मंगलौर उप चुनाव के मतदान में 72 घंटे शेष रहते उठा सवाल
एम हसीन
मंगलौर। उप चुनाव में भाजपा ने हरियाणा के गुर्जर करतार सिंह भड़ाना को जब एक पखवाड़े पूर्व अपना प्रत्याशी बनाया था तब जिले की पूरी गुर्जर राजनीति ने इस फैसले को हाथों हाथ लिया था। इसका कारण उनकी कांग्रेस नेताओं, हरीश रावत व मंगलौर प्रत्याशी काजी निजामुद्दीन से व्यक्तिगत नाराजगी रही हो सकती है। आखिर हरीश रावत पर आरोप है कि उन्होंने 2009 पहले इकबालपुर के तत्कालीन गुर्जर विधायक चौधरी यशवीर सिंह का कैरियर खराब किया था और फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन खानपुर विधायक प्रणव सिंह चैंपियन को नेतनाबूद करने का प्रयास किया था। ऐसा माना जाता है कि इन दोनों ही मामलों में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन अपने मुख्यमंत्री के साथ थे। रही सही कसर 2022 में खानपुर सीट पर पूरी हो गई थी जब कांग्रेसियों ने अपने ही गुर्जर प्रत्याशी सुभाष चौधरी के खिलाफ निर्दलीय लड़ाकर जिता दिया था और प्रणव सिंह चैंपियन की पत्नी रानी देवयानी से लेकर रविन्द्र पनियाला तक सब हार गए थे। विधान सभा में गुर्जर प्रतिनिधित्व ही खत्म हो गया था। लेकिन अब वह दौर बदल रहा है। मतदान से 72 घंटे पहले जिले के सारे गुर्जर नेताओं के समक्ष अपने वजूद का सवाल खड़ा हो गया है। उन्हें महसूस हो रहा है 2022 तक वे कम से कम विधान सभा चुनाव लड़ने का तो हक रखते थे। एक बार भड़ाना विधायक बन गए तो उनका तो यह हक भी हरियाणा शिफ्ट हो जाएगा। और तो और, अपनी सीट पक्की रखने के लिए भड़ाना पता नहीं किसे जिला पंचायत अध्यक्ष बनाएंगे और किसे जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष बनाएंगे। अभी कम से कम सहकारिता की इन महत्वपूर्ण संस्थाओं पर उनका एकाधिकार तो है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा ने हमेशा गुर्जर राजनीति को बढ़ावा दिया। पार्टी ने 2002 के पहले ही चुनाव में जिले की 9 में से 2 सीटों पर गुर्जरों को टिकट दिया था और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी। खानपुर सीट पर पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैंपियन की पत्नी रानी देवयानी व मंगलौर सीट पर पूर्व विधायक तेजपाल पंवार के पुत्र दिनेश पंवार को टिकट दिया गया था। चूंकि ये दोनों ही पराजित हुए थे, इसलिए स्थानीय गुर्जरों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर तड़प बहुत ज्यादा बढ़ गई। इसी कारण भाजपा ने एक गुर्जर किरण चौधरी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाकर गुर्जरों को तसल्ली देने का काम किया लेकिन कार्यकाल पूरा होने के बाद जिला सहकारी बैंक के निवर्तमान अध्यक्ष प्रदीप चौधरी, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चौधरी राजेंद्र सिंह, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुभाष वर्मा, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सविता चौधरी, पूर्व जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह, पूर्व जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष रवींद्र पनियाला व पूर्व जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष सुशील चौधरी भी ठाली बैठे हैं और सरकार से कुछ उम्मीद लगाए हुए हैं। पूर्व मंडी परिषद अध्यक्ष अशोक चौधरी से लेकर प्रमोद छपरा और जिला पंचायत सदस्य अंशुल गुर्जर तक की अपनी उम्मीदें हैं। ध्यान रहे कि उपरोक्त सभी नाम उन गुर्जर नेताओं के हैं जो केवल भाजपा की राजनीति करते हैं और इनमें चौधरी कुलवीर सिंह व पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह के नामों को भी जोड़ा जाना जरूरी है।
भाजपा ने 2022 के सामान्य चुनाव में मंगलौर सीट पर गुर्जर बिरादरी के दिनेश पंवार को टिकट दिया था। बेशक उप चुनाव में भी पार्टी ने करतार सिंह भड़ाना के रूप में गुर्जर को ही प्रत्याशी बनाया है, लेकिन इस बार प्रत्याशी क्षेत्र या जिले तो क्या प्रदेश में ही नहीं ढूंढा गया बल्कि हरियाणा से लाया गया। इसका गुर्जर राजनीति ने स्वागत भी किया; भड़ाना के लिए स्वागत गीत भी गाए लेकिन अब समूची स्थानीय गुर्जर राजनीति को यह सवाल मथ रहा है कि अगर भड़ाना जीते तो उन सबका क्या होगा? यह तो तय है कि जिले की गुर्जर राजनीति कांग्रेस को बढ़ते हुए नहीं देखेगी लेकिन क्या अपना वजूद खत्म होते देख पाएगी?