नगर विधायक ईमानदारी से लगे तो परिणाम बदल सकते हैं

एम हसीन

रुड़की। नगर विधायक प्रदीप बत्रा की राजनीतिक क्षमता लासानी हैं। वे 2019 के बाद से ही नगर के राजनीतिक परिणाम को अपने तरीके से निर्धारित करने की अपनी क्षमता को साबित करते आए हैं। प्रदीप बत्रा अगर भाजपा की मेयर प्रत्याशी अनीता देवी अग्रवाल के साथ खड़े हैं तो फिर उन आरोपों का बहुत अधिक महत्व नहीं रह जाता जो उनपर लग रहे हैं। ध्यान रहे कि अनीता देवी अग्रवाल को कमजोर प्रत्याशी बताया जा रहा है। लेकिन अगर प्रदीप बत्रा ईमानदारी से प्रत्याशी के साथ हैं तो फिर प्रत्याशी कमजोर नहीं हैं। यह वह तत्व है जिसे राजनीतिक पर्यवेक्षकों की जानकारी तक पहुंचाना अनीता देवी अग्रवाल की जिम्मेदारी है।

जैसा कि सब जानते हैं कि अनीता देवी अग्रवाल को मीडिया के एक वर्ग में बेहद कमजोर प्रत्याशी बताया जा रहा है और यह प्रीसेप्शन खड़ा करने की कोशिश की जा रही है कि उन्हें उतना जन-समर्थन भी नहीं मिलेगा जितना 2019 में पार्टी के तत्कालीन प्रत्याशी मयंक गुप्ता को मिला था। मयंक गुप्ता को 19 हजार वोट और 10 हजार वोटों की हार के साथ तीसरा स्थान मिला था। यह प्रीसेप्शन इसलिए बनाने की कोशिश की जा रही है क्योंकि नगर में भाजपा प्रत्याशी के चुनाव अभियान की अगुवाई प्रदीप बत्रा ही कर रहे हैं। ऐसे में यह तो साफ हो जाता है कि चुनाव में आलोचकों का निशाना अनीता देवी अग्रवाल नहीं बल्कि खुद प्रदीप बत्रा हैं और लक्ष्य इसी चुनाव में 2027 को समेट लेने का है। लक्ष्य यह है कि अनीता देवी अग्रवाल को चुनाव हराया जाए और उनकी हार का ठीकरा प्रदीप बत्रा के सिर फोड़कर 2027 में उनका टिकट कटवाया जा सके।

कोई बड़ी बात नहीं कि प्रदीप बत्रा इन हालात से अंजान नहीं हैं। यही कारण है कि वे अनीता देवी अग्रवाल को लेकर जनता के बीच उतर गए हैं। वे मौजूदा चुनाव में परिणाम को कितना प्रभावित कर पाएंगे यह देखने वाली बात होगी लेकिन अतीत में साबित हो चुकी उनकी उनकी क्षमताओं को नाकारा नहीं जा सकता। इसे पिछले विधानसभा चुनाव में संदर्भ में भी देखा जा सकता है और पिछले निकाय चुनाव के संदर्भ में भी। इतिहास गवाह है कि पिछले निकाय चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा के बागी गौरव गोयल में करीब तीस हजार वोट लिए थे। उनके मुकाबले करीब 27 हजार वोट लेकर यशपाल राणा हारे थे जो उस समय कांग्रेस प्रत्याशी थे। भाजपा के प्रत्याशी तब मयंक गुप्ता थे जिन्हें महज 19 हजार वोट मिले थे। अहम बात यह है कि तब मयंक गुप्ता को तत्कालीन मुख्यमंत्री (मौजूदा हरिद्वार सांसद) त्रिवेंद्र सिंह रावत सीधे चुनाव लड़ा रहे थे। इसके बावजूद मयंक गुप्ता बुरी तरह हारे थे। दूसरी ओर गौरव गोयल मेयर बने थे, जिनके विषय में आज भी यह कहा जाता है कि उन्हें प्रदीप बत्रा ने भाजपा से बगावत के लिए तैयार किया था और प्रदीप बत्रा ने ही चुनाव लड़ाया था। अब सवाल यह है कि जो प्रदीप बत्रा, भाजपा प्रत्याशी के ही खिलाफ, सीधे सीधे सत्ता के खिलाफ एक बागी को मेयर बना सकते हैं वे जब भाजपा प्रत्याशी को चुनाव लड़ाएंगे तो परिणाम की स्थिति क्या हो सकती है! कारण यह है कि भाजपा का भी यहां अपना जनाधार है। जब कोई भी भाजपा को वोट न दे तब भी पार्टी को 19 हजार वोट तो मिलते ही हैं।