2027 के मद्देनजर पार्टी की नहीं नजर आ रही कोई तैयारी

एम हसीन

मंगलौर। जिले की अन्य सीटों की बनिस्बत मंगलौर विधानसभा सीट का एक उल्लेखनीय पक्ष यह है कि यहां 6 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जबकि बाकी सीटों पर 5 चुनाव हुए हैं। इन 6 चुनावों में यहां बसपा को 4 बार जीत मिली है जबकि कांग्रेस महज दो बार जीती है। 2002 व 2007 में यह सीट क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने बसपा के लिए जीती थी जबकि 2012 व 2022 में हाजी सरवत करीम अंसारी यहां बसपा प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए थे। ये सभी सामान्य चुनाव थे। इस क्रम में 2017 के सामान्य चुनाव में तथा 2024 के उप-चुनाव में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने इस सीट को कांग्रेस के लिए जीता था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि 2023 में अंसारी का देहांत हो गया था। अब 2027 का चुनाव सामने है और क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का यहां कांग्रेस प्रत्याशी रहना तय है। लेकिन 2024 के उप-चुनाव में जिन उबैदुर्रहमान अंसारी को बसपा ने अपना प्रत्याशी बनाया था वे कभी का बसपा को छोड़ चुके हैं। जितना अहम उनका बसपा को छोड़ जाना है, उतना ही अहम यह है कि यहां बसपा ने उनका कोई विकल्प खड़ा नहीं किया है; अर्थात यहां मंगलौर नगर या देहात में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो 2027 की तैयारी करता हुआ दिखाई दे रहा हो। ऐसे में सवाल यह है कि जिस सीट को बसपा ने 4 बार जीता हो, उस सीट पर अब पार्टी ने हथियार डाल दिए हैं? या फिर पार्टी किसी खामोश तैयारी में जुटी हुई है।

जैसा कि अब साबित हो चुका है कि उत्तराखंड बसपा के संगठन में कोई पदाधिकारी अब इतना योग्य नहीं है कि वह पार्टी के किसी प्रत्याशी को चुनाव जितवा पाने की स्थिति में हो। बहन जी की अगुवाई में, कम से कम उत्तराखंड में, बसपा अब बहुजन समाज की नहीं बल्कि महज दलित समाज की पार्टी भर बनकर रह गई है। दलित समाज की एकाग्रता भी इसी कारण टूटती है और उसमें अक्सर विभाजन होता देखा गया है। इसका एक कारण यह भी है कि पार्टी संगठन आमतौर पर जिले के अपने सबसे ज्यादा प्रभावी चेहरे, लक्सर विधायक हाजी शहजाद, के साथ तालमेल नहीं बना पाता। चूंकि पार्टी अपना टिकट अपने संगठन की पहल पर देती आई है और इसी कारण प्रत्याशी को हाजी शहजाद का सहयोग नहीं मिल पाता। खास मंगलौर की अगर बात करें तो यहां जब पार्टी ने हाजी शहजाद की पहल पर टिकट दिया तो वह तीन में 2 चुनाव जीती। इसके बावजूद उप-चुनाव में प्रत्याशी का चयन पार्टी ने अपने हिसाब से कर लिया। पार्टी ने प्रत्याशी चयन अपने हिसाब से किया तो नतीजा भी उसके अनुरूप हासिल किया।इस नतीजे ने ही ऐसा माहौल बना दिया कि अब हाजी शहजाद के करने लायक भी यहां बहुत कुछ नहीं रह गया है। इसके बावजूद यह सच अपने स्थान पर कायम है कि मंगलौर उन सीटों में है जहां बसपा आपसी दूरियां मिटाकर चाहे तो एक मजबूत चुनाव लड़ सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बसपा ऐसा करेगी?