उत्तराखंड सरकार ने निरस्त किए 14 औषधियों के लाइसेंस
योगगुरु रामदेव पर किसी शायर का यह शेर पूरे तौर पर प्रासंगिक नजर आ रहा है कि “मेरा खेलना भी कमाल था, मेरा हारना भी मिसाल है, जो गुजर गया वो उरूज़ था, जो है रूबरू वो जवाल है।” उरूज़ अर्थात चरम और जवाल अर्थात पतन। दरअसल उनकी मुश्किलों का ओर छोर नजर नहीं आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट में लगातार जारी अपनी फजीहतों के बीच अब न केवल रामदेव उत्तराखंड सरकार के निशान पर भी आ गए हैं, बल्कि वे जीएसटी इंटेलिजेंस ब्यूरो के रडार पर भी हैं। उन पर साढ़े 27 करोड़ जी एस टी इनपुट का मामला बताया जा रहा है। अभी बात और आगे कहां तक जाएगी, देखना दिलचस्प होगा।
बाबा रामदेव को पिछले दो दशकों में लोगों ने जमीन से उठकर आसमान तक पहुंचते देखा है। इन्हीं दो दशकों, बल्कि दो दशकों से भी कम समय, में उनका 25 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का पतंजलि साम्राज्य खड़ा हुआ है। यह तय करना मुश्किल नहीं है कि उनकी मुश्किलों की बुनियाद उनकी सफलता में ही है। पिछले दो दशकों में उनके तमाम ऐसे कृत्य सामने आए हैं जो जाहिर करते हैं कि उन्होंने किसी भी व्यवस्था को अपने सामने हेच समझा; किसी को सम्मान नहीं दिया। स्थानीय प्रशासन से लेकर केंद्र सरकार तक को उन्होंने ठेंगे पर रखा। इसके बावजूद मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक, नौकरशाह उनकी चिरौरी करने को अपना सौभाग्य समझने लगे। शायद इसीलिए उनकी हिम्मत सुप्रीम कोर्ट को भी कैजुअल लेने की हुई।
तात्कालिक रूप से देखा जाए तो उनकी समस्याओं की शुरुआत कोविड की वैक्सीन के भ्रामक विज्ञापन का प्रकाशन कराने से हुई थी। दरअसल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने वैक्सीन को लेकर उनके दावे को गलत बताकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विज्ञापन प्रकाशन बंद करने के लिए कहा था। लेकिन रामदेव ने इस निर्देश को कैजुअली लिया। परिणाम यह हुआ कि उन पर अदालत की अवमानना का नया मामला खड़ा हो गया। बात इतना बढ़ी कि रामदेव को अपने वकील के माध्यम से भी और व्यक्तिगत रूप से भी अदालत में हाजिर होकर माफी मांगना पड़ी, जो कि स्वीकार नहीं हुई। फिर आदेश हुआ कि वे विज्ञापन छपवाकर माफी मांगेंगे। उन्होंने विज्ञापन में माफी मांगी तो उसे नाकाफी माना गया। बड़े साइज में विज्ञापन छपवाने का आदेश हुआ। इस सबके बीच वे सारे मामले सर उठाने लगे जो अतीत में उनके प्रभाव के नीचे दब कर रह गए थे; जब उन्हें ड्रग्स के लाइसेंस दिए जाने को लेकर उत्तराखंड का ड्रग्स विभाग भी सुप्रीम कोर्ट में कटघरे में खड़ा हो गया। जब कई अधिकारियों पर मुअत्तल या बरख्वास्त हो जाने का खतरा मंडराने लगा। नतीजा यह हुआ कि राज्य सरकार ने उनके दवाइयां बनाने के 14 लाइसेंस निरस्त कर दिए हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट यह आदेश भी जारी कर चुका है कि उनके योग शिविरों पर 5 प्रतिशत का सेवाकर लगाया जाए। इसी बीच 27.46 करोड़ जी एस टी इनपुट को लेकर भी उन्हें विभाग के खुफिया विभाग का नोटिस जारी हुआ बताया जा रहा है।
कोई बड़ी बात नहीं कि तमाम लोग हैं जो संविधान की सर्वोच्चता कायम रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का गुणगान करते नहीं थक रहे हैं; हालांकि उन्हीं में से कई लोग ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट एक एस आई टी का गठन करे जो उसी की निगरानी में रामदेव के क्रियाकलापों की जांच करे। इसमें दिव्य योग फार्मेसी को लेकर हुए विरासत के संघर्ष आदि तमाम मामलों को भी शामिल किया जाए और उनके गुरु की गुमशुदगी के मामले को भी। साथ पतंजलि के लिए उनके द्वारा खरीदी गई या कथित रूप से कब्जा की गई किसानों की या सरकारी या पट्टाधारकों की भूमि के मामलों की भी जांच हो।