नरेश यादव की महत्वकांक्षा ने खोल दी पूर्व – वर्तमान विधायक की पोल
एम हसीन
रुड़की। अगर धर्म के अगुआ लोग “कर्मफल” को मृत्यु के उपरांत का मुद्दा न बनाएं तो लोग मान भी सकते हैं कि यह इसी जीवन का मामला है। अर्थात बबूल का पेड़ लगाकर आम खाने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए और कर्म हमेशा छुपा रह सकता है यह गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए। बात केवल इतनी है कि जिसे आपने “किंग मेकर” बनाया उसके मन में खुद “किंग” बनने की महत्वकांक्षा जाग गई और उसने जो मुंह खोला तो आपकी खुद की कलई खुल गई। बात प्रत्याशी के रूप में वोट खरीदकर चुनाव जीतने की है और समर्पण अध्यक्ष, जिन्हें मेयर पद के भावी उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है, नरेश यादव का कहना है कि “इस मामले में न पूर्व विधायक सुरेश जैन ईमानदार थे और न ही मौजूदा विधायक प्रदीप बत्रा ईमानदार रहे हैं।” अहम यह है कि नरेश यादव ने खुद को भी ईमानदार होने का प्रमाण पत्र नहीं दिया। उन्होंने इस मामले में खुद को भी जैन और बत्रा के ही समकक्ष रखा।
जान लें कि नरेश यादव सामाजिक संगठन समर्पण के अध्यक्ष हैं और फिलहाल नगर विधायक प्रदीप बत्रा के साथ एसोसिएट हैं, किस रूप में एसोसिएट हैं यह अलग बात है लेकिन वे विधायक से एसोसिएट हैं। इससे पहले वे सुरेश जैन के साथ पी ए के रूप में तब तक एसोसिएट रहे थे जब तक सुरेश जैन विधायक रहे थे या उनके दोबारा विधायक बनने की उम्मीद थी। 2017 में दूसरी बार चुनाव हारने के बाद जब सुरेश जैन ने ही राजनीतिक गतिविधियां सीमित कर दी थी तो नरेश यादव ने भी नया ठिकाना ढूंढ लिया था। सुरेश जैन के साथ रहने के कारण नरेश यादव सत्ता के निकट रह चुके थे इसलिए उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था कि वे कोई भी दूसरा विधायक ही तलाश करें। उनके लिए यह समर्पण का अध्यक्ष बने रहने के लिए भी जरूरी था। इस बेहद शक्तिशाली हो चुके संगठन में अगर नरेश यादव के अलावा कोई और अध्यक्ष नहीं बन पाता या संगठन में कोई विभाजन नहीं हुआ तो इसका कारण केवल और केवल यही है कि नरेश यादव ने अपनी निष्ठा हमेशा विधायक पद के साथ जोड़कर रखी है और विधायकों ने उन्हें पद पर कायम रखा। लेकिन अब हालत में थोड़ा परिवर्तन आया है। परिवर्तन यह है कि अब नरेश यादव के भीतर सीधे राजनीतिक पद पर आने की महत्वकांक्षा जाग रही है। माना जा रहा है कि अगर रुड़की मेयर पद पिछडे वर्ग के लिए आरक्षित होता है तो नरेश यादव भाजपा में टिकट के दावेदार हो सकते हैं। इसका दूसरा वर्जन यह है कि वे बतौर निर्दलीय मेयर पद का चुनाव लड़ सकते हैं। अगर ऐसा हो रहा है तो जाहिर है कि नरेश यादव के भीतर यह ख्वाहिश बिना प्रदीप बत्रा के संरक्षण के तो नहीं पनपी होगी। लेकिन यह अलग मुद्दा है। अहम बात यह है कि नरेश यादव को मेयर पद का महत्वाकांक्षी होने के कारण ही एक खबरिया पोर्टल ने उनसे साक्षात्कार लिया था, जिसमें उन्होंने यह ब्यान दिया।
अब मसला आता है सुरेश जैन का। यह सच है कि राजनीति को कॉर्पोरेट कल्चर में ढालने की शुरुआत रुड़की में सुरेश जैन ने ही की थी। विधायक बनने से पहले उनका राजनीति से कोई संबंध नहीं था। इसी कारण वे राजनीतिक तौर तरीकों से भी वाकिफ नहीं थे। वे रुड़की में निजी शिक्षा व्यवस्था के ओरिजनेटर थे और यही उनकी शक्ति थी। इसी हैसियत में विधायक बनने के बाद उन्होंने नगर की राजनीति को दिशा दी थी। उनके बाद प्रदीप बत्रा ने जो कुछ भी राजनीति में किया, वह सुरेश जैन के पद चिन्हों पर चलते हुए ही किया, क्योंकि प्रदीप बत्रा उन्हीं के द्वारा रोपा गया पौधा था। नरेश यादव को भी समर्पण पर सुरेश जैन ने ही थोपा था। इतिहास जानता है कि पूर्व पार्षद चंद्र प्रकाश बाटा को हाशिए पर धकेल कर सुरेश जैन ने ही नरेश यादव को समर्पण का अध्यक्ष बनवाया था, बनवाए रखा था और अब प्रदीप बत्रा उनके समर्पण अध्यक्ष होने के जामिन बने हुए हैं। कारण यह है कि नरेश यादव की अगुवाई में ही प्रदीप बत्रा के इशारे पर समर्पण ने 2019 में न केवल गौरव गोयल को मेयर बनाने में अहम भूमिका निभाई थी बल्कि 2022 में खुद प्रदीप बत्रा को विधायक बनाने में भी समर्पण की निर्णायक भूमिका रही थी। ऐसे में यह बहुत मुमकिन है कि प्रदीप बत्रा उसी प्रकार नरेश यादव को मेयर का निर्दलीय चुनाव लड़ा दें जैसे उन्होंने 2019 में गौरव गोयल को मेयर बनाया था। बहरहाल, भले ही चंद्र प्रकाश बाटा की ही तर्ज पर सुरेश जैन को भी हाशिए पर धकेला जा चुका है लेकिन अभी नरेश यादव कायम हैं और प्रदीप बत्रा भी। इस कड़ी में हाशिए पर धकेले जाने का अगला नंबर किसका है यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन दो बातें फिलहाल ही कही जा सकती हैं। एक यह कि घर चाहे सुरेश जैन का रहा हो या प्रदीप बत्रा का लेकिन कलाई खोलने के मामले में चराग एक ही साबित हुए हैं और वे हैं नरेश यादव। दो, कर्म का भुगतान करने के मामले में मरना शर्त नहीं है। धर्म के अगुआ चाहे कुछ कहें, कटु सत्य यही है कि कर्मफल यहीं मिलता है। जैन को मिल चुका है और बत्रा को मिलना शुरू हो चुका है।