डा. शमशाद पर भारी पड़ रहे पिछले कार्यकाल के मामले
एम हसीन
मंगलौर। यूं तो लोग यह दावा भी करते हैं कि स्थानीय निकाय में जब भी चुनाव होंगे, स्थानीय कांग्रेस विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन डा. शमशाद की पहल पर, उनके द्वारा सुझाए गए प्रत्याशी को ही चुनाव लड़ाएंगे। लेकिन सच यह है कि डा. शमशाद का पीछा उनका पिछला कार्यकाल ही नहीं छोड़ रहा है। स्थिति यह है कि भ्रष्टाचार को लेकर दायर की गई हाई कोर्ट की पीठ ने पिछले नगर पालिका परिषद अध्यक्ष हाजी दिलशाद को व्यक्तिगत रूप से हाजरी देने का आदेश दिया है। तिथि 22 अक्टूबर तय की गई है।
मुद्दे पर आगे चर्चा करने से पहले यह जान लें अपनी कुछ कानूनी मजबूरियों के कारण डा. शमशाद खुद निकाय चुनाव नहीं लड़ पाते बल्कि अपने किसी प्रतिनिधि को लड़ाते हैं। 2008 में उन्होंने अपनी माता जी को प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़ा था जबकि 2018 में वे अपने भाई हाजी दिलशाद को प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़े थे। उनकी तरफ से चुनाव कोई भी लड़े लेकिन राजनीति वे ही करते हैं। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के किसी मामले में अगर अदालत कोई फैसला हाजी दिलशाद के खिलाफ करती भी है तो उसका कोई असर डा. शमशाद की राजनीति पर नहीं पड़ता। वे तीसरी बार भी जब चुनाव लडेंगे तो प्रत्याशी हाजी दिलशाद नहीं होंगे तो उनका कोई और परिजन होगा।
यही कारण है कि एक ओर लोग मान रहे हैं कि आसन्न निकाय चुनाव में डा. शमशाद जिसका भी नाम रिकमेंड करेंगे, क़ाज़ी निज़ामुद्दीन उसे ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ाएंगे। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि डा. शमशाद ने हाल के विधान सभा उप चुनाव में दिवंगत विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी के बसपा प्रत्याशी रहे पुत्र ओबेदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी का साथ छोड़कर क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का साथ देना मंजूर किया था। इसका क़ाज़ी निज़ामुद्दीन को लाभ भी हुआ। वे महज 422 वोटों के अंतर से चुनाव जीते। इतने मुश्किल मुकाबले में डा. शमशाद के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। बहरहाल, चुनाव का मामला अपने स्थान पर है और पिछले कार्यकाल का भ्रष्टाचार का मामला अलग। बात केवल इतनी ही नहीं है कि भ्रष्टाचार के मामले में अदालत हाजी दिलशाद के खिलाफ कोई ऐसा फैसला भी दे सकती है जिससे न केवल डा. शमशाद के परिवार में स्थिति अप्रिय हो जाए बल्कि अगले चुनाव के लिए उन्हें परिवार में प्रत्याशी ही नहीं मिले। दूसरी बात यह चर्चा भी है कि खुद नगर पालिका परिषद में डा. शमशाद की करोड़ों की रकम फंसी हुई है। इसी कारण यह चर्चा भी है की डा. शमशाद का मुख्य उद्देश्य अगला चुनाव लडना नहीं बल्कि यह है कि क़ाज़ी निजामुद्दीन के माध्यम से हाजी दिलशाद के खिलाफ चल रही मुहिम बंद हो जाए और नगर पालिका परिषद से उनका भुगतान हो जाए। इसी प्राथमिकता के तहत वे क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के साथ सचिवालय में भी खूब दिखाई दे रहे हैं। खैर, ये सब मामले अलग हैं और यह अलग कि हाजी दिलशाद को 22 अक्टूबर को हाई कोर्ट में हाजिरी देनी है।