नरेश यादव की तर्ज पर भाजपा में ठोक रहे टिकट पर दावा

एम हसीन

रुड़की। राजनीति में ताकत कितनी बाकी बची है यह भले ही बहस का मुद्दा हो लेकिन राजनीति में पैसा बेहिसाब है, इसपर कोई बहस नहीं। यही कारण है कि एक खास मानसिकता के लोगों का राजनीति की ओर झुकाव बढ़ता जा रहा है। बेशक कामयाब वही लोग हैं जिन्होंने राजनीति को धंधा बनाकर इसमें पहले इन्वेस्ट किया और फिर कमाया। यह वह वर्ग है जो चुनाव के समय एक्टिव होता है, इन्वेस्टमेंट करता है और चुनाव जीत जाता है। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने राजनीति में पैसे की बजाय समय का इन्वेस्टमेंट किया है। अगर समर्पण के अध्यक्ष नरेश यादव और महामंत्री सौरभ सिंघल की बात की जाए तो ये दूसरी श्रेणी के लोग हैं। इन्होंने राजनीति में समय का इन्वेस्टमेंट किया और लोगों को विधायक-महापौर बनाया है। लेकिन बदलते दौर से ये भी किसी न किसी रूप में प्रभावित हुए ही हैं। अब इन दोनों की इच्छा किसी और को मेयर बनाने की नहीं बल्कि खुद मेयर बनने की है। दोनों के बीच सामंजस्य आरक्षण की स्थिति को लेकर है अर्थात अगर पिछड़ा वर्ग के लिए पद का आरक्षण हुआ तो प्रत्याशी नरेश यादव और अगर आरक्षण न हुआ तो प्रत्याशी सौरभ सिंघल। दावा दोनों का ही भाजपा के टिकट पर है।

नरेश यादव अपनी महत्वकांक्षा को लेकर खूब चर्चित हो चुके हैं लेकिन सौरभ सिंघल के नाम की उतनी चर्चा नहीं हुई। जैसा कि बताया जा चुका है कि वे समर्पण संस्था के महामंत्री हैं। लेकिन वे भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भी हैं और भारत विकास परिषद में सदस्य भी हैं। वे भाजपा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं। अगर उन्हीं के शब्दों में कहा जाए तो वे भाजपा को अपने जीवन के दो दशक दे चुके हैं। फिर वे बी टी गंज रामलीला समिति के पदाधिकारी और मुख्य करता धरता भी हैं। समिति अध्यक्ष सुबोध गुप्ता वरिष्ठ नागरिक हैं और ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। इसकी पूरी लाभ-हानि सौरभ सिंघल के ही खाते में जा रही है। मसलन, इस रामलीला को प्रथम पुरस्कार मिला तो यश के भागी सौरभ सिंघल भी बने। वे पूरी सक्रियता के साथ इस सबसे पुरानी रामलीला समिति के महामंत्री के रूप में समाज से अपने-आप को जोड़े हुए हैं। चूंकि इस समिति को नगर के धनवान वर्ग का संरक्षण प्राप्त है इसलिए स्वाभाविक है कि इसके अतिथि भी प्रभावशाली लोग होते हैं। मसलन, इसी साल के मंचन के दौरान लोकसभा सांसद त्रिवेंद्र सिंह और राज्यसभा सांसद नरेश बंसल समेत जिले के कई विधायक, भाजपा और संघ के पदाधिकारी यहां अतिथि बने। फिर स्वाभाविक है कि सौरभ सिंघल इनके सीधे संपर्क में आए। सौरभ सिंघल का एक वन प्वाइंट प्रोग्राम मंडी शुल्क को ढाई प्रतिशत से घटाकर डेढ़ प्रतिशत कराने का संघर्ष भी है जो सतत जारी है। तो स्वाभाविक रूप से व्यापारियों के बीच उनकी एक अलग पहचान है।

इस सबके बीच यह सवाल अपने स्थान पर कायम है कि वे भाजपा से मेयर टिकट हासिल कर पाएंगे या नहीं! कारण यह है कि भाजपा बनियों की ही पार्टी है इसलिए पार्टी में उनसे अधिक वरिष्ठ बनिए भी मौजूद हैं। फिर इस बात का सवाल भी है कि नगर का प्रबुद्ध वर्ग, जिसमें मुख्यत: व्यापारी ही हैं, कौन से बनिए पर मेहरबान होगा। गौरतलब यह है कि जिस स्थिति में रहते हुए पिछली बार गौरव गोयल मेयर टिकट मांग रहे थे, कमोबेश वैसी ही स्थिति में सौरभ सिंघल टिकट मांग रहे हैं। पिछली बार भाजपा ने गौरव गोयल के दावे को नकारकर मयंक गुप्ता को टिकट दिया था। यह अलग बात है कि जनता ने मयंक गुप्ता को नकारकर गौरव गोयल को मेयर बना दिया था। अब यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि सौरभ सिंघल की विभिन्न संगठनों से जुड़े होने के कारण नगर में पहचान ठीक-ठाक है, लेकिन यह भी देखना होगा कि उनका गॉड फादर कौन है! गौरव गोयल को तो नगर विधायक प्रदीप बत्रा का सकारात्मक सहयोग भी मिला था और भाजपा की ही मयंक गुप्ता विरोधी लॉबी का नकारात्मक सहयोग भी! सवाल यह है सौरभ सिंघल के लिए ऐसी परिस्थिति कौन घड़ सकता है?