क्या कैबिनेट की दौड़ से बाहर हो गए हैं प्रदीप बत्रा?
एम हसीन
रुड़की। क्या भाजपा के रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा राज्य कैबिनेट में हिस्सेदारी की दौड़ से बाहर हो गए हैं? क्या उनके इस मामले में प्रोस्पेक्टस खत्म हो गए हैं? पिछले कुछ दिनों में भाजपाई मंचों की जो स्थिति देखने में आई है, उसकी रूह में यह सवाल आम हो चला है।
जैसा कि सब जानते हैं कि 2022 में प्रदीप बत्रा लगातार तीसरी बार विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक बने थे। इससे पहले बतौर विधायक तब उनकी शक्ति में जोरदार उछाल आया था जब भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया था। धामी को बत्रा का मित्र माना गया था और किसी हद तक ऐसा दिखाई भी दिया था। चूंकि धामी की अगुवाई में ही विधानसभा चुनाव हुआ था और धामी ने रुड़की में बत्रा की जीत सुनिश्चित करने के लिए खासी मेहनत की थी। कैबिनेट को लेकर बत्रा की उम्मीदों को इस बात ने भी बढ़ाया था कि धामी ने हरिद्वार विधायक मदन कौशिक को मंत्री नहीं बनाया था, जबकि तब के कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद अपना चुनाव हार जाने के कारण कैबिनेट की दौड़ से बाहर हो गए थे। इसी कारण तभी से बत्रा अपनी कल्पना भावी कैबिनेट मंत्री के रूप में करते आ रहे हैं। इन उम्मीदों को इस बात से भी बल मिलता रहा है कि केवल रुड़की में ही नहीं बल्कि हरिद्वार में भी बत्रा सी एम के साथ लगातार मंच समझा करते आ रहे थे, जबकि हरिद्वार में अक्सर हरिद्वार विधायक मदन कौशिक सी एम के मंचों पर नजर नहीं आते थे। इन सारी चीजों से जो राजनीतिक दृश्य बनता था उससे प्रदीप बत्रा मजबूत हुए दिखते थे। लेकिन अब तस्वीर बदलती दिखाई दे रही है।
दरअसल, इस मामले में बत्रा का एक ड्रॉ बैक यह भी बन रहा है कि राज्य की कैबिनेट से पूरे प्रदेश की राजनीति निर्धारित होनी है और प्रदीप तीन बार विधायक रहने के बावजूद अभी इतना प्रभावशाली नहीं हुए हैं कि उनके कैबिनेट में होने या न होने से राज्य की राजनीति प्रभावित हो सकती हो। अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदीप बत्रा तो अपने व्यक्तित्व के दम पर रुड़की के बराबर में स्थित कलियर या झबरेड़ा या खानपुर विधानसभा सीटों के परिणाम को प्रभावित नहीं कर सकते। सच तो यह है कि अपने विधान सभा क्षेत्र में भी वे अपनी पार्टी की राजनीति को तो प्रभावित कर ही नहीं सकते, अपने व्यक्तिगत परिणाम को भी अपनी मर्ज़ी से तय नहीं कर सकते। 2022 के चुनाव में ही अगर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनके लिए व्यक्तिगत प्रयास नहीं किए होते तो वे चुनाव नहीं जीत सकते थे। रही-सही कसर हाल के मेयर चुनाव में उनकी गतिविधियों को लेकर बने प्रेसेप्शन ने पूरा की हुई है। बत्रा चुनाव में चाहे कितना भी ईमानदारी से पार्टी प्रत्याशी अनीता ललित अग्रवाल के लिए काम कर रहे थे लेकिन सामान्य सोच यही रही कि वे पार्टी प्रत्याशी के साथ भीतरघात कर रहे थे। कहीं न कहीं यह सोच मेयर की भी रही। इसका इशारा तब मिला जब मेयर ने गंग नहर के किनारे दैनिक आरती का कार्यक्रम किया, मुख्यमंत्री को बुलाया और बत्रा को साइड अ लाइन रखा। चूंकि अनीता ललित अग्रवाल को खुद मुख्यमंत्री चुनाव लड़ा रहे थे, इसलिए बत्रा की कथित गतिविधियों को लेकर जो रिपोर्ट ऊपर पहुंची उसे ऊपर भी ठीक निगाह से नहीं देखा गया। ऐसी विपरीत परिस्थितियों का शिकार बने प्रदीप बत्रा के विषय में कम से कम फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि वे कैबिनेट की दौड़ से बाहर हैं।