2019 में गौरव गोयल भी चुने गए थे निर्दलीय मेयर
एम हसीन
रुड़की। अगर 2019 में बतौर निर्दलीय चुनाव जीते गौरव गोयल को अगर छोड़ दिया जाए तो रुड़की में किसी वैश्य बंधु के मेयर बनने का इतिहास नहीं है। किसी न किसी राजनीतिक दल ने हर बार महानगर पर वैश्य प्रत्याशी थोपा और नगर की जनता ने हमेशा किसी तीसरे को चुनकर अपना जवाब दिया। यह दूसरा अवसर है जब दोनों प्रमुख दलों ने एक बार फिर वैश्य प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। यह एक प्रकार से जनता को विकल्पहीन करने की कोशिश है। लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी फिर राजनीति के केंद्र में है। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार कोई राजनीतिक दल जीतता है यह फिर जनता जीतती है। अगर राजनीतिक दल जीतता है तो कौन सा राजनीतिक दल जीतता है!
प्रत्याशियों की स्थिति पर चर्चा करने से पहले यह जान लें कि पिछली बार गौरव गोयल बतौर निर्दलीय मेयर निर्वाचित हुए थे। उन्होंने अपने समाज के भीतर अपने वैश्य बंधु मयंक गुप्ता को हराया था। उसके बाद साढ़े तीन साल तक महानगर ने नगर निगम की राजनीति का बेहद विडंबनापूर्ण दौर देखा था। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि गौरव गोयल का वाटर लू वैश्य बंधु ही बने थे। बात तभी खत्म हुई थी जब गौरव गोयल का इस्तीफा हो गया था।
बहरहाल, उत्तराखंड के इतिहास का पहला निकाय चुनाव 2013 में हुआ था जब भाजपा ने प्रमोद गोयल और कांग्रेस ने राजेश गर्ग को अपना प्रत्याशी बनाया था। दोनों दलों की इस नीति के खिलाफ जनता में आक्रोश इतना पनपा था कि निर्दलीय दिनेश कौशिक एकतरफा चुनाव जीत गए थे। भाजपा के प्रमोद गोयल दूसरे स्थान पर रहे थे लेकिन उन्हें इतने वोट भी नहीं मिले थे जितने से वे हारे थे। इसी कारण 2008 में दोनों दलों ने वैश्य प्रत्याशी से परहेज किया था, अलबत्ता राजेश गर्ग बसपा के टिकट पर लड़े थे, लेकिन उनका स्थान तीसरा रहा था। जीत एक बार फिर निर्दलीय को मिली थी जो कि प्रदीप बत्रा थे। उस चुनाव में वैश्यों ने बसपा को वोट देने से भी परहेज नहीं किया था लेकिन बाकी समाज का वैश्य बहिष्कार कायम रहा था। 2013 में भाजपा ने वैश्य से परहेज जारी रखा था लेकिन कांग्रेस ने राम अग्रवाल के रूप में फिर वैश्य प्रत्याशी दिया था। चुनावी संघर्ष में राम अग्रवाल ने तीसरा स्थान सुरक्षित किया था। मेयर निर्दलीय यशपाल राणा बने थे। 2019 का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
उपरोक्त स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि साधन सम्पन्न वैश्य बंधु अपने साधनों के बल पर राजनीतिक दलों को तो मैनेज कर लेते हैं लेकिन जनता इनपर मैनेज नहीं हो पाती। एक बार नगर विधायक प्रदीप ने वैश्यों के लिए जनता को मैनेज कर भी लिया था तो खुद वैश्य बंधुओं ने कोई शानदार उदाहरण प्रस्तुत करने से परहेज किया था। अब एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस के टिकट पर दो वैश्य प्रत्याशी मैदान में हैं। भविष्य 23 जनवरी को तय होगा।