उपाध्याय और गुर्जर समाज के बाद अब वैश्य समाज ने भी दिया समर्थन

एम हसीन

रुड़की। धार्मिक जातिवाद कांग्रेस की राजनीति की बुनियाद है। कांग्रेस के टिकट की बोलियां इसलिए लगती हैं क्योंकि वहां मुस्लिम समुदाय का एकमुश्त समर्थन गारंटीड होता है। जाहिर है कि इसके लिए पहले मुस्लिम समुदाय को एकजुट भी किया जाता है। दूसरी ओर भाजपा की राजनीति की बुनियाद जातीय धर्मवाद है। यहां जाति को प्राथमिकता देकर उसके इर्द-गिर्द धर्म का ताना-बाना बुना जाता है। रुड़की में भाजपा प्रत्याशी अनीता देवी अग्रवाल पार्टी का टिकट हासिल करने के बाद अब समाज को विभिन्न जातियों के आधार पर अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही हैं। गत दिवस पार्टी को उपाध्याय समाज ने अपना समर्थन दिया था और आज गुर्जर मिलन तथा अब वैश्य समाज ने अपना समर्थन दिया है। अगले दिनों में अन्य जातीय समाज पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में अपने समर्थन की घोषणा कर सकते हैं।

भाजपा प्रत्याशी की घोषणा के दो सप्ताह बाद जो स्थिति उभर कर सामने आ रही है वह यह है कि चुनाव परिणाम को लेकर भाजपा के भीतर दहशत है। यह अलग बात है कि पार्टी चुनाव संयोजक और जिला सह-संयोजक के अलावा जिलाध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष, सांसद, राज्यसभा सांसद, विधायक, सारे मंडल अध्यक्ष, सारे बूथ अध्यक्ष, सारे पन्ना प्रमुख आदि सब पार्टी के चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। जिला मीडिया प्रमुख जितनी विज्ञप्तियां भाजपा की ओर से जारी कर रहे हैं वह हैरत की बात है। मीडिया पर इतना फोकस भाजपा की दहशत का अपने-आप में प्रमाण है। यह इस बात का प्रमाण है कि भाजपा का अभियान जमीन पर नहीं आ पा रहा है। लेकिन यह अहम मसला नहीं है। अहम मसला यह है कि भाजपा की ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं हो पा रहा है कि जिससे मतदाता की समझ में अनीता देवी अग्रवाल को टिकट दिए जाने का औचित्य आ सके। ध्यान रहे कि अनीता देवी अग्रवाल को लेकर फर्स्ट इंप्रेशन यह गया था कि “वे एक कमज़ोर प्रत्याशी हैं।” भाजपा की दहशत यह है कि उसका पूरा ढांचा इस प्रीसेप्शन को तोड़ नहीं पा रहा है। इसी कारण फर्स्ट इंप्रेशन इज़ द लास्ट इंप्रेशन वाली बात हो रही है। प्रचार के दी सप्ताह बाद भी लोग पूछ रहे हैं कि अनीता देवी अग्रवाल कौन हैं? ऐसे में जातीय समर्थन मिलने का शोर मचाकर पार्टी इस प्रीसेप्शन को बदलने का प्रयास कर रही है। लेकिन क्या पार्टी ऐसा कर पाएगी?