पिछली बार मयंक गुप्ता-सुभाष वर्मा पर खास मेहरबानी
एम हसीन
रुड़की। निकाय चुनाव होगा या नहीं, होगा तो आरक्षण की स्थिति क्या होगी, इस सारी बहस के बीच यह सवाल अहम हो चला है कि इस बार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत की क्या मर्जी होगी अर्थात वे किसे मेयर का चुनाव लड़ाने की कोशिश करेंगे? सामान्य विचार यह है कि सीट सामान्य रही तो मयंक गुप्ता और सीट पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हुई तो सुभाष वर्मा उनकी पसंद का चेहरा हो सकते हैं। हालांकि यह अलग बात है कि इस चर्चा ने इन दोनों “मित्रों” के बीच एक अलग प्रतिस्पर्धा के हालात पैदा कर दिए हैं जिसके चलते भाजपा में टिकट के तमाम डमी दावेदार पैदा हो गए हैं। फिर सवाल यह कि ऐसे लोग भी त्रिवेंद्र सिंह रावत से मदद की उम्मीद कर रहे हैं जो भाजपा में नहीं हैं और जिन्होंने लोकसभा चुनाव में अपनी हदों से बाहर जाकर उनकी मदद की थी। अहम यह है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के ऐसे गैर-भाजपा मददगार मेयर चुनाव लड़ने के इच्छुक ही नहीं बल्कि नगर में स्वाभाविक दावेदार भी हैं।
जैसा कि सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री और फिर सांसद बनने से पहले भी त्रिवेंद्र सिंह रावत की हरिद्वार जिले में अपनी बड़ी मजबूत राजनीतिक लॉबी काम करती रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने किसी समर्थक को एकोमोडेट करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं, यह है तब दिखाई दिया था जब वे मुख्यमंत्री थे। तब उन्होंने अपने समर्थक सुभाष वर्मा को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया था और इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए उन्होंने न केवल तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सविता चौधरी को पद से हटाया था बल्कि भलस्वागाज की जिला पंचायत सदस्य बबली चौधरी का इस्तीफा भी कराया गया था। फिर वहां पहले सुभाष वर्मा को जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित कर गया था और फिर उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया गया था। इसी क्रम में उन्होंने अपने खास मयंक गुप्ता को रुड़की मेयर का चुनाव लड़ाने के लिए तमाम काम किए थे और उन्हें मेयर का टिकट दिलाया था। उनके लिए रुड़की में जनसभा की थी और रोड शो भी किया था। लेकिन यह पुरानी बात है। तब त्रिवेंद्र सिंह रावत व्यक्तिगत रूप से रुड़की या हरिद्वार जनपद को रिप्रेजेंटेट नहीं करते थे। यही कारण है कि एक खास लॉबी को हर प्रकार से संरक्षण देने में उन्हें समस्या नहीं आती थी। आज वे हरिद्वार सांसद हैं और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ उनका 36 का आंकड़ा है। अर्थात, पिछली बार की तरह इस बार व्यवस्था सीधे उनके आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। दूसरी बात यह है कि उन्हें सांसद बनाने में उनकी अपनी लॉबी के अलावा तमाम लोगों ने अपनी भूमिका अदा की है। ऐसे लोगों में भाजपा में ही ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका इच्छा मेयर चुनाव लड़ने की है। मसलन, अक्षय प्रताप सिंह ने त्रिवेंद्र सिंह रावत फोटोज के साथ अपने होर्डिंग्स से शहर को पाटा हुआ है। वे बिरादरी से राजपूत हैं और कहीं न कहीं इस चीज को भी अपनी ताकत बनाना चाहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत भी राजपूत हैं।
लेकिन बात केवल उन्हीं की नहीं है। बात उन लोगों की भी है जो भाजपा में नहीं हैं और जिन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत को सांसद बनाने के लिए अपने पार्टी प्रत्याशी तक को सीधे धता बताने से परहेज नहीं किया था। इन गैर-भाजपाइयों में मेयर चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग भी हैं और संयोग से बिरादरी से राजपूत भी हैं। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्राथमिकता अगले मेयर चुनाव में क्या होगी? हालांकि मोटे तौर पर यही माना जा रहा है कि अगर सीट सामान्य रही और त्रिवेंद्र सिंह रावत की चली तो मेयर प्रत्याशी मयंक गुप्ता होंगे और अगर सीट पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हुई तो भाजपा टिकट सुभाष वर्मा के खाते में जा सकता है।