राव बिरादरी ने खड़े किए अपने प्रदेश और जिला संगठन
एम हसीन
हरिद्वार। राव, यानि मुस्लिम राजपूत, बिरादरी ने राज्य स्तर पर अपना संगठन खड़ा किया है। साथ ही इसकी जिला इकाई भी गठित की गई है। कहने को यह एक सामाजिक संगठन है लेकिन उसके निहितार्थ राजनीतिक हैं। सवाल राज्य की राजनीति में अपने लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है जो कि किसी भी स्तर पर बिरादरी को हासिल नहीं हो रहा है। राज्य के तीन मुस्लिम विधायकों में न केवल बिरादरी का एक भी नहीं है बल्कि बिरादरी के लिए विधानसभा टिकट की संभावना भी बनती दिखाई नहीं देती।
यह सच है कि बिरादरी की मत संख्या उल्लेखनीय नहीं है लेकिन चूंकि यह स्वर्ण बिरादरी है और अर्थ संपन्न भी है, इसलिए प्रभावशाली भी है। प्रभावशाली है तो राजनीतिक रूप से महत्वकांक्षी भी है। लेकिन विडंबना यह है कि सूबे की 5 लोकसभा सीटों में से किसी पर तो बिरादरी के लिए कोई संभावना बनती ही नहीं, 70 सदस्यीय विधानसभा में भी कोई संभावना नहीं बनती। बेहद महत्वकांक्षी बिरादरी की वर्तमान की सच्चाई यह है कि राज्य में उसका प्रतिनिधित्व केवल एक, रुड़की क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष, पद पर राव लुबना के रूप में है। राव लुबना पूर्व वक्फ बोर्ड अध्यक्ष राव काले खां के परिवार से आती हैं। एक ओर यह स्थिति है और दूसरी ओर बिरादरी का अतीत है।
एक दौर था जब रुड़की विधानसभा सीट पर राव बिरादरी का कब्जा था और राव मुश्ताक खां यहां विधायक थे। उन्होंने इस सीट को 1972 और 1977 में, दो बार, जीता था। अभी हरिद्वार जनपद का गठन हुआ था और न ही उत्तराखंड का। राव बिरादरी के वैभव का यह काल 1972 से 1980 तक रहा था और 1980 में लोकदल के छतर सिंह सैनी ने राव मुश्ताक खां से टिकट छीनकर इस वैभव को समाप्त कर दिया था। तब कांग्रेस के रामसिंह सैनी ने रुड़की सीट जीती थी। इस वैभव को पुन: प्राप्त करने का एक प्रयास 1991 के विधानसभा चुनाव में बसपा का टिकट लेकर खुद राव मुश्ताक खां ने ही किया था लेकिन बात बनी नहीं थी, हालांकि तब हरिद्वार जिले का गठन हो चुका था। फिर 2000 में उत्तराखंड का भी गठन हुआ और राव बिरादरी के लिए शीतल हवा के झोंके 2012 में बनी कांग्रेस की सरकार के दौरान आए। तब विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली सरकार ने पहले हाजी राव शेर मुहम्मद को हज कमेटी का और फिर राव काले खां को राज्य वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष निर्वाचित कराया। बाद में हरीश रावत की सरकार ने राव फरमूद अली को भी दर्जधारी बनाया गया था।
हालांकि इससे पूर्व जिला पंचायत के सदस्य पद पर एक-एक बार राव अफाक अली, राव नौबहार अली और एक बार राव गुड्डू खां भी विजई हो चुके थे। इनमें राव गुड्डू खां और राव आफाक अली जिला पंचायत के उपाध्यक्ष भी निर्वाचित हुए थे। लेकिन बिरादरी का इस वैभव का अवसान राज्य में कांग्रेस का अवसान होने के साथ ही हो गया था। हालांकि राजनीतिक प्रतिनिधित्व हासिल करने के लिए बिरादरी के कई चेहरों, मसलन ब्लॉक प्रमुख राव लुबना के अभिभावक राव काले खां, ने भाजपा से भी नाता जोड़ा, लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है।
इन्हीं परिस्थितियों के बीच बिरादरी के एक धड़े ने राज्य और प्रदेश स्तरीय संगठन बनाया है। इसके गठन का जाहिर उद्देश्य बिरादरी के भीतर पसरी बुराइयों को दूर करना बताया गया है, इसी कारण इसके पदाधिकारी भी आमतौर पर गैर-राजनीतिक चेहरे ही बनाए गए हैं। लेकिन असल उद्देश्य राजनीतिक है। संगठन कितना सफल होगा या क्या-कुछ हासिल कर पाएगा यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल का सच यह है कि राजनीतिक रूप से सक्रिय बिरादरी के उल्लेखनीय चेहरों की कोई खास दिलचस्पी ऐसी किसी पहल को लेकर दिखाई नहीं दी है।