विवादों का खंड बना हुआ है लोक निर्माण विभाग का रुड़की निर्माण खंड
एम हसीन
रुड़की। राजधानी की यमुना कॉलोनी में बैठे उच्चाधिकारियों की मुद्दों को लिंगर ऑन करने की नीति के कारण लोक निर्माण विभाग रुड़की का निर्माण खंड विवादों का खंड बन गया है। यहां बरसों से जमे बैठे सहायक और अवर अभियंता पत्थर बन गए हैं। अब स्थिति यह है कि ए इ-जे इ मनमानी से बाज नहीं आते। इससे ठेकेदारों में उस समय रोष पैदा होता है जब ठेकेदारों का ही दूसरा वर्ग चांदी काटता हुआ दिखाई देता है। ठेकेदारों के साथ विवाद सहायक या अवर अभियंता के बीच होता है। जब आरोप-प्रत्यारोप और थाना-पुलिस तक बात पहुंच जाती है, तब अधिकांश सच्चाइयों और विवाद की बुनियाद से अंजान अधिशासी अभियंता चीजों को एक हद तक समझते है, फिर एक हद तक अधिनस्थों को डिफेंड करने की और अंदरूनी अनुशासन कायम करने की कोशिश करते हैं और जल्द ही घबराकर सरेंडर कर देते हैं। वे या छुट्टी पर चले जाते हैं या ट्रांसफर ले लेते हैं। अगर वे स्वेच्छा से ऐसा न करें और नियमों के तहत काम करने की जिद्द करें तो जे इ-ए ए उन्हें उलझा देते हैं और उनके पनिशमेंट ट्रांसफर तक के हालात गढ़ देते हैं। पिछले दो सालों से यहां यही सब कुछ होता आ रहा है।
मसलन हाल ही में एक अवर अभियंता द्वारा एक ठेकेदार के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई गई है। यूं ठेकेदार के खिलाफ और ठेकेदार द्वारा अभियंता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होना यहां आम बात है। पुलिस को भी सारे हालात का पता है। सारा मामला यमुना कॉलोनी स्थित लोक निर्माण विभाग मुख्यालय तक को पता है। मामला हाई कोर्ट में भी लंबित है। बात कुछ ज्यादा बढ़ती है तो यमुना कॉलोनी अधिशासी अभियंता को या तो खुद ही बलि का बकरा बना देती है या उसकी ट्रांसफर की एप्लिकेशन पर गौर कर लेती है। सहायक या अवर अभियंता को खूंटे से उखाड़ना यमुना कॉलोनी के भी बस का शायद नहीं है। ऐसे मामलों में भी सहायक अभियंता और अवर अभियंता के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती जिन मामलों में अधिशासी अभियंता का पनिशमेंट ट्रांसफर हो जाता है।
ठेकेदार टाटा के खिलाफ हाल ही में अवर अभियंता द्वारा दर्ज कराई गई एफ आई आर की पृष्ठभूमि यही है। यह दरअसल बोतल नई है लेकिन शराब पुरानी है। यानि विवाद पुराने हैं। यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि खंड में लंबे समय तक अस्थाई प्रभार की व्यवस्था रहने के बाद हाल ही में नए एक्स एन विपुल सैनी को स्थाई प्रभार मिला है। नए एक्स एन को ठेकेदार टाटा ने शुरुआत में ही तब सलामी दी थी जब उन्होंने अपनी पुरानी शिकायतों और निविदाओं को लेकर खंड परिसर में हंगामा किया था और मीडिया के सामने खुलकर भ्रष्टाचार पर बयान दिया था। अब इन्हीं टाटा पर आरोप है कि उन्होंने जे इ के साथ अभद्रता की। इसी को आधार बनाकर टाटा के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कराया गया है। इस विषय में नए एक्स एन विपुल सैनी ने स्वाभाविक रूप से मीडिया के सामने अपने अधीनस्थ को डिफेंड किया है और इस बात को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है कि अगर भुगतान का कोई मामला था तो ठेकेदार को खंड प्रमुख के रूप में उनके पास आना चाहिए था न कि जे इ से बात करनी चाहिए थी।
भले ही ठेकेदार का यह कहना हो कि पूरा मामला मन घड़ंत और झूठा है, लेकिन एक्स एन का तर्क दमदार है। दरअसल, इस खंड में सहायक अभियंताओं और अवर अभियंताओं को एक्स एन से यही अपेक्षित है। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उनका हाल एक अन्य एक्स एन संदीप यादव जैसा भी हो सकता है जिनका स्थानांतरण तैनाती मिलने के एक ही महीने के भीतर सीधे यमुना कॉलोनी में अटैचमेंट के रूप में हुआ था। उनके साथ तो फिर गनीमत रही थी। प्रवीण कुमार का तो दो साल पहले पनिशमेंट ट्रांसफर हुआ था; हालांकि उन्हें खंड के बदले खंड ही मिला था, क्योंकि मामले में राजनीति इन्वॉल्व हो गई थी। प्रवीण कुमार के अधिनस्थों ने ही उनके खिलाफ विधानसभा में क्वेश्चन करा दिया था। चूंकि सवाल विपक्षी विधायक ने उठाया था इसलिए सरकार ने प्रवीण कुमार को हटाया भी था और उन्हें खंड देकर उनका सम्मान भी बरकरार रखा था।
प्रवीण कुमार के बाद आए मोहम्मद आरिफ खान ने स्वाभाविक रूप से लो प्रोफाइल में काम किया था और बेहद सावधानी बरती थी। लेकिन वे अपने अधिनस्थों और ठेकेदारों के बीच तालमेल बनाने में नाकाम रहे थे। इसलिए तैनाती के महज 11 महीने बाद ही उनका स्थानांतरण हो गया था और संदीप यादव आए थे जो एक महीने बाद ही बैक टु पैवेलियन हो गए थे। फिर दोबारा मोहम्मद आरिफ खान आए थे जिन्होंने अधिनस्थों व ठेकेदारों के बीच फिर सामंजस्य बनाने के भरपूर प्रयास किए थे, दोनों वर्गों के बीच सहमति कायम कराने के लिए कई बार सामूहिक बैठक कराई थी और अंत में हथियार डाल दिए थे।
यूं खंड अस्थाई व्यवस्था के हवाले हो गया था। लक्सर खंड के एक्स एन आर के टम्टा महीनों यहां का काम देखते रहे थे। हर विवाद या बड़े मामले पर उनका मासूम जवाब “मैं तो किरायेदार हूं” होता था। अब विपुल सैनी आए हैं। गनीमत है कि वे स्थाई नियुक्ति के साथ आए हैं। देखना होगा कि वे अधिनस्थों को कहां तक डिफेंड कर पाते हैं। कारण यह है कि पत्थर बन चुके सहायक अवर-अभियंता न तो पुराने मामलों की जवाबदारी करना चाहते हैं न ही अपने तौर-तरीके बदलना चाहते हैं। यमुना कॉलोनी भी मामलों से न्यारी-न्यारी ही रहना चाहती है। ऐसे में खंड में विवाद समाप्त होना मुश्किल लगता है।