इस बार विरोधी “क्लब” में दिखाई दिया उनका गुजर

एम हसीन

रुड़की। फोनिक्स ग्रुप के चेयरमैन चेरब जैन लगता है कि इन दिनों अपने शिक्षा संस्थान को अपने एसोसिएट के हवाले करके पूरे तौर पर राजनीति को समर्पित हो गए हैं। चाहे दंगल हो, चाहे बाल्मीकि जयंती, चाहे मुशायरा हो, चाहे चिकित्सा शिविर; बीते दिनों वे ऐसे ही कार्यक्रमों में व्यस्त दिखाई दिए जिनका संबंध समाजसेवा से उतना नहीं जितना चुनावी प्रचार की राजनीति से है। व्यस्तता के इन्हीं क्षणों में उनकी उपस्थिति ऐसे स्थानों पर भी रिकॉर्ड की गई जहां उनका जाना ताज्जुब की बात है। जो ग्रुप की राजनीति रुड़की में होती है उसके हिसाब से निश्चित ताज्जुब की बात है। महानगर में मेयर चुनाव की राजनीति से जुड़ी यह एक महत्वपूर्ण घटना रही। दूसरी महत्वपूर्ण घटना यह रही कि चुनावी राजनीति के प्रचार अभियान में पिछले दो साल से फ्रंट फुट पर खेलते नजर आ रहे कांग्रेस मेयर टिकट के दावेदार सचिन गुप्ता एकाएक डिफेंस में चले गए। अनजाने कारणों के चलते सचिन गुप्ता त्योहारों के दौर में बहुत अधिक सक्रिय दिखाई नहीं दिए।

जैसा कि “परम नागरिक” इस बात को बार-बार कहता रहा है कि रुड़की में राजनीति असल में धंधेबाजी है। शिक्षा, चिकित्सा, होटल, मिठाई, मीडिया व कांट्रेक्टर्स समेत जिन धंधों पर यहां की राजनीति टिकी है उनमें अव्वल नंबर रियल एस्टेट का है। यह ऐसा फील्ड है जिसमें सारे धंधेबाज, सब धंधों के महारथी शामिल हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि फिर यही धंधा चुनावी राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया है, क्योंकि अपने धंधों में कुछ हासिल करने के बाद अधिकांश लोग रियल एस्टेट में ही इन्वेस्ट करते हैं। जो खरीद-फरोख्त के लिए भवन बिल्डिंग नहीं बनाते अपने धंधे को एक्सटेंशन देने के लिए अपना भवन तो वो भी बनाते या खरीदते ही हैं। यही कारण है कि यह धंधा महानगर में टॉप रेटिंग्स में है। इस धंधे में मुख्य रूप से तीन ग्रुप हैं। एक ग्रुप वह है, मौजूदा दौर में जिसका प्रतिनिधित्व चेरब जैन कर रहे हैं अर्थात चेरब जैन जिसका चेहरा हैं। जाहिर है कि उनके पीछे पूरी लॉबी है। दूसरा ग्रुप वह है जहां पिछले दिनों चेरब जैन देखे गए हैं।

गौरतलब यह है कि इस दूसरे ग्रुप का कोई एक घोषित चेहरा नहीं है। नगर के एकाध चुनावाकांक्षी को छोड़कर तमाम घोषित-अघोषित चेहरे यहां पनाह पाते हैं। कारण यह है कि यह ग्रुप महानगर में रियल एस्टेट के धंधेबाजों का एक प्रकार का “मक्का” है। केवल इतना ही नहीं। यहां हमेशा नए चेहरों की गुंजाइश बनी रहती है, और चेहरों का स्वागत भी होता है। जैसे चेरब जैन का हुआ है। चूंकि महानगर में यह आर्थिक-राजनीति का केंद्र बिंदु है इसलिए यहां ऐसे चेहरों को भी पनाह मिलती है। दरअसल, इस केंद्र के रिंग लीडर का रुतबा ही कुछ ऐसा है कि, खास तौर पर रियल एस्टेट से संबंधित, किसी का जो काम कहीं न हो रहा हो, वह यहां आकर हो जाता है। बेशक यहां आकर लोग केवल पाते नहीं हैं बल्कि गंवाते भी हैं। लेकिन चूंकि सब धंधेबाज हैं इसलिए सब धंधेबाजी की इस हकीकत को जानते हैं कि, “यू विन सम, यू लूज सम, लयूड लाइफ गोज ऑन।”

बहरहाल, फिलहाल की हकीकत यह है कि चेरब जैन पिछले दिनों इस ग्रुप के मुख्यालय पर दिखाई दिए, नतीजा क्या होगा देखने वाली बात होगी। दूसरी ओर, यह भी सच है कि त्योहारों के मौसम में उनका प्रचार अभियान चरम पर नज़र आया। जबकि प्रचार अभियान में पिछले दो सालों से सिरमौर बने नजर आए सचिन गुप्ता बीते एक पखवाड़े में दीपावली जैसा बड़ा त्यौहार गुजरा होने के बावजूद पिछड़े नजर आए। वे केवल होर्डिंग्स में दिखे, सामाजिक कार्यक्रमों में कम दिखे। सवाल यह है कि क्या वे केदारनाथ में पार्टी प्रत्याशी को उप-चुनाव लड़ाने में व्यस्त रहे हैं या उनके एकाएक डिफेंस पर खेलने की कोई और वजह है?