बसपा चुनाव अभियान की कमान अफजल शहजाद के हाथ

एम हसीन

रुड़की। पिछले विधानसभा चुनाव में कलियर विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी रहे मुनेश सैनी की विडंबना यह है कि वे उन हरिद्वार विधायक मदन कौशिक के गुट की राजनीति करते हैं जो पार्टी के भीतर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और फिलहाल उनका फोकस पूरा हरिद्वार जिला नहीं बल्कि हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र है। अब चूंकि मुनेश सैनी यहां निकाय चुनाव के बहाने अपनी 2027 की राजनीति कर रहे हैं इसलिए यह उम्मीद तो की नहीं जानी चाहिए कि वे अपने लिए कोई रास्ता कांग्रेस प्रत्याशी हाजरा बानो पत्नी मोहम्मद अकरम या बसपा प्रत्याशी शमीम बानो पत्नी सलीम अहमद की चुनावी मुहिम से निकाने की कोशिश कर रहे होंगे। रास्ता तो वे कोई तीसरा ही पकड़ रहे होंगे खासतौर पर इसलिए कि इस बार यहां बसपा निकाय चुनाव की कमान पार्टी के लक्सर विधायक हाजी मुहम्मद शहजाद के पुत्र अफजल शहजाद संभाल रहे हैं। यहां बसपा के टिकट पर निकाय चुनाव लड़ रही शमीम बानो अफजल शहजाद की फूफी हैं। जाहिरा तौर पर अफजल शहजाद यहां कलियर में आरा मशीन का कारोबार कर रहे हैं। अब यूं तो समझा नहीं जाना चाहिए कि अफजल शहजाद कलियर में आरा मशीन का बिजनेस करने आए हैं।

ध्यान रहे कि अफजल शहजाद लक्सर विधायक हाजी मुहम्मद शहजाद के पुत्र हैं। हाजी मुहम्मद शहजाद 2012 में यहां बसपा के टिकट पर और 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं। उनका यहां जबरदस्त जनाधार है यह तभी साबित हुआ था जब वे यहां निर्दलीय चुनाव लड़े थे। बेशक 2022 का चुनाव उन्होंने लक्सर में लड़ा और जीता था लेकिन कलियर से उनके संबंध खत्म नहीं हुए हैं। उन्हीं के पुत्र अफजल शहजाद हैं। वे विदेश से उच्च डिग्री हासिल करने के बाद वापस लौटे हैं तो, भले ही उन्होंने यहां सारा मशीन लगाई है, जाहिर है कि आरा मशीन चलाने के लिए तो वे यहां नहीं आए होंगे। सामान्य समझ यह कहती है कि वे राजनीतिक तालाब की मछली हैं और राजनीति ही करेंगे। यह उनके तौर तरीकों से भी जाहिर है। फिर वे विधायक के वारिस हैं तो अगर चुनाव लड़ेंगे तो विधानसभा का ही लड़ेंगे और 2027 का विधानसभा चुनाव सामने है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अगर कांग्रेस के साथ अपनी दूरियों को बरकरार रखते हुए भाजपा के पूर्व प्रत्याशी मुनेश सैनी यहां बसपा के साथ कोई अघोषित गठबंधन इस निकाय चुनाव में करने की कोशिश करें भी तो वह बहुत अस्थाई ही होगा। बेशक इसका लाभ निकाय चुनाव में बसपा को तो मिल सकता है। लेकिन भाजपा को इसका क्या लाभ होगा, सिवाय इस तसल्ली के, कि कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ मुकाबला और कड़ा हो जाए? दूसरी ओर, हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में मुनेश सैनी को बसपा के साथ ही मुकाबला करना पड़ जाए। इसलिए सामान्य सोच समझ यह कहती है कि मुनेश सैनी की नजर यहां चुनाव लड़ रहे किसी निर्दलीय प्रत्याशी पर होनी चाहिए, खास तौर पर इसलिए कि यहां भाजपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। सवाल यह है कि मुनेश सैनी की नजर किस निर्दलीय प्रत्याशी पर है?

ध्यान रखने वाली बात यह है कि कलियर नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस की हाजरा बानो पत्नी मोहम्मद अकरम और बसपा की शमीम बानो पत्नी सलीम अहमद के अलावा भी यहां कम से कम चार निर्दलीय प्रत्याशी हैं जिनमें एक निवर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष शफ़क़्क़त अली भी हैं। साथ ही कांग्रेस के बागी निवर्तमान सभासद नाजिम त्यागी भी। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष नाजिम कुरैशी के भाई राशिद कुरैशी भी हैं और भाजपा का टिकट नकारकर बतौर निर्दलीय मैदान में आए अकरम साबरी भी। इनमें कोई एक मुनेश सैनी की पसंद हो सकता है। लेकिन सवाल है कि कौन?