हालांकि अधिशासी अभियंता ने बताया मामले को बेकार का विवाद
एम हसीन
रुड़की। लोक निर्माण विभाग निर्माण खंड रुड़की में अभियंताओं से खुन्नस खाए एक ठेकेदार ने सड़क निर्माण के कथित घाल मेल का वीडियो वायरल किया तो बदले में अभियंताओं ने ठेकदार से एक ऐसे पत्रकार से ठेकेदार के खिलाफ खबर छपवा दी जो विभाग के टेंडर छापकर छुपाने का काम करता है। विभाग के अभियंता ऐसे कामों में सिद्धहस्त हैं। इससे पहले उन्होंने पुल गिरने के मामले में राजनेताओं-विधायकों को अपनी हिमायत में मीडिया के आगे खड़ा कर दिया था। इसका उन्हें लाभ भी हुआ। पुल गिरने का मामला दब सा ही गया है और किसी पर कोई कार्यवाही भी अभी तक नहीं हुई।
दरअसल, इस खंड और ठेकदारों के बीच जारी घात-प्रतिघात का खेल बुनियादी तौर पर निर्माण कार्यों के आवंटन को लेकर ही शुरू हुआ था। जैसा कि होता ही है, कुछ ठेकेदार अभियंताओं को “माई बाप” मानकर काम करते हैं। फिर अभियंता उनके हितों को हर प्रकार से इसलिए संरक्षित करते हैं क्योंकि इसी में उनका अपना हित भी संरक्षित होता है। आखिर यह तो सच है न कि खुली प्रतिस्पर्धा में किसी के लिए कुछ नहीं बचता। यही कारण है कि अभियंता निविदा ऐसे पत्रकारों से छपवाते हैं जो निविदा छाप कर छुपा लेते हैं। अगले कदम के तौर पर किसी एक कम के सापेक्ष बेहद सीमित निविदाएं डाली और खोली जाती हैं और काम चहेते ठेकेदार को दे दिया जाता है। सारे सिलसिले का खुलासा तब होता है जब निर्माण का काम होना शुरू होता है। फिर विवाद होते हैं। लेकिन असली खेल तब होता है जब शुरू हुए निर्माण कार्य के घाममेल सिखाई देते हैं।
मसलन, झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र की एक सड़क का वीडियो हाल ही में सार्वजनिक हुआ जिसमें एक चक रोड का निर्माण उन्हीं पुरानी ईंटों से किया जा रहा है जो ठेकेदार ने इसी सड़क को खोदकर निकाली हैं। बात एग्जीक्यूटिव इंजीनियर विपुल सैनी तक पहुंची तो उन्होंने इसे बेकार का विवाद बताया और तर्क दिया कि ठेकेदार पुराने खड़ंजे के ऊपर ही नया खड़ंजा लगा रहा है और यही उसका विभाग के साथ एग्रीमेंट है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हो सकता है कि इस मामले में विपुल सैनी सही हों। लेकिन ऐसा ही दावा वे रुड़की के उस हरमिलाप मार्ग पर बने रोड के विषय में नहीं कर सकते जहां ठेकेदार ने पहले सब स्टैंडर्ड इंटर लॉकिंग टाइल्स लाकर मार्ग का निर्माण शुरू किया, इसकी शिकायत हुई, ठेकेदार ने गलती मानी, सब स्टैंडर्ड टाइल्स वापिस भिजवाई और स्वीकृत टाइल्स से मार्ग का निर्माण शुरू कराया। इस मामले में तो अभियंता ही मान रहे हैं कि ठेकेदार ने गलत किया। उसके खिलाफ क्या कार्यवाही हुई पता नहीं लेकिन निर्माण अभी जारी है।
अहम मसला यह है कि ये विवाद, सही या गलत, आसानी से खत्म नहीं होंगे, क्योंकि सारी स्थितियों के बाजूद अभियंता पारदर्शिता के साथ कार्य नहीं कर रहे हैं। आरोप है कि ठेकेदारों को चुपचाप काम आवंटित करने का वादा करके कई अभियंताओं ने ठेकेदारों से मोटी रकमें एडवांस में वसूली हुई हैं और काम उन्हें काम वे फिर भी आवंटित नहीं कर रहे हैं। फिर खंड में शांति कैसे आएगी? मोटी रकम एडवांस में दिए होने के बावजूद जब किसी ठेकेदार को काम नहीं मिलेगा और वह काम होता हुआ देखेगा भी तो उसके आग तो लगेगी ही! फिर वह शिकायत भी करेगा ही और हंगामा भी करेगा। वो ऐसा करेगा तो विभाग उसका भुगतान रोक लेगा, उसकी सिक्योरिटीज रोक लेगा, उसे परेशान करेगा। आरोप है कि यही खंड में हो रहा है। इसी कारण पिछले साल ठेकेदारों की एक सहायक अभियंता से झड़प भी हुई थी, इसी कारण सहायक अभियंता ने ठेकेदारों के खिलाफ एफ आई आर भी दर्ज कराई थी और इसी कारण ठेकेदारों ने अभियंता से दबने की बजाय उसके खिलाफ काउंटर केस दर्ज कराया था। इसी कारण केस में अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई। पूरा सच सहायक अभियंता को भी मालूम है। यही कारण है कि विधायक से अपने बचाव में बयान दिलवाना या टेंडर छापकर छुपाने वाले पत्रकार से अपने पक्ष में खबर छपवाना अलग बात है, और पुलिस इन्वेस्टिगेशन के दौरान अपने आपको सही साबित करना और बात। सवाल यह है विपुल सैनी इन चीजों से कैसे निपटेंगे? उनसे पहले तो तीन अधिशासी अभियंता इस मोर्चे पर नाकाम हो चुके हैं।