पिछले मेयर चुनाव में ऐन अंतिम समय पर गंवाई थी भाजपा टिकट की बाजी
एम हसीन
रुड़की। मेयर चुनाव की तैयारियों और मेयर पद की दौड़ में सक्रिय चेहरों की भीड़ के बीच इस बार एडवोकेट अजय सिंघल की उपस्थिति कहीं नजर नहीं आ रही है। वैसे उनका पब्लिक प्रोफाइल तो पिछली बार भी बहुत व्यापक नहीं बना था; लेकिन एक खास वर्ग के बीच तब उन्हें भाजपा टिकट के सबसे मजबूत दावेदार और एक हद तक भावी मेयर के रूप में देखा गया था। माना जाता है कि तब वे भाजपा टिकट की बाजी ऐन अंतिम समय पर जाकर हारे थे। सवाल यह है कि इस बार क्या उन्हीं की कोई रुचि चुनाव में नहीं है या फिर एक बार फिर वे कोई भीतरी समीकरण बनाने में जुटे हुए हैं?
भाजपा की राजनीति में वैश्य लोगों की उपस्थिति व्यापक होती है तो इसका कारण यह है कि भाजपा को बनियों की ही पार्टी माना जाता है। यही कारण है कि औसत वैश्य संस्कारिक रूप से भाजपा समर्थक होता है और वैश्य बंधु राजनीति भी भाजपा की ही करना पसंद करते रहे हैं। अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड में नरेश बंसल, डॉ प्रेम चंद्र अग्रवाल, अनिल गोयल, मयंक गुप्ता, संजय गुप्ता, संजय गर्ग, गौरव गोयल आदि सहित तमाम बनिया लोग नीचे से ऊपर तक प्रभावी दिखाई देते हैं। पिछली बार इन्हीं के बीच एक चेहरा एडवोकेट अजय सिंघल का भी उभरा था। सवाल यह है कि क्या वे इस बार भी सक्रिय हैं?
जाहिर है कि इस सवाल का सटीक जवाब वे ही दे सकते हैं और अगर उनका जवाब “हां” में होता है तो यही उनके कैंडिडेचर को उनके समकालीन दावेदारों के बीच बिल्कुल अलग, एक खास पहचान दे देगा। तब उनका कैंडिडचर बनता है एक मैच्योर सिटीजन और एक जिम्मेदार दावेदार का। उनका कैंडिडचर बनता है एक पब्लिक स्प्रिटेड पॉलिटिकल वर्कर का और वरिष्ठ अधिवक्ता तो वे बाय प्रोफेशन हैं ही; यानी विधाई कार्यों के जानकर भी हैं। फिर इस बात का भी महत्व बराबर है कि उनका अभी तक का करियर विवाद रहित है। पारिवारिक झगड़ों में संपत्ति की लाइजनिंग, संपत्ति खरीदने की अंधी दौड़ या पैसे की हवस का लिए कुछ भी कर लेने का उनका कोई प्रोफाइल कभी उजागर नहीं हुआ है। यह उन्हें सामाजिक रूप से प्रभावी बनाता है। उनके व्यक्तित्व की एक और खूबी है जो अभी सार्वजनिक नहीं है वह यह है कि वे हरिद्वार विधायक मदन कौशिक की लॉबी से आते हैं। रुड़की में निकाय टिकट की राजनीति में मदन कौशिक लॉबी कामयाब नहीं होती। यही कारण है कि भाजपा भी चुनाव में यहां कामयाब नहीं होती। अगर इस बार अजय सिंघल ने टिकट में रुचि दिखाई और भाजपा ने उन्हें टिकट दिया तो भाजपा का 24 साल का हार का ट्रैक बदल भी सकता है।