तभी टूटेगी रुड़की लोनिवि में बना विधायक-अधिकारियों का कॉकस

एम हसीन

रुड़की। शुरुआती जांच के मुताबिक पीर बाबा कॉलोनी में नहर में गिरे पुल के सेट्रिंग से किसी प्रकार का जान या माल का नुकसान नहीं हुआ है। बेशक यह संतोष की बात है। लेकिन सोलानी पर पिछले दो सालों में बने रपटों को लेकर यह बात नहीं कही जा सकती। 2023 के शुरू में 45 लाख की लागत से बना रपटा दो महीने के भीतर बह गया था, इसकी तो जांच भी किए जाने की जरूरत नहीं है; सबकुछ वैसे ही साबित है। फिर उसी साल के अंत में आदर्श नगर में 95 लाख की लागत से जिस रपटे का निर्माण शुरू किया गया था और जिसकी मद में ठेकेदार को करीब 13 लाख रुपए का भुगतान भी कर दिया गया था, उसकी स्थिति बरसात के बाद क्या है यह जांच का विषय है।

इस मामले में 2012 में गंग नहर में गिरे पुल को भी देखा जाना जरूरी है। उस दुर्घटना में तीन लोगों की जान गई थी, जिन्हें लाखों का मुआवजा दिया गया था और करोड़ों रुपए की सामग्री नष्ट हुई थी। दोबारा पुल का निर्माण करने में सालों का समय लगा था सो अलग। इस सबके बीच अभियंताओं के खिलाफ क्या किसी प्रकार के अर्थदंड की कार्यवाही की गई थी? दरअसल, उपरोक्त मामले इस बात को रेखांकित करते हैं कि किसी दुर्घटना को दुर्घटना तभी तस्लीम किया जाता है जब उसमें कोई जनहानि हो जाए। नुकसान चाहे कितना हो जाए लेकिन अगर जनहानि न हो तो किसी मामले को सामान्य ही करार दिया जाता है। जैसे कि रपटे का मामला है। रपटा बह गया तो वह गया। एक प्रयोग था जो विफल हो गया तो क्या हुआ! लेकिन बात एक रपटे की तो नहीं है। बात दूसरे रपटे की भी तो है। बात रेगुलर पुल की भी तो है।

ठीक है कि ताजा दुर्घटना के बाद लोक निर्माण सचिव डॉ पंकज पांडे ने जांच का आदेश दिया है। जांच समिति क्या रिपोर्ट देगी, किस अधिकारी की क्या जिम्मेदारी तय की जाएगी यह देखे जाने की बात है। अहम सवाल यह है कि जांच की दिशा क्या होगी? क्या समिति इस बात पर भी गौर करेगी कि रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा क्यों बिना किसी जांच आख्या के ही सार्वजनिक बयान देकर दुर्घटना को मामूली साबित करने की कोशिश कर चुके हैं? वे किस आधार पर नहर में छोड़े गए पानी की रफ्तार को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं? इसका कारण है। कारण यह नहीं है कि विधायक की संस्तुति पर मुख्यमंत्री की घोषणा की आधार पर इस पुल का निर्माण किया जा रहा है। कारण यह है कि विधायक लोक निर्माण विभाग के अभियंताओं पर हावी हैं और अभियंता उन्हें खुश करने को अपना सौभाग्य समझते हैं। विधायक ने जिस प्रकार इस मामले में परिधि से बाहर जाकर बयानबाजी की है, उसी प्रकार उन्होंने रपटे के भुगतान और घोटाले के मामले में भी किया था। चूंकि सरकारी नियम है कि सभी अधिकारी विधायक की राय को अहमियत दें तो विधायक ने इसे अपना सर्वाधिकार समझ लिया है। वे हर मामले में अभियंताओं को सुपरसीड करते हैं और अभियंता इस पर या तो आपत्ति नहीं करते या फिर उन्हें बोरिया बिस्तर उठाना पड़ता रहा है। इसलिए जांच का विषय यह भी होना चाहिए कि अगर विधायक की उल-जुलूल राय के आधार पर अधिकारी काम करते हैं और दुर्घटना होती है तो नुकसान और मुआवजे की जिम्मेदारी सरकार नहीं बल्कि अधिकारी लेंगे।

विधायक विभाग को सुपरसीड करते हैं इसका प्रमाण तो मौजूदा दुर्घटना और रपटा भुगतान मामले में उनके बयान ही हैं, वे प्रस्ताव भी उल-जलूल देते हैं इसका प्रमाण दो साल पहले तब सामने आया था जब लोक निर्माण विभाग के इन्हीं अधिकारियों को बी टी गंज में पूरी सड़क उखाड़कर दोबारा बनानी पड़ी थी। जाहिर है कि खर्च का बोझ सरकार की जेब पर गया था।