निकाय चुनाव में भूमिका तलाशने को वीरेंद्र रावत तोल रहे हैं पर

एम हसीन

रुड़की। हरियाणा चुनाव परिणाम के मद्देनजर मिली फजीहत ने कांग्रेस की उत्तराखंड प्रभारी कुमारी शैलजा की उस चमक को मद्धम कर दिया है जो उन्हें अपनी लोकसभा सीट जीतने और पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड की दोनों सीटें कांग्रेस के जीतने पर हासिल हुई थी। ऐसे में राज्य के कांग्रेसियों की अहमियत कुछ ज्यादा बढ़ गई है। कोई ताज्जुब नहीं कि उनकी बढ़ी हिम्मत का जलवा केदारनाथ उप चुनाव में दिखाई दे। बहरहाल, आगे मामला निकाय चुनाव का है और अगर चुनाव से पहले प्रभारी नहीं बदला जाता तो राज्य स्तरीय नेताओं को अपने फैसले कर लेने में आसानी रहने वाली है। इससे उत्साहित पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत रुड़की के कांग्रेसियों को दीपावली की दावत देने रुड़की आए तो उनके साथ वीरेंद्र रावत भी चले आए। वीरेंद्र रावत चूंकि हरिद्वार सीट पर लोकभा चुनाव लड़ चुके हैं तो जनता में न सही, कांग्रेसियों में तो उनकी पहचान बन ही गई है। पिता का आशीर्वाद सिर पर है और उनकी पसंद को पार्टी की सनद भी हासिल होगी ही, तो उन्होंने आसन्न निकाय चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी के तौर पर अपनी पसंद का इशारा भी दे ही दिया है। उनके इशारे ने आरक्षण सहित उनकी पसंद को मुहरबंद कर दिया। अब इंतजार उस घड़ी का है जब उनकी पसंद कांग्रेस के फैसले के तौर पर दिखाई दे।

गौरतलब है कि रुड़की मेयर पद पर आरक्षण का खतरा मंडरा रहा है। अगर आरक्षण लागू नहीं होता तो यह पहले से तय माना जा रहा है कि रावत कैंप सचिन गुप्ता या उनकी पत्नी पूजा गुप्ता को कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में देखना चाहेगा। सवाल यह हो रहा था कि अगर सीट पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होती है तो यह कैंप किसे आगे बढ़ाएगा? उस दिन साफ इशारा मिला कि वीरेंद्र रावत अपने कैंप के जितेंद्र सैनी को प्रत्याशी के रूप में देखना पसंद करेंगे। यह पहले से तय माना जा रहा है कि जितेंद्र सैनी को सचिन गुप्ता की भी सिफारिश हासिल है। ध्यान रहे कि सीट आरक्षित हो जाने की स्थिति में कांग्रेस टिकट के दावेदार सुभाष सैनी, महानगर अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी एडवोकेट और श्याम सिंह नांगियान भी हैं। कुछ लोग झबरेड़ा नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष डॉ गौरव चौधरी के नाम को भी पद आरक्षित होने की स्थिति में कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी के तौर पर कर रहे हैं। हालांकि डॉ गौरव चौधरी की सक्रियता झबरेड़ा क्षेत्र में ही देखने में आ रही है। दूसरी ओर कुछ लोग जितेंद्र पवार का नाम भी भावी मेयर प्रत्याशी के रूप में ले रहे हैं। हालांकि खुद उनकी अपनी कोई सक्रियता क्षेत्र में नजर नहीं आ रही है।

जहां तक जितेंद्र सैनी का सवाल है, वे कारोबारी व्यक्ति हैं और राजनीति के साथ उनका संबंध लोकसभा चुनाव के बाद से बना हुआ दिखाई दे रहा है, जब वे सचिन गुप्ता कैंप के साथ रावत खेमे में नजर आए थे। लेकिन कांग्रेस में यह सब होता है। यहां नेता टिकट पर दावेदारी से ही तय होता है। इसलिए यहां हर नवागत का टिकट पर दावा करना जरूरी होता है। उसे बड़े चेहरों के प्रति निष्ठा के आधार पर कंसीडर भी किया जाता है। इसके पीछे रणनीति यह होती है कि मुसलमान का वोट तो है ही, बाकी कुछ अपनी जाति के नाम पर और कुछ संसाधनों के भरोसे जुट जायेगा। वैसे कांग्रेस में बतौर प्रत्याशी बलि के बकरे भी तलाशे जाते हैं। ऐसे में अगर जितेंद्र सैनी को कांग्रेस का टिकट मिलता है तो यह समय ही बताएगा कि वे प्रत्याशी ही बनाए गए हैं या फिर बलि का बकरा।