श्रेष्ठा राणा भी निर्दलीय ही जीती थी पार्षद पद का चुनाव
एम हसीन
रुड़की। इस विश्वास के साथ कि निर्दलीय चुनाव निशान वर्तमान मेयर यशपाल राणा को रास आता है, वे एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। हालांकि इस बार प्रत्याशी उनकी पत्नी श्रेष्ठा राणा हैं, चूंकि सीट महिला के लिए आरक्षित है। मजेदार बात यह है कि एक बार पार्षद रह चुकी श्रेष्ठा राणा भी निर्दलीय के रूप में ही चुनाव जीती थी।
नगर निकाय की राजनीति के साथ यशपाल राणा का संबंध पुराना है। उत्तराखंड गठन से पहले ही उस समय वे इस निकाय का सदस्य निर्वाचित हो गए थे, जब अभी उत्तराखंड का गठन हुआ भी नहीं था। उन्होंने 2013 तक अपने आप को सभासद या पार्षद चुनाव तक की राजनीति तक सीमित रखा था। 2013 में जब इस निकाय के उच्चीकृत होने के बाद पहली बार यहां निगम का चुनाव होना था, तब भी यशपाल राणा भाजपा में पार्षद टिकट के ही दावेदार थे। लेकिन तब राजनीतिक बदलाव का दौर शुरू हो चुका था। इसीलिए यशपाल राणा का टिकट काट दिया गया था। नतीजा यह हुआ था कि उन्होंने न केवल पार्टी से बगावत कर दी थी बल्कि निर्दलीय मेयर प्रत्याशी के रूप में जनता के बीच पहुंच गए थे। जनता ने भी उनका मान रखा था और उन्हें मेयर निर्वाचित कर दिया था। अगले 5 साल उन्होंने बतौर मेयर अपनी राजनीतिक सूझबूझ, अपने प्रभाव और निकाय की राजनीति को लेकर अपने अनुभव का दबदबा कायम रखा था। इस बीच वे में कांग्रेस में शामिल हो गए थे और सिटिंग मेयर होने के साथ-साथ उनके प्रभाव और अनुभव की बुनियाद पर कांग्रेस ने उन्हें 2019 में अपने टिकट का हकदार माना था, यह अलग बात है कि तब तकनीकी रूप से यशपाल राणा खुद प्रत्याशी नहीं बन पाए थे। इसी कारण उन्होंने अपने भाई रेशू राणा को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनाव लड़ाया था। यह चुनाव रेशु राणा बहुत मजबूती के साथ लड़े थे लेकिन वे जीत नहीं पाए थे। तब रेशु राणा के पास चुनाव निशान हाथ का पंजा था। रेशु राणा के इसी प्रदर्शन की बुनियाद पर कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनाव में यशपाल राणा को ही अपना प्रत्याशी बनाना मुनासिब समझा था। तब खुद यशपाल राणा “हाथ का पंजा” चुनाव निशान लेकर मैदान में आए थे। उन्होंने बेहद शानदार चुनाव लड़ा था, लेकिन करीब 2 हजार मतों के अंदर से वे पराजित हो गए थे। अपने इसी प्रदर्शन को आधार बनाकर यशपाल राणा ने इस बार भी कांग्रेस में मेयर टिकट पर अपना दावा ठोका था। पार्टी में उनकी लॉबी ने भी अंतिम समय तक टिकट की लड़ाई बड़ी मजबूती से लड़ी थी। लेकिन यह लड़ाई वह हार चुके हैं।
अगर यशपाल राणा के राजनीतिक इतिहास पर नजर डाली जाए तो वे अपने जीवन में केवल दो बार “हाथ के पंजे” के निशान पर चुनाव लड़े हैं और दोनों ही बार उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इसके विपरीत वे एक बार निर्दलीय मेयर का चुनाव लड़े हैं और तब उन्हें जीत मिली थी। इससे पहले वे सभासद पद का चुनाव चार बार लड़े और चारों बार या निर्दलीय या भाजपा के टिकट पर उन्हें हर बार कामयाबी मिली। अगर कांग्रेस का इतिहास देखा जाए तो कांग्रेस ने रुड़की में उत्तराखंड बनने के बाद केवल एक बार, 2012 मे, जीत हासिल की है। इससे पहले कांग्रेस को आखिरी जीत 1989 में राम सिंह सैनी को मिली थी, जब वे “हाथ के पंजे” के चुनाव निशान पर लड़ते हुए विधानसभा में पहुंचे थे। उत्तराखंड बनने के बाद एक बार हरीश रावत को भी कामयाबी मिली जब वे 2009 में हरिद्वार संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे। रुड़की में 2012 के बाद यशपाल राणा ने खुद 2019 और 2022 का चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस को बेहद मजबूत स्थिति में तो पहुंचा था। इसी कारण वे टिकट चाहते थे। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार वे मेयर का चुनाव “हाथ के पंजे” पर जीत सकते हैं। लेकिन पार्टी ने उनकी उम्मीद पूरी नहीं कि और वे एक बार फिर निर्दलीय मैदान में हैं। अब उनकी कोशिश है कि निर्दलीय के रूप में जीतने का उनका रिकॉर्ड कायम रहे। देखना होगा कि उनकी उम्मीद जनता पूरी करती है या नहीं।