मेलों को बढ़ावा देने की सरकार की नीति का भी यहां नहीं निकला कोई नतीजा

एम हसीन

कलियर शरीफ। पुष्कर सिंह धामी बेहद सक्रिय मुख्यमंत्री हैं और प्रशासक भी प्रभावशाली हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश में मेलों को बढ़ावा देने की नीति को खुले रूप में संरक्षण दिया है और उन्हें राज्य स्तर पर आर्थिक पैकेज भी दिए हैं। लेकिन कलियर में ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। एक ऐसा उर्स जिसमें विदेशी जायरीन का प्रतिनिधि मंडल बकायदा घोषित रूप से शामिल हुआ, जिसमे पड़ोसी देश के उच्चायुक्त तक ने अपनी शिरकत दर्ज कराई, उसे लेकर राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया। क्यों?

इसके तीन कारण हैं। चूंकि इसका संबंध अल्पसंख्यक समुदाय से है और सरकार ने यहां की जिम्मेदारी अल्पसंख्यक संस्था वक्फ बोर्ड को सौंपी हुई है तो स्वाभाविक रूप से जो कुछ भी करना था, वक्फ बोर्ड को ही करना था। भले ही वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स, जो कि भाजपा के प्रवक्ता भी रह चुके हैं, कहते हों कि दरगाह की व्यवस्था में वक्फ बोर्ड का हस्तक्षेप नहीं है लेकिन दरगाह के प्रबंधन से बाहर जा कर, केवल उर्स को लेकर तो वक्फ बोर्ड प्रस्ताव बना ही सकता था, अध्यक्ष एकल स्तर पर या प्रतिनिधि मंडल को लेकर मुख्यमंत्री के पास जा सकते थे और कुछ न कुछ लेकर वापिस आ सकते थे। धामी ऐसे मुख्यमंत्री हैं ही नहीं जो इस मामले में गए किसी प्रासंगिक, जनहितकारी प्रस्ताव को स्वीकार न करते। वैसे उर्स या दरगाह में वक्फ बोर्ड का हस्तक्षेप है या नहीं यह इस बात से प्रमाणित होगा कि जायरीन के इस्तकबाल के लिए जो होर्डिंग्स शादाब शम्स की ओर से लगे, “एक शाम सूफियों के नाम” का जो आयोजन वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने किया उसका भुगतान दरगाह कार्यालय से होता है या वक्फ बोर्ड से! जाहिर है कि अगर भुगतान दरगाह कार्यालय से हुआ तो उनका यह दावा गलत हो जायेगा।

बहरहाल, उर्स में कुछ खास न हो पाने का दूसरा कारण यह है कि कलियर में विधायक पद भाजपा के पास नहीं है बल्कि कांग्रेस के पास है। माना जा सकता है कि कांग्रेस विधायक अपने क्षेत्र के लिए कोई विशेष प्रस्ताव लेकर सी एम के पास जाने का राजनीतिक बल अपने भीतर पैदा नहीं कर सके। वैसे विगत दिवस मुख्यमंत्री ने खुद बताया था कि उन्होंने पक्ष विपक्ष के प्रत्येक विधायक से विकास के 10 प्रस्ताव मांगे थे और यूं उन्हें 700 प्रस्ताव प्राप्त हुए थे, जिनमें से 310 प्रस्तावों को वे मंजूरी दे चुके हैं और यूं विपक्षी विधायकों के 90 प्रस्तावों को भी मंजूरी मिल चुकी है। तीसरा कारण है कि भाजपा के जिलाध्यक्ष शोभाराम प्रजापति कलियर में पार्टी टिकट के दावेदार नहीं हैं बल्कि रुड़की में मेयर टिकट के दावेदार हैं। इसलिए कलियर उर्स उनकी प्राथमिकता पर भी कहीं नहीं है। जो कलियर में टिकट के दावेदार हैं या चुनाव लड़ चुके हैं उन्हें, लगता है कि, शादाब शम्स ने जोड़ने की कोशिश ही नहीं की। शादाब शम्स ने यह इशारा दे दिया कि 2027 में वे खुद कलियर में भाजपा टिकट के दावेदार हो सकते हैं।

फिर अवस्थाओं का होना कोई बड़ी बात नहीं, खासतौर पर जब उर्स को एक प्राथमिकता के रूप में लेकर चल रहे रुड़की जायंट मजिस्ट्रेट देवेश शशनी का ऐन उर्स के मध्यकाल में प्रमोशन हो गया। हालांकि अमले से जो बेहतर कराया जा सकता है वह नए ज्वाइंट मजिस्ट्रेट करा रहे हैं। सच तो यह है कि जो कर रहे हैं ज्वाइंट मजिस्ट्रेट और उनका अमला ही कर रहे हैं। बाकी शादाब शम्स तो अब भी जो कर रहे हैं उससे विवाद ही पैदा हो रहा है। मसलन, उन्होंने “एक शाम सूफियों के नाम” जो कार्यक्रम अपनी अगुवाई में आयोजित किया वह अपने आप में विवाद का कारण बन गया है। अहम यह नहीं है कि वहां की किन गतिविधियों को लेकर आपत्तियां दाखिल दफ्तर की जा रही हैं। अहम यह है कि कार्यक्रम का एजेंडा क्या था और वहां हुआ क्या? दूसरा सवाल यह है कि वहां जो कुछ हुआ क्या उसका कोई लाभ भाजपा को ही मिल सका? बहस तलब है।

जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात है तो उनका 15 साल से एक निश्चित एजेंडा चला आ है। कोई और क्या कर रहा है यह अलग बात है लेकिन कम से कम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी, का तो एजेंडा यही है कि उनके पीछे चलते हुए जो व्यक्ति जिस सामाजिक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है उस वर्ग के लिए ईमानदारी से काम भी करे। ऐसे में अब कोई क्या कहे कि “एक शाम सूफियों के नाम” में सूफियों के लिए तो कुछ था नहीं। बहरहाल, इन्हीं हालात में उर्स की घड़ियां बीत रही हैं। दो मुख्य रस्में बीत चुकी हैं और एक 18 सितंबर को हो जायेगी। 19 को विदेशी मेहमान भी वापिस चले जायेंगे और उर्स का समापन हो जायेगा। यही होता आया है और और यही हो रहा है।