सचिन गुप्ता को साधुवाद कि वे पत्नी को देना चाहते हैं राजनीतिक प्रतिनिधित्व
एम हसीन
रुड़की। जहां तक महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने का सवाल है तो हरिद्वार जिले में ऐसा नहीं है कि कांग्रेस-भाजपा ने कोई कोताही की हो। दोनों पार्टियों की दरियादिली इसी से जाहिर है कि हरिद्वार जनपद से एकमात्र राज्यसभा सांसद, डॉक्टर कल्पना सैनी, महिला हैं जबकि कांग्रेस की दो विधायक श्रीमती ममता राकेश (भगवानपुर) और श्रीमती अनुपमा रावत (हरिद्वार देहात) महिलाएं हैं। दोनों पार्टियों ने महिलाओं को यह प्रतिनिधित्व बिना किसी आरक्षण के ही दिया है क्योंकि विधायिका में अभी महिला आरक्षण लागू नहीं है। निकाय चुनाव में तो महिला आरक्षण भी देना ही होता है, दिया भी जाता है, जैसा कि पिछले चुनाव में जिले के दो निगमों में से एक, हरिद्वार, मेयर पद महिला के लिए आरक्षित हुआ था।
अब सवाल फिर निकाय चुनाव का है। क्योंकि हरिद्वार मेयर पद पिछली बार ही महिला के लिए आरक्षित रह चुका है इसलिए पंचायत राज आरक्षण चक्र व्यवस्था के तहत हाथ के हाथ हरिद्वार को ही दोबारा तो महिला के लिए आरक्षित किया नहीं सकता। अलबत्ता यह हो सकता है कि रुड़की मेयर पद महिला के लिए आरक्षित हो जाए। जो लोग टिकट पर दावेदारी कर रहे हैं वे भी इस स्थिति से वाकिफ हैं। यही कारण है कि सचिन गुप्ता और रविन्द्र बेबी खन्ना से लेकर चेरब जैन तक के होर्डिंग्स पर जब उनके अपने फोटो लग रहे हैं तो उनकी पत्नियों के फोटो भी लग रहे हैं। यह एक इशारा है कि यदि सीट महिला के लिए आरक्षित होती है तो वे अपनी पत्नियों के लिए टिकट मांगेंगे। इस सबके बीच यह भी सच है कि नगर में ऐसा कोई महिला चेहरा नहीं है जो स्वतंत्र रूप से किसी दल की या समाज की राजनीति करते हुए टिकट या मेयर पद पर दावा कर रहा हो। केवल पूजा गुप्ता ऐसा चेहरा हैं जो यदा-कदा किसी सामाजिक कार्यक्रम में भी दिखाई दे जाती हैं और राजनीतिक कार्यक्रम में भी। बाकी जो महिलाएं भाजपा या कांग्रेस की पदाधिकारियों के रूप में राजनीति कर भी रही हैं उनमें किसी का भी मेयर टिकट पर दावा नजर नहीं आ रहा है।
दरअसल, निकाय स्तर पर महानगर की तो क्या पूरे जिले की ही राजनीति में महिला उपस्थिति केवल वहीं दिखाई देती है जहां आरक्षण की बाध्यता है। चूंकि पार्षद पदों पर महिलाओं को चुनाव लड़ाया जाना लाजिमी है इसलिए पार्षद स्तर के महिला चेहरे भाजपा-कांग्रेस में सामान्य रूप से भी सक्रिय हैं। चूंकि विधायिका में आरक्षण की बाध्यता नहीं है इसलिए बड़े स्तर राजनीति में महिलाएं भी महानगर में सक्रिय नहीं हैं। फिर भी जिन महिलाओं ने स्वतंत्र रूप से या विरासत के आधार पर राजनीतिक पदों पर दावा किया तो उन्होंने राजनीति में अपना स्थान सुरक्षित कर ही लिया हुआ है। लेकिन वह अलग मसला है। अहम मसला यह है कि फिलहाल केवल पूजा गुप्ता हैं जो कांग्रेस में मेयर का टिकट खुलकर मांग रही हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस उनके दावे पर गौर करती है और उन्हें टिकट देती है तो उनके प्रत्याशी घोषित होते ही वे एक इतिहास रच देंगी। अगर वे निर्दलीय के रूप में भी चुनाव लड़ती हैं तो यह भी इतिहास होगा। अगर वे पार्टी टिकट पर निर्दलीय रूप से चुनाव जीत भी जाएंगी तो यह सब रुड़की के इतिहास में दर्ज होगा। कारण यह है कि कथित रूप से प्रगतिवादी, कथित रूप से शिक्षित, कथित रूप आधुनिक इस महानगर के कूप मंडूक जैसे लोग समग्र रूप से महिलाओं को अपने बराबर का दर्जा देने से कतराते हैं। ऐसे में पूजा गुप्ता का टिकट पर दावा ही उनकी हौसला अफजाई करने का पर्याप्त कारण है। पूजा गुप्ता के पति सचिन गुप्ता साधुवाद के पात्र हैं जो रूढ़िवाद का शिकार जादूगर रोड पर बसने के बावजूद अपनी पत्नी को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना चाहते हैं।