निकाय चुनाव को लेकर आए सरकार के फैसले से ठप्प हो गई नगर की राजनीति

एम हसीन

मंगलौर। उच्च न्यायालय में सरकार द्वारा अंतिम कार्यक्रम दाखिल कर दिए जाने के बाद नगर में निकाय चुनाव की गतिविधियां रफ्तार नहीं पकड़ पा रही हैं। चूंकि चुनाव की अवधि लंबी दिखाई दे रही है इसलिए अध्यक्ष से लेकर सभासद पद तक के दावेदारों की गतिविधियां अगर कुछ हैं तो केवल दफ्तरों पर बैठकों तक। न जनता के बीच सक्रियता है और न ही मीडिया के बीच साक्षात्कार कमाल यह है कि कल दावेदारों को प्रमोट करने के लिए जनता के बीच जा रहे मीडिया कर्मी भी एकाएक खामोश हो गए हैं। वे न दावेदारों की विशेषताओं को हाईलाइट कर रहे हैं और न ही उनके समर्थकों के उत्साह को।

निकाय चुनाव की प्रक्रिया करीब एक साल देरी से चल रही है। जो प्रक्रिया पिछले नवंबर में पूरी हो जानी चाहिए थी उसकी अभी तक रूप रेखा भी तय नहीं है। हालांकि हाल ही में राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में जारी जनहित याचिका को यह आश्वासन देकर निस्तारित करा दिया है कि चुनाव हर हाल में 25 दिसंबर तक करा लिए जाएंगे। अब अगर पदों के दावेदार इस आश्वासन पर विश्वास करें तो भी उन्हें साफ दिख रहा है कि चुनाव में अभी देर है। कारण, प्रक्रिया 10 नवंबर के बाद शुरू होगी क्योंकि सरकार ने 10 नवंबर को अधिसूचना जारी करने का आश्वासन दिया है। वैसे दावेदारों के सामने वह अनुभव भी है जब सरकार ने 20 अगस्त को हाई कोर्ट में ही आश्वासन दिया था कि चुनाव अक्टूबर में कराने को तैयार है। यह अनुभव दावेदारों के मनोबल को तोड़ रहा है और उनकी सक्रियता उतनी नहीं हो रही है जितनी अगस्त के महीने में हो गई थी। तब तो दावेदारों ने तमाम बैठकें कर डाली थी, जन संपर्क को चरम पर पहुंचा दिया था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

वास्तव में इसका एक कारण दावेदारों का हो चुका खर्च भी है। जैसा कि सब जानते हैं कि चुनाव बेहद महंगा हो गया है। चूंकि अधिकांश दावेदारों का जनता से या जनहितों के संघर्ष से कोई खास सरोकार नहीं है इसलिए वे जब चुनाव लड़ने की घोषणा करते हैं तो उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं होता कि वे नोटों की बोरियां खोलकर जनता को लुभाएं। नगर में चूंकि अधिकांश दावेदार इस काम को पिछले एक साल से करते आ रहे हैं और “बिना सूत न कपास” के भी लाखों – लाखों खर्च कर चुके हैं तो जाहिर है कि उनका चुनाव के लिए निर्धारित बजट पहले ही छीज चुका है तो अब वे बिना ठोस सरकारी कार्यवाही, जो कि अधिसूचना ही हो सकती है, के बिना सक्रिय नहीं होना चाहते। यही कारण है कि मंगलौर में एकाध दावेदार के दफ्तर पर तो भले ही थोड़ी बहुत रौनक हो लेकिन नगर के महल तो उदास हैं ही, गलियां तो सूनी हैं ही।