खुद को नगर की राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बनाने में कई लोगों ने की है खासी मेहनत
एम हसीन
रुड़की। रुड़की नगर की अपनी एक सामाजिक संस्कृति है और राजनीतिक प्रतिनिधित्व हासिल करने के इच्छुक लोग, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या वर्ग से आते हों, उन्हें इस संस्कृति में ढलना ही पड़ता है। चुनाव में भले ही सनातन संस्कृति के आधुनिक रूप का जलवा दिखता हो लेकिन बाकी 5 साल यूरोप की कॉन्वेंट एजुकेशन और अमेरिका की आर्थिक संस्कृति का ही जलवा दिखता है। चूंकि आरक्षण पंचायती राज अधिनियम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और रुड़की मेयर पद को भी कभी न कभी आरक्षण का हिस्सा बनना ही है इसी सोच के मद्देनजर नगर के कई सनातन और नवीन बाशिंदों ने अपने-आपको इस संस्कृति में ढाला है; अपने पारिवारिक तौर-तरीकों या अपनी जातीय संस्कृति से बाहर आकर अपने-आपको को नगर के सामाजिक तौर-तरीकों का हिस्सा बनाया है। अब जबकि तय सा लग रहा है कि रुड़की मेयर पद पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित होगा ही, सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा का मेयर पद का चेहरा कौन होगा?
पिछले वर्षों में भाजपा देश की सबसे बड़ी राजनीतिक सच्चाई के तौर पर सामने आई है। मुस्लिमों के कई चेहरों समेत तमाम लोग अब भाजपा की ही राजनीति कर रहे हैं। भाजपा पिछड़ा वर्ग के मेयर पद के जितने दावेदार हैं उनमें अधिकांश का संबंध कभी कांग्रेस से रह चुका है। मसलन, पार्टी के सबसे पुराने पिछड़ा चेहरों में एक अरविंद कश्यप के पिता श्यामलाल कश्यप कभी नगर कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। लेकिन यह पुरानी बात है। सच यह है कि अरविंद कश्यप ने तीन दशक पहले ही भाजपा को आत्मसात कर लिया था। अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे 1995 में राजेश गर्ग के नेतृत्व में बने भाजपा के नगर पालिका बोर्ड में भाजपा के ही सभासद बन गए थे। उन्होंने उत्तराखंड की स्थापना के बाद कभी सभासद या पार्षद चुनाव नहीं लड़ा लेकिन जब कभी भी रुड़की निकाय के आरक्षित होने का सवाल उठा, उन्हें भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार के रूप में देखा गया। जैसे कि आज भी देखा जा रहा है।
अरविंद कश्यप व्यापार मंडल के नगर अध्यक्ष हैं और उनकी छवि एक सामंजसवादी व्यक्ति की है। वे बहुत आक्रामक राजनीति नहीं करते लेकिन पिछले वर्षों में संपन्न हुए व्यापार मंडल के चुनावों ने दिखाया है कि जिस ग्रुप की वे राजनीति करते हैं वह आक्रामक चुनाव लड़ने से भी परहेज नहीं करता। इसलिए उन्हें लेकर यह चिंता नहीं की जा सकती कि वे मेयर का चुनाव अगर जीत भी गए तो मैदान छोड़कर भाग जाएंगे। मैदान तो वे हरगिज नहीं छोड़ेंगे। लेकिन भाजपा के अपने समीकरण भी हैं। मसलन, अरविंद कश्यप नगर में बेहद प्रतिष्ठित मिष्ठान संस्थान के मालिक हैं और इसी कारण नगर के उन मिष्ठान विक्रेताओं में एक हैं जिनके साथ नगर का दूसरा प्रमुख मिष्ठान संस्थान चलाने वाले नगर विधायक प्रदीप बत्रा के आंकड़े 36 के हैं, जिन्हें प्रदीप बत्रा फूटी आंख नहीं देखना चाहते। इसलिए यह तो तय है कि अगर प्रदीप बत्रा की चली तो अरविंद कश्यप को भाजपा का टिकट नहीं मिलेगा; लेकिन जिस प्रकार के भाजपा के भीतरी राजनीतिक समीकरण बने हुए हैं, उनके मद्देनजर यह उम्मीद की जा सकती है कि शायद टिकट के मामले में बत्रा की बहुत अधिक न चल पाए। अगर ऐसा हुआ तो अरविंद कश्यप रुड़की में भाजपा के मेयर प्रत्याशी हो सकते हैं। जहां तक अरविंद कश्यप का सवाल है, वे चुनाव में जाने की लिए तैयार नजर आ रहे हैं। उनकी तैयारी कितनी है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे इस बात का लिए भी तैयार हैं कि अगर सीट पिछड़ा महिला के लिए आरक्षित हुई तो उनके पास पिछड़ा चेहरा की कमी न हो। वे सपत्नीक टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।