो, वह एक तरफा हो जाए तो लोकतंत्र कमजोर पड़ जाता है। यही कारण है कि भारतीय लोकतंत्र में बहु दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है। लेकिन सवाल यह है कि स्थानीय मेयर चुनाव में नगर का वैश्य मतदाता क्या भाजपा और कांग्रेस में बराबरी के स्तर पर बंट पाएगा? माना जाता है कि नगर में वैश्यों के मुश्किल से छ: हजार वोट हैं और भाजपा व कांग्रेस दोनों ने ही वैश्य प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। दोनों ही पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इसीलिए सवाल उठ रहा है कि क्या दोनों या अन्य प्रत्याशी भी वैश्य मतों में कोई प्रभावी विभाजन कराने में कामयाब होंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि बाकी डेढ़ लाख मत तो विभाजित हो जाएं लेकिन यह छ: हजार का आंकड़ा मुख्य रूप से किसी एक ही प्रत्याशी के खाते में बरामद हो जैसे 2019 में यह एकमुश्त गौरव गोयल के पक्ष में लामबंद हो गया था!
मसलन, 2019 के मेयर चुनाव में भाजपा के मयंक गुप्ता को साढ़े 19 हजार के करीब वोट मिले थे और कांग्रेस के रेशु राणा को साढ़े 26 हजार के करीब। इसके विपरीत गौरव गोयल को साढ़े 29 हजार वोट हासिल हुए थे। इस मामले में एक्सपर्ट्स का आंकलन यह है कि नगर में वैश्य बंधुओं का लगभग 6 हजार का मतदान हुआ था और यह सारा समर्थन एकतरफा गौरव गोयल के पक्ष में गया था। आंकलन यह है कि इसमें अगर 50 फीसदी का विभाजन भी होता और वह सारा यानी तीन हजार वोट मयंक गुप्ता को मिल गया होता तो वे तथा गौरव गोयल दोनों हार गए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। ऐसा इसलिए नहीं हुआ था क्योंकि बाकी सारा वोट, जो कि करीब डेढ़ लाख था, तो सभी दलीय-निर्दलीय प्रत्याशियों में विभाजित हुआ था और सबसे ज्यादा जागरूक माने जाने वाले वैश्य मतदाता ने एक तरफा मतदान किया था। वैश्य मतदाता को जब इस बात का अहसास हो गया कि मयंक गुप्ता भाजपा के गढ़ों में मुख्य रूप से गौरव गोयल के मुकाबले और आंशिक रूप से कहीं निर्दलीय सुभाष सैनी के सामने और कहीं बसपा के राजेंद्र बाड़ी और कांग्रेस के रेशु राणा के मुकाबले पिछड़ रहे हैं तो उन्होंने पार्टी का बिना कोई लिहाज किए गौरव गोयल के पक्ष में एकतरफा मतदान कर दिया था। नतीजा यह हुआ था कि दोनों में से एक वैश्य जीत गया था। यह बहुत संतुलित, बहुत नपा-तुला और बहुत रणनीतिक मतदान था। इस मतदान का असर केवल यह नहीं हुआ था कि मेयर वैश्य बन गया था बल्कि यह भी हुआ है कि इस बार मेयर टिकट चयन के मामले में दोनों दलों ने एक बार भी किसी गैर-वैश्य दावेदार के नाम पर विचार नहीं किया। अहम बात यह है कि भाजपा ने यह फैसला बाद में किया, पहले कांग्रेस ही वैश्य एकता के रौब में थर्रा कर अपना वैश्य प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी। नगर निगम क्षेत्र में कुल मतों की संख्या एक लाख बावन हजार के करीब है और इनमें वैश्य मतों की संख्या महज छः हजार है।
अब स्थिति यह है कि एक ओर छ: हजार वोट हैं और दूसरी ओर करीब डेढ़ लाख वोट हैं। लेकिन दोनों ही दलों ने एकजुट छ: हजार वोट हासिल करने के लिए वैश्य प्रत्याशी का चयन करने में देर नहीं लगाई। कारण साफ है। बाकी वोटों में विभाजन लाजमी है। चूंकि वोट कटुआ प्रत्याशी इस बार कम हैं इसलिए माना जा रहा है कि इस बार मतदान एक लाख से ऊपर और जीतने वाले प्रत्याशी का आंकड़ा 30-35 हजार के बीच जा सकता है। बेशक इसमें भाजपा, कांग्रेस, बसपा और आम आदमी पार्टी प्रत्याशी के साथ निर्दलीय श्रेष्ठा राणा का भी हिस्सा होगा। किसे कितने वोट मिलेंगे इसका खुलासा 25 जनवरी को होगा लेकिन एक गारंटी अभी की जा सकती है कि वैश्य मतदाता में अगर विभाजन होगा तो बहुत छिटपुट ही होगा। चाहे वैश्य कांग्रेस को मतदान करे या भाजपा को लेकिन करेगा एकतरफा ही। मेयर चुनाव की सारी बिसात इसी चीज की गवाही दे रही है।