इस सामाजिकता का कोई मतलब निकाल पाएं तो बने बात
एम हसीन
मंगलौर। निकाय चुनाव का एक निश्चित कार्यक्रम घोषित हो जाने और उसमें अभी करीब दो महीने का समय शेष रहने के कारण राजनीतिक दलों ने भी निकाय चुनाव मुहिम से यू टर्न ले लिया था। चुनाव के लिहाज से सरकारी और राजनीतिक दलों के स्तर पर भी सब कुछ ठहरा हुआ है। लेकिन मंगलौर नगर पालिका अध्यक्ष परिषद पद को लेकर बसपा टिकट के दावेदार माने जा रहे चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी अभी भी सक्रिय हैं। अभी उनकी सक्रियता बेशक राजनीतिक नहीं है बल्कि सामाजिक है। और उनकी यही सक्रियता उन्हें अपने समकालीनों से अलग एक अलग ही पैडस्टल पर खड़ा कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या समय आने पर वे इसका कोई राजनीतिक मतलब भी निकाल पाएंगे?
चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी को पिछले महीनों में जनता के स्तर पर व्यापक संपर्क करते देखा गया था। वैसे उनके राजनीतिक इरादे तो इस बात से भी जाहिर ही हैं कि वे 2018 में बसपा के टिकट पर ही अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े थे। लेकिन हालात बताते हैं कि तब उन्होंने केवल बसपा का टिकट होल्ड किया था, चुनाव नहीं लड़ा था। चुनाव में तो वे तब ज्यादा दिखाई ही नहीं दिए थे। एक प्रकार से देखा जाए तो उन्होंने उस समय उन्होंने अपने चाचा हाजी सरवत करीम अंसारी के लिए एक कुर्बानी दी थी। हाजी सरवत करीम अंसारी तब पूर्व विधायक थे और बसपा से निष्कासित रह कर अपने राजनीतिक अस्तित्व का संघर्ष करते हुए बसपा के ही बागी हाजी दिलशाद को चुनाव लड़ा रहे थे। तब चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी अगर जनता के बीच चुनाव लड़ जाते तो मुमकिन था कि हाजी दिलशाद हार जाते और हाजी सरवत करीम अंसारी के प्रभाव का वहीं अंत हो जाता। न उनकी बसपा में वापसी हो पाती और न ही वे 2022 में विधायक बन पाते। इस एपिसोड में चौधरी जुल्फिकार अंसारी का खामोश योगदान रिकॉर्ड किया जाता रहा है और इसका रिवार्ड वे बसपा से भी चाहते हैं और अगर हाजी सरवत करीम अंसारी, अगर हयात होते तो, वे उनसे भी जरूर मांगते, मांग रहे थे। वह स्थिति बहरहाल अब नहीं रही। लेकिन बसपा टिकट को लेकर वे अभी दावेदार हैं। पिछले दिनों जब बसपा ने अपना प्रदेश प्रभारी मुनकाद अली को बनाया और वे उत्तराखंड आए तो उनका स्वागत करने वाले लोगों में चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी अहम थे। इससे उनके इरादे जाहिर होते हैं।
अब मसला यह है कि चुनावी भूमि में तो अभी दो महीने तक हल चलाया नहीं जा सकता। लेकिन वे अभी भी सक्रिय हैं, अपने घेर में नियमित बैठकें कर रहे हैं, जरूरत और हालात के मुताबिक लोगों के बीच भी जा रहे हैं और उन्हें अपने पास बुला भी रहे हैं। अब बात तो तभी बने जब वे अपने इस सामाजिक अभियान का कोई लाभ समय आने पर राजनीतिक रूप से भी उठा सकें।