दानी लोगों की सामाजिक-धार्मिक भावना का शोषण कर रहे कुछ चंदा खोर

एम हसीन

रुड़की। शिक्षा नगरी के लोगों की दान प्रवृत्ति, उनकी सेवा भावना का जलवा विभिन्न आयोजनों में खुलकर दिख रहा है। लेकिन साथ ही यह भी दिख रहा है कि लोगों की इस सरल सामाजिक प्रवृत्ति ने नगर में चंदा खोरों की जमात खड़ी कर दी है। जरूरत इस बात की है कि नगर में प्रति वर्ष दान की जाने वाली अरबों की राशि से अगर समाज सेवा हो, अगर शर्मसेवा हो तो उनका कोई ठोस रूप संबंधित अवसर के बाद में भी दिखाई दे, लंबे समय तक कायम रहे और दीन दुखियों के, मजबूरों के काम आए।

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा प्रारंभ होते ही रुड़की के लोगों की सेवा भावना जोर पकड़ने लगती है। यह इसी से जाहिर है कि कांवड़ यात्रियों के लिए ही यहां बड़े पैमाने पर शिविर लगाए जाते हैं। इनमें एकल स्तर पर लगने वाले शिविर, जैसे व्यापार मंडल के महामंत्री कमल चावला ने शिवरात्रि तक अपने खर्च पर अनवरत शिविर लगाया था, हों या सामूहिक, जैसे समर्पण ने सामूहिक शिविर लगाया था। समर्पण की भावना यह है कि वे किसी से नकद दान नहीं लेते लेकिन खाद्य सामग्री और दवाओं आदि के रूप में जो भी चाहे वहां दान दे दे। लोगों की भावना इतनी प्रबल है कि कांवड़ में शुरू हुआ यह सिलसिला दीवाली के बाद तक अनवरत चलता है। जैसे इन दिनों गणेश चतुर्थी के आयोजन चल रहे हैं। हैरत नहीं कि गणेश जी को समर्पित या खाटू श्याम जी को समर्पित यहां अनगिनत आयोजन होते हैं जो भव्यता में एक से बढ़कर एक होते हैं और अधिकांश जनता के आर्थिक सहयोग से होते हैं। और भी सैकड़ों आयोजन हैं जो यहां वर्षभर चलते रहते हैं। पूरे वर्ष में सैकड़ों शोभायात्राएं, सैकड़ों सामाजिक या धार्मिक आयोजन ऐसे होते हैं जिनकी भौतिक उपलब्धि आयोजन के बाद केवल वीडियो के रूप में ही रह जाती है। यह कड़वा सच है कि लोगों की इस सामाजिक भावना या धर्म भावना की कोई ठोस, स्थाई उपलब्धि केवल मंदिरों, मस्जिदों आदि धर्म स्थलों की स्थापना के रूप में ही दिखाई देती है। किसी अस्पताल आदि सार्वजनिक सेवाभावना के केंद्र के रूप में नहीं होती। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि शिक्षा नगरी में एक, इकलौता खैराती अस्पताल नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में तो कुछ गनीमत है भी लेकिन चिकित्सा के मामले में तो मुकम्मल तौर पर यहां का नागरिक या तो बेहद महंगी निजी चिकित्सा पर निर्भर है या फिर “ऊंट के मुंह में जीरा” जैसी सरकारी चिकित्सा पर।

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि नगर के लोगों की सेवा भावना हमेशा से ही प्रबल रही है। एक समय था जब उसकी दिशा भी व्यापक क्षेत्रों को कवर करती थी। नगर में अधिकांश शिक्षा संस्थाएं सामाजिक सहयोग से ही स्थापित की गई थी और उन्हीं से पढ़ लिखकर लोगों ने समाज के लिए अनेक काम किए हैं। चिकित्सा के मामले में भी यह सोच काम करती रही है। मसलन, 20वीं सदी के उत्तरार्ध में रुड़की के नगर प्रमुख और विधायक रहे स्वर्गीय जगदीश नारायण सिन्हा ने नगर के लोगों की सेवा भावना का उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र करना तय किया था। उन्होंने नगर में एक बेहद स्तरीय अस्पताल का निर्माण सामाजिक सहयोग से करने का बीड़ा उठाया था और लोगों ने आर्थिक रूप से उन्हें सहयोग किया था। यूं इकट्ठा हुई राशि जगदीश नारायण सिन्हा के देहांत के बाद सरकार के खजाने में चली गई थी और सरकार ने स्व. जगदीश नारायण सिन्हा स्मारक संयुक्त चिकित्सालय के रूप में यहां बड़ा अस्पताल बना था जो अब उप जिला चिकित्सालय कहलाता है।

चिकित्सा के क्षेत्र में ही स्व. रामदयाल अग्रवाल ने भी एक प्रयोग किया था। उन्होंने रोटरी क्लब के साथ गठबंधन करके एक ट्रस्ट “रोटरी रामदयाल नेत्र चिकित्सालय ट्रस्ट” बनाया था। यह 80 के दशक की बात है और इस ट्रस्ट के गठन में नगर के वरिष्ठ संघ नेता रहे स्व. बृज भूषण शर्मा ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। कभी भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके राम दयाल अग्रवाल ने अस्पताल के लिए कई बीघा बेशकीमती भूमि दान में दी थी। यह भूमि आज भी खाली पड़ी है लेकिन अस्पताल का निर्माण बाद में नहीं हो सका। शायद इसलिए क्योंकि उसके बाद समाज पर बाजारवाद हावी हो गया था और समाजसेवा को शोभायात्राओं आदि के रूप में नई दिशा मिल गई थी। रही सही कसर तब पूरी हो गई थी जब धर्म की भावना प्रबल हुई थी।

बहरहाल, बाजारवाद ने लोगों की आय को बढ़ाया है तो उनकी दान करने की प्रवृत्ति को भी बढ़ाया है। लेकिन उनसे दान के हिसाब का रखने की फुरसत छीन ली है। अब लोग इस बात से सरोकार नहीं रखते कि उनसे लिए गए आर्थिक सहयोग का इस्तेमाल कहां हुआ! इसका नतीजा यह है कि नगर में एक पूरी जमात चंदा खोरों की खड़ी हो गई है। बेशक अभी ऐसे अनेक लोग हैं जो अपनी धर्म सेवा या समाजसेवा अपनी ही जेब पर करते हैं। लेकिन कई ऐसे लोग हैं जिनकी सारी सक्रियता ही चंदे के दम पर है। कहना न होगा कि समाजसेवा के नाम पर कुछ करने के इच्छुक लोगों को एक दिशा पकड़ने की जरूरत है ताकि उनका चंदा अगर धर्म के काम आए तो समाज के काम भी आए, कहीं समाजसेवा का कोई सॉलिड स्ट्रक्चर भी नगर में नजर आए। और कुछ नहीं तो एक खैराती अस्पताल ही नजर आए।