क्या परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर पाएंगे प्रदीप बत्रा?
एम हसीन
रुड़की। नगर विधायक प्रदीप बत्रा इन दिनों खासे उत्साहित हैं। वे सड़कों के पुनर्निर्माण कार्यों के लगातार उद्घाटन या शिलान्यास कर रहे हैं और गर्वपूर्वक घोषणा कर रहे हैं कि कार्य राज्य वित्त योजना के तहत हो रहे हैं। इसका साफ मतलब है कि उनके ही।प्रस्ताव पर कार्य हो रहे हैं। इसी कारण हालांकि इन निर्माण कार्यों पर तमाम सवालिया निशान अभी भी लगाए जा सकते हैं। मसलन, निर्माण कार्यों की लोकेशन क्या है? क्या सबसे जरूरी स्थानों पर निर्माण कराए जा रहे हैं? इनका स्टैंडर्ड क्या है? क्या निर्माण एकॉर्डिंग टु स्टैंडर्ड हो रहे हैं? क्या उनकी गुणवत्ता संतोषजनक रही? निर्माण कार्यों की निविदाएं कहां छपी और उनपर कितना कंपटीशन हुआ? प्रस्ताव के सापेक्ष कंपटीशन के बाद कितनी धनराशि संबंधित निर्माण एजेंसी के पास बची? वह धनराशि नियमानुसार सरकार को वापिस चली गई या संबंधित विभाग के पास ही बची हुई है? बची हुई है तो उससे क्या निर्माण कराए गए हैं या कराए जाने प्रस्तावित हैं? प्रत्येक कार्य के सापेक्ष कितनी निविदाएं बिकी, कितनी डाली गई और उनमें से कितनी खोली गई? निविदाओं की बिक्री से संबंधित निर्माण एजेंसी को कितनी आय हुई और उस आय का क्या उपयोग किया गया? आदि-अनादि तमाम सवाल हैं जो नगर विधायक से भी किए जा सकते हैं और उस एजेंसी से भी जो कि निर्माण कार्य करा रही है। लेकिन इन सवालों को पूछे जाने के लिए व्यक्ति का पत्रकार का होना जरूरी है। यह लेखक शर्मिंदगी के अहसास के साथ स्वीकार करता है कि संबंधित निर्माण एजेंसी से यह सवाल करने की हिम्मत मुझमें तो नहीं है। इसके कारण अलग हैं लेकिन सच यही है। प्रदीप बत्रा से अलबत्ता मैं सवाल कर सकता हूं लेकिन उनका स्टाफ मुझे उनके निकट नहीं आने देता। दूसरी ओर, मुझे लगता नहीं कि कोई और पत्रकार भी ये सवाल बत्रा से या किसी और से करना चाहता है।
बहरहाल, यह अलग मसला है। अहम मसला यह है कि प्रदीप बत्रा खासे उत्साहित हैं। वे निर्माण कार्यों के मौके पर खड़े होकर मीडिया को एड्रेस कर रहे हैं। बत्रा भाजपा के हरिद्वार जिले के उन तीन विधायकों में से एक हैं जिन्हें, अगर राज्य कैबिनेट का विस्तार होता है तो सबसे स्ट्रांग कंटेंडर माने जा रहे हैं। बावजूद इस सच के, कि उन्हें मंत्री बनाए जाने की कोई मांग रुड़की से नहीं उठ रही है। लेकिन अगला मसला चुनाव का भी है जो कि अब महज डेढ़ वर्ष बाद होना है। यह भी सच है कि बत्रा ने अपने साढ़े तीन साल के मौजूदा कार्यकाल में नगर की जनता को हर मामले में पूरी तरह तरसाया है। पिछले चुनाव में वे हार-हार के जीते थे और इसका पूरा बदला उन्होंने जनता से चुकाया। लेकिन अब उनकी जरूरत है। उन्हें चुनाव में जाना है। तो जाहिर है कि आखिरकार उन्हें काम कराना ही होंगे। यही वे कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रदीप बत्रा अपना उद्देश्य पाने में सफल रहेंगे?
वैसे इसके पीछे प्रदीप बत्रा का उद्देश्य तात्कालिक है या दीर्घकालिक सवाल यह भी है। तात्कालिक उद्देश्य कैबिनेट का हिस्सा बनना हो सकता है। जैसा कि सब जानते हैं कि राज्य में कैबिनेट का विस्तार होना है और हरिद्वार जिले में भाजपा के कुल तीन विधायक हैं। चूंकि मौजूदा कैबिनेट में जिले को प्रतिनिधित्व हासिल नहीं है इसलिए तीनों ही विधायक मंत्री पद के दावेदार हैं। प्रदीप बत्रा भी इनमें एक हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि बत्रा बतौर कैबिनेट मंत्री अपने प्रोस्पेक्टस न केवल देखते हैं बल्कि वे उसे मजबूत भी करते रहते हैं। उनकी मौजूदा निर्माण कार्य उनकी इसी मुहिम का हिस्सा हो सकते हैं। उनकी दिक्कत यह है कि उनके क्षेत्र के लोग उनके पक्ष में मुखर नहीं हैं। अन्य शब्दों में, यह मांग किसी की नहीं है कि बत्रा को मंत्री बनाया जाए। बहरहाल, दूसरा उद्देश्य दीर्घकालिक है और 2027 का विधानसभा चुनाव है। इस मामले में भी बत्रा के सामने पेंच फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। उनके निकट के लोग भी मानते हैं हैं कि प्रदीप बत्रा के व्यक्तिगत प्रभाव का सूरज अस्त हो रहा है और 2027 में उनके लिए शनि की दशा भारी है।