विधानसभा चुनाव के तीन साल बीत जाने के बावजूद कांग्रेस की हैसियत में नहीं आ रहा उछाल!
एम हसीन
लंढौरा। कांग्रेस ने जब अभी खानपुर विधानसभा क्षेत्र के साथ खिलवाड़ करना शुरू नहीं किया था तब इस क्षेत्र में बड़ी राजनीति के इच्छुक चेहरों की कमी नहीं थी। मसलन, 2005 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर आए राव नौबहार अली का हौसला इतना बुलंद था कि वे 2007 में रुड़की नगर सीट पर बसपा के टिकट की संभावनाएं तलाश कर रहे थे। तब बहरहाल, कांग्रेस ने रुड़की में हाजी फुरकान अहमद को टिकट देकर ऐसी किसी संभावना पर फुल स्टॉप लगाया था। लेकिन खानपुर क्षेत्र के राजनीतिक लोगों की संभावनाओं पर असल फुल स्टॉप तब लगा था जब 2008 में यह सीट आरक्षणमुक्त भी हो गई थी और फिर भी राजनीतिक दलों ने स्थानीय राजनीति को संरक्षण नहीं दिया था। मसलन, 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तो अपने सिटिंग एम एल ए प्रणव सिंह चैंपियन को टिकट दे दिया था लेकिन भाजपा और बसपा दोनों ही प्रत्याशी की तलाश में झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे थे। फिर कोई बड़ी बात नहीं चैंपियन को स्थानीय होने का लाभ मिला था और वे जीत गए थे।
चूंकि चैंपियन 2015 में भाजपा गमन कर गए थे इसलिए कांग्रेस में प्रत्याशी की संभावना पैदा हो गई थी। 2017 में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चौ राजेंद्र सिंह, जो उस समय पार्टी के जिलाध्यक्ष भी थे, यहां टिकट के दावेदार थे। उन्होंने यहां राजनीति जमीन भी अपने लिए गोड रखी थी। उनकी संभावनाएं खासी उज्जवल थी। लेकिन पार्टी ने उन्हें आखिरी समय तक टिकट का कोई इशारा नहीं दिया था। दूसरा उल्लेखनीय चेहरा ठाकुर उदय सिंह पुंडीर का था जो स्थानीय निवासी हैं और उन्होंने भी यहां खूब मेहनत की हुई थी। तीसरा चेहरा राव शेर मुहम्मद का था जो उस समय हज समिति के अध्यक्ष भी थे। चौथा चेहरा राव नौबहार अली का था। लेकिन अंत में पार्टी ने पूर्व इकबालपुर विधायक चौ यशवीर सिंह को टिकट दे दिया था।
दरअसल, 2012 से कांग्रेस के दिग्गज हरीश रावत यहां कांग्रेस की जीत के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के विधायक प्रणव सिंह चैंपियन की हार के लिए राजनीति कर रहे थे। यही कारण है कि तब वे दो प्रत्याशियों के साथ चुनाव लड़ रहे थे। उनके दूसरे प्रत्याशी मुफ्ती रियासत अली थी। लेकिन 2012 में रियासत अली निर्दलीय लड़ते हुए चैंपियन को नुकसान तो क्या पहुंचाते उन्होंने चैंपियन की जीत आसान कर दी थी। वे मुस्लिम वोट एकतरफा ले गए थे और मुस्लिम समर्थन से कोरा रहकर बसपा प्रत्याशी चौ कुलवीर सिंह चुनाव हार गए थे। विजयी हुए चैंपियन ने भाजपा गमन करके हरीश रावत का रास्ता आसान कर दिया था।
2017 में मुफ्ती बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और चैंपियन भाजपा के टिकट पर। इन दोनों के बीच हुए सीधे संघर्ष में कांग्रेस प्रत्याशी जीरो हो गए थे। 2022 में चैंपियन को हराने के लिए भाजपा ने गेम प्लान करते हुए टी वी पत्रकार रहे उमेश कुमार को खानपुर में प्लांट किया था और उन्हें खाद पानी दिया था कांग्रेस ने। कांग्रेस की हरीश रावत विरोधी लॉबी ने भाजपा के चैंपियन की पत्नी रानी देवयानी और बसपा के रविन्द्र गुर्जर के बीच सुभाष चौधरी को टिकट दिया था जिनका खानपुर में कोई प्रभाव नहीं था। दूसरी बात, वे भी गुर्जर थे; लेकिन वे बेहसियत गुर्जर साबित हुए थे। कुल मिलाकर उमेश कुमार विधायक बन गए थे। आज की स्थिति यह है कि खानपुर में अगर कांग्रेस के किसी बच्चे से भी बात की जाए तो वह कहता है कि “उमेश कुमार भाजपा के आदमी हैं।” लेकिन कांग्रेस ने यहां अपनी स्थिति बदलने का अभी तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है। उदय पुंडीर जैसी प्रभावी शख्सियत ढंढेरा नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पनाह तलाश रही है तो पूर्व जिला पंचायत सदस्य राव नौबहार अली और जितेंद्र पवार जैसे कुछ लोग अपने चेहरे के दम पर भावी संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं। बाकी पार्टी कुछ नहीं कर रही है। लगता है कि पार्टी का संतोष इसी बात में है खानपुर में अगर वे नहीं तो भाजपा भी नहीं है।